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विवाद

अमेरिकी दबाव से निपट लेगा पाकिस्तान

१० जनवरी २०१८

सालों से मिल रही सैन्य मदद अगर अचानक बंद हो जाए तो किसी भी देश की आर्थिक सेहत को झटका लग सकता है. लेकिन पाकिस्तान के साथ तुरंत ऐसा नहीं होगा.

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Pakistan Anti-USA-Proteste in Karatschi
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Hassan

साल 2018 के पहले ट्वीट में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान को दी जा रही सैन्य सहायता बंद करने की घोषणा की. इसका असर पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर कितना पड़ेगा उस पर विश्लेषकों की अलग-अलग राय है. पर्यवेक्षकों के मुताबिक, अमेरिकी रोक का असर पाकिस्तान की आर्थिक सेहत पर बेहद ही सीमित होगा. इनका मानना है कि इसका एक बड़ा कारण चीन हो सकता है. चीन, पाकिस्तान का बेहद ही करीबी नजर आता है. लेकिन पर्यवेक्षक यह भी मानते हैं कि अगर अमेरिका ने पाकिस्तान से अपना कर्ज वापस मांग लिया तब पड़ोसी देश के लिए समस्या गहरा सकती है. 

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान पर आंतकवाद की उपेक्षा का आरोप लगाया था. साथ ही कहा था कि पाकिस्तान उन आतंकवादियों को अपने देश में पनाह देता है जिन्हें हम अफगानिस्तान में ढूंढ रहे हैं. इन्ही कारणों का हवाला देते हुए ट्रंप ने पाकिस्तान की मदद को रोकने की घोषणा की. पाकिस्तान के एक वरिष्ठ अधिकारी ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि अमेरिका के इस कदम के बाद, पाकिस्तान की तकरीबन 2 अरब डॉलर की फंडिंग दांव पर लग गई है.

सूत्रों के मुताबिक पिछले कुछ सालों में अमेरिकी मदद में की जा रही कटौती के बावजूद पाकिस्तान की आर्थिक सेहत पर चीन के चलते कोई बड़ा फर्क नहीं पड़ा. सूत्रों की मानें तो हाल के कदमों का नकारात्मक असर, मार्जिनल या बेहद ही कम समय तक परेशान करने वाला रहेगा. पाकिस्तानी उच्च अधिकारी के मुताबिक, "देश को अर्थव्यवस्था के मुकाबले मिलने वाली आर्थिक मदद कोई बहुत बड़ी नहीं है. इसका मतलब है कि दबाव सीमित है."

पाकिस्तान के पूर्व वित्त मंत्री हफीज पाशा ने बताया कि साल 2001 में, अफगानिस्तान में अमेरिकी कार्रवाई शुरू होने के बाद, देश को मिलने वाली मदद में इजाफा हुआ था. उन्होंने बताया, "साल 2010 में पाकिस्तान को अमेरिका ने 3-4 अरब डॉलर तक की मदद पहुंचाई. लेकिन इसके बाद से मदद में भारी गिरावट देखी गई और साल 2017 के दौरान यह गिरकर 75 करोड़ डॉलर पर आ गई." पाशा कहते हैं कि अगर इस आंकड़े की अर्थव्यवस्था के आकार से तुलना की जाए तो यह बेहद ही छोटा नजर आता है.  

वॉशिंगटन के हथियार

उधर अमेरिकी अधिकारियों ने भी समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में पाकिस्तान के खिलाफ उठाए जा सकने वाले अन्य कदमों की ओर इशारा किया. मसलन अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से दिए जाने वाला उधार.

विश्व बैंक के वरिष्ठ अर्थशास्त्री मोहम्मद वहीद के मुताबिक, "पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था फिलहाल स्थिर है और बढ़ रही है." उन्होंने कहा कि इस बीच पाकिस्तान को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि उसे विश्व बैंक, आईएमएफ और एशियाई विकास बैंक की ओर से पैसा मुहैया कराया जाता है. ये सभी वे संस्थाएं हैं जिन्हें अमेरिका से पैसा मिलता है. वहीद के मुताबिक फिलहाल पाकिस्तान के सामने ढांचागत समस्याएं है मसलन कर राजस्व में कमी, व्यापार घाटे की वृद्धि. उन्होंने कहा कि सरकार को इन समस्याओं पर जल्द ही काबू पाना होगा. 

विश्लेषकों की राय में पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार कमी आ रही है और ऐसे में अगर देश आर्थिक मोर्चे पर वृद्धि करना चाहता है तो उसे अन्य देशों से पूंजी उधार लेनी होगी. रक्षा विश्लेषक रहीमुल्ला यूसुफजई को लगता है कि अमेरिका संयुक्त राष्ट्र, आईएमएफ, विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक आदि में अपने रसूख का इस्तेमाल पाकिस्तान के खिलाफ कर सकता है.

चीन का साथ

पाकिस्तान की आर्थिक सलाहकारी परिषद में अर्थशास्त्री अशफाक हसन ने कहा, "पाकिस्तान को अमेरिका के साथ की जरूरत है, क्योंकि अमेरिका दुनिया की इन बड़ी संस्थाओं में बड़ा हिस्सा रखता है." हसन ने साल 1998 में पाकिस्तान पर आईएमएफ की ओर से लगाए गए 2 करोड़ डॉलर के जुर्माने का भी जिक्र किया. लेकिन अमेरिका के 9/11 हमलों के बाद आईएमएफ ने पाकिस्तान को तकरीबन 13.5 करोड़ डॉलर की राशि जारी की थी. क्योंकि उस वक्त पाकिस्तान, अफगानिस्तान में तालिबान और अल कायदा के खिलाफ छेड़ी गई अमेरिकी सैन्य कार्रवाई में साझेदार था. लेकिन, अब पाकिस्तानी अधिकारी चीन के साथ अपनी दोस्ती पर अधिक भरोसा दिखा रहे हैं. 

पाकिस्तानी नेता मुशाहिद हुसैन सईद ने चीन की ओर इशारा कर कहा कि अगर अमेरिका हमें डराता है, धमकाता है या हम पर आरोप लगाता है तो हमारे पास और भी विकल्प है. सईद ने कहा मदद बंद कर देना एक नाकाम फॉर्मूला है.

एए/ओएसजे (एएफपी)