अरब रॉक स्टार नहीं रहे एर्दोआन
१३ जून २०१३दो साल पहले तुर्की के प्रधानमंत्री को अरब राजधानियों में उनके प्रशंसक घेर लेते थे. तुर्की अरब वसंत के लोकतंत्र कार्यकर्ताओं को एर्दोआन के समर्थन के कारण इलाके में अपना कारोबार और प्रभाव बढ़ता दिख रहा था. लेकिन दो साल बाद घर पर विरोध प्रदर्शनों को बर्बरता से दबाने के कारण बहुत से ऐसे लोग नाराज हैं जो पूर्व ऑटोमन साम्राज्य के इस नेता का समर्थन करने लगे थे. अब वे प्रधानमंत्री से उतनी ही नफरत करने लगे हैं, जितनी उन तानाशाहों से करते हैं, जिन्हें उन्होंने तख्त से नीचे उतारा है.
फिर भी एर्दोआन के अभी भी बहुत से अरब प्रशंसक हैं. उनकी लोकप्रियता वैसे ही बंट गई है जैसे मिस्र, ट्यूनीशिया और लीबिया में तानाशाहों को सत्ताच्युत करने वाले मोर्चे टूटकर एक दूसरे से लड़ने वाले कैंपों में बंट गए हैं. इस्लामी साथियों के उत्थान की वजह से तुर्क नेता अभी भी इन देशों में गर्मजोशी वाले स्वागत की उम्मीद कर सकते हैं, भले ही इम देशों में सुर्खियां लिखने वाले अब उनका स्वागत रॉक स्टार या अरबों का राजा कहकर न करें.
प्रांतीय विद्रोह के साथ अरब वसंत की शुरुआत करने वाले ट्यूनीशिया में पिछले हफ्ते एर्दोआन का स्वागत वहां की इस्लामी सरकार ने किया, जबकि इस्तांबुल की सड़कों पर पुलिस प्रदर्शनकारियों की पिटाई कर रही थी. लेकिन 2011 के विपरीत जब उनका स्वागत इस्लाम, लोकतंत्र और समृद्धि को जोड़ने वाले नेता के रूप में किया गया था, इस बार वहां ज्यादा उत्साह नहीं दिखा. ट्यूनिस में एक युवा मेट्रो ड्राइवर हाइकेल जबेली ने कहा, "एर्दोआन बस तसले में चमक की तरह थे. तकसिम स्क्वैयर की घटनाओं ने मानवाधिकारों की बहुत बात करने वाले एर्दोआन का असली चेहरा सामने ला दिया है. वे पाखंडी हैं, कभी हमारे मॉडल नहीं हो सकते."
काहिरा में जहां उदारवादियों को डर है कि राष्ट्रपति मुहम्मद मुर्सी इस्लामी कानून थोप देंगे, राजनीतिक कार्यकर्ता खालिद दाऊद का कहना है कि एर्दोआन द्वारा धर्मनिरपेक्ष तुर्कों के उपहास और पुलिस ज्यादतियों ने बहुत से मिस्रवासियों को उनके खिलाफ कर दिया है. 2011 में तहरीर स्क्वायर पर उनका जबरदस्त स्वागत हुआ था जब उन्होंने हुस्नी मुबारक से कहा था कि उनका समय पूरा हो चुका है. दाऊद कहते हैं, "हम उन्हें अब मॉडरेट इस्लामी नहीं समझते जो मौजूदा लोकतांत्रिक मॉडल को जारी रखना चाहता है." ट्यूनीशिया की सेकुलर पॉपुलर फ्रंट की हम्मा हम्मानी तो यहां तक कहती हैं कि एर्दोआन बेन अली की ही तरह तानाशाह हैं. वे मिस्र और ट्यूनीशिया के नेताओं से अलग नहीं हैं.
नौ महीने पहले अरब देशों में कराए गए एक सर्वे ने एर्दोआन को सबसे लोकप्रिय नेता पाया था. उन्होंने सऊदी शासक किंग अबदुल्लाह को इस जगह से हटा दिया था, जिन्हें पवित्र शहर मक्का का अभिभावक होने के कारण विशेष दर्जा हासिल है. बहुत से अरब अभी भी उनका बड़ा सम्मान करते हैं.
लीबिया में तानाशाह मुअम्मर गद्दाफी के खिलाफ विद्रोह की शुरुआत करने वाले शहर बेनगाजी में एक छात्र अली मोहम्मद के मुताबिक, "एर्दोआन को प्रदर्शनकारियों को रोकने की कोशिश करने का हक है. तुर्की की अर्थव्यवस्था को चोट पहुंच रही है, पर्यटन प्रभावित हो रहा है, यदि सरकार सोचती है कि यह खतरे में है तो उन्हें अधिकार है." इसके विपरीत अकाउंटेट का काम करने वाले आदिल अल दरीसी कहते हैं कि यह गलत है और एर्दोआन का शासन खत्म हो सकता है. तुर्क नेता सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद का विरोध करने के कारण विद्रोहियों में भी लोकप्रिय हैं. लेकिन तुर्की में निर्वासन में रह रहे विद्रोहियों को डर सता रहा है कि एर्दोआन के हटने का उन पर बुरा असर हो सकता है.
सऊदी राजनीतिक विश्लेषक खालिद अल दखील कहते हैं कि असद के हटने पर सीरिया में मुख्य भूमिका निभाने की एर्दोआन की उम्मीदों पर तुर्की अशांति पानी फेर सकती है. ये उम्मीदें विद्रोहियों को पूरी मदद देने में अरब और पश्चिमी देशों की आनाकानी से पहले ही कमजोर हुई हैं. फिर भी इस बात के संकेत नहीं हैं कि घरेलू अशांति और अरब उदारवादियों का असंतोष अंकारा को पड़ोसी देशों में आर्थिक और कूटनीतिक प्रभाव बढ़ाने से रोक पाएगा.
एमजे/एएम (डीपीए, रॉयटर्स)