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समाज

अरबों का बाजार हैं भारत की शादियां

प्रभाकर मणि तिवारी
१८ नवम्बर २०१७

भारत में शादियों का सालाना बाजार लगभग एक लाख करोड़ रुपये का है. यह औसतन 25 से 30 फीसदी सालाना की दर से बढ़ रहा है. देश में हर साल अममून एक करोड़ शादियां होती हैं.

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Indien Massenhochzeit für vaterlose Töchter
तस्वीर: Getty Imagers/AFP/S. Panthaky

एक अध्ययन के मुताबिक, वर्ष 2017 से 2021 के दौरान साढ़े छह करोड़ शादियों का अनुमान है. इन शादियों पर पांच लाख से लेकर पांच करोड़ तक की रकम खर्च होती है. शादी के इस बढ़ते बाजार से मुनाफा कमाने के लिए ज्यादा से ज्यादा ऑनलाइन कंपनियां इस मैदान में कूद रही हैं. इनमें जोड़े मिलाने वाली कंपनियों से लेकर शादी के तमाम आयोजन करने वाली कंपनियां तक शामिल हैं. इस साल हालांकि व्यापार संगठन एसोचैम ने नोटबंदी व जीएसटी की वजह से शादी के कारोबार पर 15 से 20 फीसदी असर पड़ने का अंदेशा जताया है. लेकिन इस कारोबार में सक्रिय आनलाइन कंपनियों के चेहरे एक बार फिर चमकने लगे हैं. बीते साल नोटबंदी की वजह से उनको बुरी तरह मार खानी पड़ी थी.

शाही होती शादियां

देश में हर बीतते साल के साथ शादियों का आयोजन भव्य और शाही होता जा रहा है. यह कहना ज्यादा सही होगा कि पारंपरिक शादियां अब कॉरपोरेट आयोजनों में बदलती जा रही हैं जहां शादी का निमंत्रण पत्र छापने से लेकर तमाम इंतजाम की जिम्मेदारी वधू पक्ष से अपने सिर पर लेने वाली एजंसियों की बाढ़-सी आ गई है. फिलहाल देश की सवा सौ करोड़ की आबादी में प्रति परिवार औसतन पांच सदस्यों के हिसाब कोई 25 करोड़ परिवार हैं. ऐसे हर परिवार में प्रति बीस साल पर एक शादी होने की स्थिति में देश में सालाना कम से कम एक करोड़ शादियां होती हैं. हर शादी में औसतन 30 से 40 ग्राम सोना खर्च होने की स्थिति में महज शादियों में सोने की कुल सालाना खपत तीन से चार सौ टन के बीच होगी. इस कारोबार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि अगले दो दशकों के दौरान देश में प्रति व्यक्ति आय के कम से कम तिगुनी बढ़ने की संभावना और देश की आधी आबादी के 29 साल की उम्र का होने के कारण अगले पांच से 10 वर्षों के दौरान शादी के बाजार में भारी उछाल की उम्मीद है.

व्यापार संगठन एसोचैम की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मैट्रीमोनी डॉट कॉम, शादी डॉट कॉम व भारत मैट्रीमोनियल्स समेत शादी कराने वाले आनलाइन पोर्टलों का सालाना कारोबार तीन से साढ़े तीन सौ करोड़ के बीच है और यह हर साल बढ़ रहा है. एक निजी संस्था केपीएमजी की ओर से हाल में जारी मार्केट स्टडी ऑफ ऑनलाइन मैट्रीमोनी एंड मैरेज सर्विसेज शीर्षक रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2016 के दौरान देश के 10.7 करोड़ अविवाहाति लोगों में से लगभग 6.3 करोड़ को शादी के लिए लड़के या लड़की की तलाश थी. इसमें कहा गया है कि देश में शादी लायक लड़के-लड़कियों की आबादी वर्ष 2021 तक सालाना औसतन 0.84 फीसदी की दर से बढ़ेगी. इस हिसाब से वर्ष 2017 से 2021 के बीच साढ़े छह करोड़ शादियां होंगी.

लौटती रौनक

बीते साल नवंबर में देश में शादी का  सीजन शुरू होने के ठीक पहले आए नोटबंदी के फैसले ने शादियों की रौनक हर ली थी. लेकिन अब यह खोई रौनक धीरे-धीरे लौट रही है. ऑनलाइन वेडिंग पोर्टल बैंड बाजा के सह-संस्थापक व मुख्य कार्यकारी अधिकारी सचिन सिंघल बताते हैं, "बीते साल के झटके के बाद अब शादियों की रौनक दोबारा लौटने लगी है. लोग तमाम भुगतान ऑनलाइन करने लगे हैं और उनका बजट भी बढ़ गया है." ब्राइडल एशिया के चीफ आपरेटिंग आफिसर धुव्र गुरवारा कहते हैं, "शाही शादियों का फैशन फिर लौट आया है. बाजार में पर्याप्त नकदी आने और आनलाइन लेन-देन बढ़ने से मुश्किलें दूर हो गई हैं. इससे वेडिंग इंडस्ट्री यानी शादी उद्योग को नया जीवन मिला है."

धुव्र गुरवारा को भरोसा है कि यह उद्योग किसी भी तरह के संकट से शीघ्र उबरने में सक्षम है. मसाल के तौर पर वर्ष 2008 की विश्वव्यापी मंदी के बावजूद इस उद्योग का वजूद बना रहा. वह कहते हैं कि नोटबंदी तो एक सामयिक दौर था. देश में शादियों की भव्यता भविष्य में भी बढ़ती रहेगी और इसके साथ यह उद्योग दिन दूना रात चौगुना प्रगति करेगा.

नोटबंदी व जीएसटी

व्यापार संगठन एसौचैम ने अपने एक ताजा अध्ययन में कहा है कि नोटबंदी और वस्तु व सेवा कर (जीएसटी) का शादी उद्योग पर 10 से 15 फीसदी असर पड़ सकता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि शादी में जरूरी विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं पर जीएसटी की दर बढ़ने से इन पर होने वाला खर्च बढ़ेगा. इसके चलते कुछ खर्चों में कटौती करनी पड़ सकती है. संगठन ने कहा है कि देश में गोवा के समुद्र तट और राजस्थान के शाही किले शादियों के लिए सबसे पसंदीदा ठिकाने के तौर पर उभरे हैं. कई जानी-मानी विदशी हस्तियां भी शादी करने यहां पहुंच रही हैं. इसी तरह विदेशों में बाली और दुबई जाकर शादी करने वाले भारतीयों की भीड़ लगातार बढ़ रही है.

समाजिक संगठनों का कहना है कि दहेज प्रथा की तमाम बुराइयों के बावजूद देश में शाही शादियों का चलने लगातार बढ़ रहा है. इसकी वजह यह है कि शादियां अब महज एक सामाजिक रस्म ही नहीं रहीं, बल्कि व्यक्ति विशेष के सामाजिक और आर्थिक रुतबे का प्रतीक भी बन गई हैं. ऐसे में आने वाले समय में शादियों के इस कारोबार के लगातार भव्य होने की उम्मीद है.

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