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अफ़ग़ानिस्तानः सैनिकों को बचाते कुत्ते

११ फ़रवरी २०१०

बेहद ख़तरनाक समझे जाने वाले अफ़ग़ानिस्तान के दक्षिणी हिस्से में गश्त लगाने वाले विदेशी सैनिकों के लिए बम का पता लगाने वाला लैब्रेडोर कुत्ता किसी फ़रिश्ते से कम नहीं. ये कुत्ते अब तक सैंकड़ों लोगों की जान बचा चुके हैं.

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तस्वीर: AP

कॉरपोरल एंड्रू गज़मन बताते हैं कि बम का पता लगाने में ये कुत्ते 98 फ़ीसदी सही साबित हुए हैं. इसलिए मेटल डिटेक्टर या अन्य उपकरणों के ज़्यादा उन पर विश्वास किया जाता है. ये कुत्ते मुश्किल हालात में तालिबान की चुनौती से जूझ रहे विदेशी सैनिकों के पक्के वफ़ादार समझे जाते हैं. ये बारूदी सुरंगों और ज़मीन के नीचे दबे बमों को सूंघकर ढूंढ़ निकालते हैं. इन कुत्तों को पांच तरह के खतरों का पता लगाने की ट्रेनिंग दी गई है जिसमें सैन्य स्तर के प्लास्टिक बमों से लेकर तालिबान द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले बम भी शामिल हैं.

BdT Deutschland Zu viel frischer Hefeteig Hund mit 1,6 Promille in Klinik
तस्वीर: picture-alliance/ dpa

ब्रुक्स नाम के कुत्ते की उम्र तीन साल है और वह इराक़ औऱ अफ़ग़ानिस्तान में काम कर चुका है. लेकिन बूढ़े रिंगो को सब याद करते हैं क्योंकि उसने इराक़ में करीब तीस बारूदी सुरंगों का पता लगाया था. मज़े की बात यह है कि इन कुत्तों को फ़ौजी अफ़सरों की तरह रैंक दी गई हैं. जैसे बम विशेषज्ञ सार्जेंट क्रश और कॉरपरल गुडविन, दक्षिणी अफ़ग़ानिस्तान की धूल भरी सड़कों और पगडंडियों के बीच से सैनिकों को सुरक्षित तरीक़े से उनकी मंज़िल तक पहुंचाने की ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं. इनके दस्ते में चार कुत्ते हैं. सभी की उम्र चार साल के आसपास है.

अचानक क्रश तालिबान के प्रभाव वाले हेलमंद प्रांत में एक मैदान के कोने तक सूंघता हुआ पहुंचता है. उसका शरीर तन जाता है और अपनी पूंछ बाहर कर और पैरों से आगे की ओर इशारा करते हुए क्रश सामने लेट जाता है. तहकीक़ात करने पर पता चलता है कि इस इलाक़े में कभी अमोनियम नाइट्रेट रखा गया था जिस पर अब प्रतिबंध लगा दिया गया है. माना जाता है कि तालिबान इसका इस्तेमाल देसी बमों में करता है. कुछ ही दिनों पहले इस तरह के एक मैदान में कुछ सैनिक फंस गए थे और देसी बमों या इंप्रेवाइज़्ड एक्स्प्लोसिव डिवाइस पर पैर रखने की वजह से उनकी मौत हो गई थी. अब इस तरह के बमों को तलाशने के लिए और कुत्तों को तैनात किया जा रहा है.

ISAF Britische Truppen in südafghanischer Provinz Helmand
तस्वीर: picture-alliance/ dpa

बमों से सुरक्षा के अलावा ये कुत्ते सैनिकों के दोस्त भी हैं. सैन्य शिविरों में सैनिक कुत्तों के साथ खेलते हैं. अमेरिकी सरकार इन कुत्तों की ट्रेनिंग उनके बचपन से ही शुरू कर देती है और ढ़ाई साल की उम्र तक वे युद्ध के लिए तैयार हो जाते हैं. सैनिकों का मानना है कि कई बार उनकी ज़िंदगी इन कुत्तों के ही हाथों में होती है, या कहें इनकी नाक और इनकी सूंघने की शक्ति में! और बदले में ये कुछ नहीं मांगते. लैंस कॉरपरल ग्रिम के शब्दों में, "ये बस चाहते हैं कि कोई इनकी देखभाल करे."

रिपोर्टः एएफ़पी/एम गोपालकृष्णन

संपादनः ए कुमार