अमेरिका ने यूनेस्को से रिश्ता तोड़ा
१३ अक्टूबर २०१७अमेरिकी विदेश मंत्रालय मुताबिक, "अलग होने का यह फैसला अचानक से नहीं लिया गया है, बल्कि यह यूनेस्को पर बढ़ते बकाये को लेकर अमेरिकी चिंताओं को दर्शाता है. संगठन में बुनियादी सुधारों की जरूरत है, इसके साथ ही यूनेस्को का रुख इस्राएल विरोधी है."
अमेरिकी घोषणा के कुछ देर बाद इस्राएल के प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू ने साफ किया कि इस्राएल भी यूनेस्को से अलग होने की तैयारी कर रहा है. नेतन्याहू ने एक बयान जारी कर इस अमेरिकी निर्णय को साहसी और नैतिक बताया है. संयुक्त राष्ट्र में इस्राएल के राजदूत डैनी डेनोन ने अमेरिकी फैसले को एक "टर्निंग प्वाइंट" बताया है. उन्होंने कहा, "आज संयुक्त राष्ट्र के लिए नया दिन है जहां उसे इस्राएल के खिलाफ भेदभाव की कीमत चुकानी होगी. अब यूनेस्को को एहसास होगा कि इस्राएल के खिलाफ बेतुके और शर्मनाक प्रस्तावों का क्या नतीजा हो सकता है."
अमेरिका और यूनेस्को की तनातनी कोई हाल में पैदा नहीं हुई है. साल 2011 में जब यूनेस्को ने वोटिंग के जरिये फिलिस्तीन को सदस्य बनाया था, उसके बाद से ही अमेरिका ने यूनेस्को की फंडिंग रोक दी थी. पिछले साल भी संयुक्त राष्ट्र एजेंसी को अमेरिकी और इस्राएली आलोचना का शिकार होना पड़ा था, जब इसने पूर्व येरुशलम को "अधिकृत फिलीस्तीन" कह दिया था. अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक वॉशिंगटन यूनेस्को से विशेषकर उन प्रस्तावों को लेकर नाराज है जो पवित्र स्थानों से यहूदी संबंधों को नकारते हैं और इस्राएल को कब्जा करने वाले देश के रूप में दिखाते हैं.
80 के दशक में पहले भी एक बार अमेरिका यूनेस्को से बाहर हो गया था लेकिन साल 2003 में दोबारा शामिल हुआ. लेकिन इस बार अमेरिका का यह निर्णय, फंड की कमी से जूझ रहे यूनेस्को की चिंता बढ़ा सकता है. यूनेस्को की ओर से अमेरिकी निर्णय पर अफसोस व्यक्त किया गया है.
यूनेस्को दुनिया भर में सांस्कृतिक महत्व की चीजों और जगहों को संरक्षित करने का काम करता है. यह एजेंसी लड़कियों की शिक्षा, वैज्ञानिक क्षेत्र और मीडिया की स्वतंत्रता जैसे मुद्दों पर भी काम करती है.
एए/आईबी (एएफपी, एपी, रॉयटर्स)