अब सैलानी बन रहे हैं आतंकियों का निशाना
१३ जनवरी २०१६एशिया और यूरोप के मुहाने पर स्थित तुर्की के महानगर इस्तांबुल के पुराने इलाके में टहलना कुछ लोगों के लिए दु:स्वप्न बन गया. एक आत्मघाती हमलावर ने पर्यटकों को देखकर उसके पास खुद को उड़ा लिया. मरने वालों में मुख्य रूप से जर्मन थे. ये इस साल पर्यटकों पर पहला हमला नहीं था. पिछले हफ्ते मिस्र के हुरगदा में दो आतंकियों ने पर्यटकों पर चाकूओं से हमला किया था. इसके पहले पर्यटकों से भरे एक रूसी यात्री विमान को भी आतंकवादियों ने उड़ा दिया था.
अरब देशों में लोकतांत्रिक आंदोलन अरब वसंत शुरू होने के पांच साल बाद भी यह इलाका शांत नहीं हो रहा है. इराक और सीरिया का गृहयुद्ध तो इस इलाके पर असर डाल ही रहा है, ईरान और सऊदी अरब का झगड़ा भी इलाके में शांति को प्रभावित कर रहा है. कट्टरपंथी संगठन इस्लामिक स्टेट पर पश्चिमी देशों की कार्रवाई ने पश्चिमी देशों और वहां के पर्यटकों को आतंकवादियों के हमले के केंद्र में ला दिया है. मकसद है पर्यटकों में असुरक्षा की भावना पैदा करना और संबंधित देशों को आर्थिक रूप से कमजोर करना.
इसका असर सीधे सीधे पर्यटन उद्योग पर हो रहा है. जर्मनी के पर्यटन शोध संस्थान के मार्टिन लोमन कहते हैं, "आतंकवाद अब सीधे पर्यटकों को निशाना बनाने लगा है." पर्यटन उद्योग में नर्वसनेस दिख रही है. जर्मन पर्यटन उद्योग में घबराहट के लक्षण है. इस साल पर्यटन की संभावना पिछले साल से खराब है और खासकर तुर्की और मध्य पूर्व के देशों के लिए टूर बुक किए जाने की गति धीमी है.
पिछले सालों में भूमध्यसागर पर स्थित देशों में पर्यटन से सबसे ज्यादा फायदा तुर्की को हुआ है. 2012 से हर साल जर्मनी से तुर्की जाने वाले पर्यटकों की संख्या बढ़ रही थी. 2015 में 55 लाख जर्मनों ने तुर्की में छुट्टियां बिताई. स्पेन और इटली के बाद तुर्की जर्मनों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय था. इस समय गर्मियों के लिए बुकिंग चल रही है. इस्तांबुल में हुए हमले का उस पर असर हो सकता है. लोमन कहते हैं, "इस तरह के हमलों का असर आम तौर पर खास इलाकों में और सीमित समय के लिए असर होता है."
विदेश मंत्रालय ने यात्रा न करने की चेतावनी नहीं दी है, लेकिन देशवासियों से ऐसी जगहों से बचने को कहा है जहां लोगों की भीड़ हो. यूं भी ज्यादातर पर्यटक तुर्की के पश्चिम में भूमध्य सागर के तट पर छुट्टियां बिताते हैं. इस्तांबुल पहले भी आतंकी हमलों का निशान रहा है, जर्मनी की सबसे बड़ी ट्रेवल एजेंसी टुई का कहना है कि इसके बावजूद वहां जाने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है. लेकिन यह कहना मुश्किल है कि इस हमले के बाद भी ऐसा होगा क्योंकि जर्मन पर्यटक छुट्टी की जगह बदलने के लिए जाने जाते हैं.
इसका उदाहरण ट्यूनीशिया है. साल में 400,000 सैलानियों के साथ वह जर्मनों के लिए महत्वपूर्ण ठिकाना था. लेकिन पिछले साल ट्यूनिस और सूस में हुए आतंकवादी हमलों के बाद बहुत से पर्यटकों ने वहां से मुंह मोड़ लिया. जर्मनी ने उस मामले में भी कोई चेतावनी नहीं दी थी, लेकिन जर्मन पर्यटकों के ट्यूनीशिया जाने में गिरावट दो अंको वाले प्रतिशत में रही, हालांकि टुई का कहना है कि वहां के होटलों की हालत सुधरी है और ऑफर भी बेहतर हुए हैं.
मिस्र में भी सत्ता परिवर्तन के बाद पर्यटन की हालत खराब हुई थी, लेकिन बाद में उसमें फिर सुधार आया था. पिछले हफ्ते हुए हमलों का असर आने वाले दिनों में पता लगेगा. 90 प्रतिशत जर्मन सैलानी हुरगदा और मर्स अलाम में छुट्टियां बिताते हैं. अगर हुरगदा के हमले के बाद वे फैसला बदलना शुरू करते हैं तो मिस्र पर इसका असर होगा. पड़ोसी देशों में अशांति का फायदा अपेक्षाकृत शांत मोरक्को को हुआ है जहां पर्यटकों की संख्या बढ़ी है.