अराफात की मौत की गुत्थी उलझी
४ दिसम्बर २०१३फलीस्तीनी मुक्ति के महानायक यासिर अराफात की मौत की गुत्थी सुलझाने में वैज्ञानिकों की कई टीमें लगी हैं. नौ साल पहले हुई अराफात की मौत का कारण अब भी साफ नहीं है.
फ्रांसीसी रिसर्चरों ने अराफात की कब्र से निकाले गए हड्डी के नमूने पर कई तरह के मेडिकल, जेनेटिक और विकिरण की जांच की. मंगलवार को फ्रांसीसी लैब के ये परिणाम अराफात की पत्नी सुहा अराफात तक उनके वकील के जरिए पहुंचे, जो कि स्विट्जरलैंड की लैब के परिणामों से अलग हैं.
सुहा ने कहा, "आप अंदाजा लगा सकते हैं कि यूरोप के बेहतरीन विशेषज्ञों के परिणामों के बीच अंतर से मुझे कितना झटका लगा है. मैं किसी पर इल्जाम नहीं लगा रही हूं. यह न्यायालय के हाथ में है और अभी तो बस शुरुआत ही है."
दुनिया भर के कई देशों के वैज्ञानिक पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि 2004 में फ्रांसीसी सेना अस्पताल में हुई अराफात की मौत के लिए क्या पोलोनियम का इस्तेमाल किया गया. फलस्तीन के लोग इसके पीछे इस्राएल का हाथ मानते आए हैं लेकिन इस्राएल शुरुआत से ही इसका खंडन करता आया है.
2012 में सामने आई एक रिपोर्ट के अनुसार अराफात के कपड़ों पर रेडियोधर्मी तत्व पोलोनियम के प्रमाण मिले. इसके बाद उनकी पत्नी ने आरोप लगाया कि अराफात को जहर देकर मारा गया और फ्रांस में ही इस मामले की जांच की मांग की. जांच के लिए यासिर अराफात की मौत के आठ साल बाद उनकी कब्र खोद कर अवशेष निकाले गए. सुहा के वकील ने बताया, "नतीजे बिल्कुल विपरीत हैं."
"जहर से आसान गोली"
अराफात की 2004 में रहस्यमयी परिस्थितियों में मौत हो गई. उस समय वह 75 साल के थे. खाना खाते समय अचानक उनकी तबीयत खराब हुई और उन्हें फ्रांसीसी सेना के अस्पताल ले जाया गया. कुछ दिन में तबीयत में सुधार दिखने लगा, लेकिन फिर अचानक हालत बिगड़ी और उनकी मौत हो गई. उस समय डॉक्टरों का कहना था उन्हें दिल का दौरा पड़ा, जिसके बाद खून का थक्का जमने से उनकी मौत हुई.
इस्राएली राष्ट्रपति शिमोन पेरेस ने अराफात को मारने के लिए पोलोनियम के इस्तेमाल की बात को अविश्वस्नीय बताया है. मध्य पूर्व में शांति के प्रयासों की वजह से पेरेस और अराफात को संयुक्त रूप से 1994 का नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था. उनके साथ इस्राएल के पूर्व प्रधानमंत्री इत्साक राबिन को भी यह पुरस्कार मिला था. इनके बीच ओस्लो शांति संधि हुई थी.
पेरेस का कहना है, "अगर कोई अराफात को मारना चाहता था, तो गोली से मारना ज्यादा आसान होता." इस्राएल और फलीस्तीन के बीच हुई ओस्लो शांति संधि को 20 साल हो गए हैं, लेकिन आज भी इसका दोनों देशों के संबंधों पर खास प्रभाव नहीं है.
एसएफ/एजेए (रॉयटर्स, एएफपी, डीपीए)