अब पता चलेगा कैसे थे लियोनार्दो द विंची
६ मई २०१६एक ऐसा शख्स जिसने 500 साल पहले हेलीकॉप्टर और टैंक की कल्पना की थी, जिसकी बनाई पेंटिंग मोनालिसा दुनिया की शायद सबसे मशहूर कलाकृति है, एक ऐसा शख्स जिसके बारे में कहा जाता है कि उसने पश्चिमी सभ्यता को नया जन्म दिया, वह लियोनार्दो दा विंची असल में कौन था, कैसा दिखता था और कैसे काम करता था, हम कुछ नहीं जानते. यूं तो कलाकार अपनी कला के जरिए जाने जाते हैं. यूं तो कलाकार अपनी कृतियों में हमेशा जिंदा रहते हैं लेकिन यह तो अन्याय ही है न कि जिस इन्सान को लोग अब तक का सबसे बड़ा जीनियस कहते हैं, उसके बारे में कोई जानकारी तक नहीं है. इस अन्याय को दूर करने की कोशिश हो रही है. अपने-अपने क्षेत्र के सबसे बड़े वैज्ञानिक और विशेषज्ञ अब दा विंची नाम की इस पहेली को सुलझाने में जुट गए हैं. और उनका कहना है कि अगर सब ठीक रहा तो कुछ समय बाद हमारे सामने दा विंची का असली चेहरा मौजूद होगा.
लियोनार्दो प्रोजेक्ट
इस अभियान को लियोनार्दो प्रोजेक्ट नाम दिया गया है. इसमें आधुनिक तकनीकों और खासकर डीएनए का इस्तेमाल करके विंची के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटाई जाएगी. और इस जानकारी में सिर्फ दा विचीं की असली शक्ल तैयार करना ही नहीं है, वह क्या खाते थे, उनका दिमाग किस तरह से काम करता था, उनकी आदतें क्या थीं और यहां तक कि उनकी सेहत कैसी थी, सब बातों का पता लगाया जाएगा.
दा विंची की मौत 1559 में हुई थी. तब वह 67 साल के थे. उन्हें पैरिस के दक्षिण-पश्चिम में ऑमबुआस में दफनाया गया था. लेकिन सदियों पहले ही उनका शव खो गया था. इस साल अप्रैल में इटली के रिसर्चर्स ने ऐलान किया कि उन्होंने चार दशक की मेहनत के बाद दा विंची के रिश्तेदारों को खोज निकाला है. अब उन रिश्तेदारों के डीएनए की मदद से वैज्ञानिक दा विंची के बारे में पता लगाने की कोशिश करेंगे. लेकिन सिर्फ यह डीएनए ही काफी नहीं होगा. विशेषज्ञ दा विंची के पिता और बाकी रिश्तेदारों की कब्र खोज रहे हैं. इटली के एक पुराने चर्च के फर्श पर बीमिंग रडार डालकर यह खोज की जा रही है. अगर दा विंची के पिता की कब्र मिल जाती है तो यह बेहद अहम उपलब्धि होगी.
सफल तकनीक
द लियोनार्दो प्रोजेक्ट 2014 में शुरू हुआ था. इसमें फ्रांस, इटली, स्पेन, कनाडा और अमेरिका के कलाकार, साहित्यकार, इतिहासकार, माइक्रोबायोलॉजिस्ट, जीनोलॉजिस्ट और अन्य कई विशेषज्ञ शामिल हैं. और ये लोग यूं ही हवा में तीर नहीं चला रहे हैं. जिस तरह की तकनीकों पर ये लोग काम कर रहे हैं उन्हीं के जरिए मार्च 2015 में ऐतिहासिक लेखक मिगेल दे सर्वांतेस की कब्र खोज निकाली गई थी. मिगेल भी 1452 में पैदा हुए थे यानी उसी साल जब विंची जन्मे थे.
इस प्रोजेक्ट से जुड़े रिचर्ड लाउंजबरी फाउंडेशन के वाइस चेयरमैन जेसी औसुबेल को तो लगता है कि जो काम ये लोग कर रहे हैं, दा विंची होते तो खुद भी इस काम में जुड़ जाते. वह कहते हैं, ''मेरे ख्याल से ग्रूप में सभी लोग मानते हैं कि खुद को कला और विज्ञान की तरक्की के लिए झोंक देने वाले दा विंची अगर जिंदा होते तो खुद इस ग्रुप का नेतृत्व करते.''
ऑमबुआस में, जहां विंची को दफनाया गया था, एक चर्च में कुछ अवशेष रखे हैं. दावा किया जाता है कि ये दा विंची के ही अवशेष हैं. द लियोनार्दो प्रोजेक्ट नए मिले डीएनए से उनका मिलान करके पता लगाएगा कि कितना सच है और कितना मिथक.