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अफ़ग़ानिस्तान के चलते दक्षिण एशिया पर जर्मन प्रेस की नज़र

११ सितम्बर २००९

11 सितंबर के इर्दगिर्द जर्मन प्रेस में फिर एकबार इस तथ्य पर ध्यान दिया गया कि आतंकवाद के कारण अफ़ग़ानिस्तान में सेना भेजी गई थी. इस सिलसिले में पूरे क्षेत्र की राजनीति पर नज़र डाली गई.

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नज़र अफ़ग़ानिस्तान परतस्वीर: AP

बर्लिन के दैनिक डी वेल्ट में कहा गया है कि नाटो के अभियान का लक्ष्य था कि तालिबान और अल क़ायदा के ख़िलाफ़ अपनी सुरक्षा के लिए अफ़ग़ान सरकार को समर्थ बनाना. फिर सेना की वापसी होनी थी. लेकिन यह एक ग़लतफ़हमी थी, क्योंकि तालिबान के लड़ाके पाकिस्तान से आते हैं, वहां अल क़ायदा का केंद्र है. और पाकिस्तान के लिए इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि अफ़ग़ान लड़कियां स्कूल जा पा रही हैं या नहीं. पाकिस्तान के लिए सवाल यह है कि काबुल की सरकार तटस्थ है, या फिर भारत परस्त नीति पर चल रही है. पाकिस्तान की नजर में हामीद करज़ई भारत के साथ हैं.

दैनिक नोए त्स्युरिषर त्साइटुंग में कहा गया है कि 1947 में देश के विभाजन के बाद जहां भारत में कमोबेश काम करता लोकतंत्र विकसित हुआ और अपने मज़बूत आर्थिक विकास के लिए पिछले दशकों में अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उसकी प्रतिष्ठा बढ़ी, पाकिस्तान अधिकतर सैनिक तानाशाहों और भ्रष्ट असैनिक सरकारों के अधीन रहा, जो देश को बदहाली के रास्ते पर ले गए. आज वह एक गहरे राजनीतिक और आर्थिक संकट में है. देश का एक-तिहाई हिस्सा इस्लामी चरमपंथियों के कब्ज़े में है, जहां से वे समूचे क्षेत्र के लिए ख़तरा पैदा कर रहे हैं.

भारत की चर्चा करते हुए दैनिक फ़्रांकफ़ुर्टर रुंडशाउ में पश्चिम बंगाल की उद्योग स्थापना की नीति पर नज़र डाली गई है. विप्रो और इंफ़ोसिस के लिए सरकार को अब ज़मीन देने से इंकार करना पड़ा है. इस सिलसिले में दैनिक का कहना है कि जबकि अधिकाधिक नेता उद्योगों की स्थापना का स्वागत कर रहे हैं, ग़रीब जनता को डर है कि इससे खेती से आमदनी का उनका परंपरागत ज़रिया ख़त्म हो जाएगा. जब मुआवज़े के बदले उनकी ज़मीन ली जाती है, उन्हें लगता है कि उनके साथ धोखा हो रहा है. नए कारखानों में नए रोज़गार की व्यवस्था होती है, लेकिन अनपढ़ किसानों या खेत मज़दूरों के लिए नहीं.

भारत में मोबाईल फ़ोन का बाज़ार तेज़ी से बढ़ता जा रहा है. आर्थिक दैनिक फ़ाइनेंशियल टाइम्स डॉएचलांड में कहा गया है कि हर माह 1 करोड़ 45 लाख नए ग्राहक बन रहे हैं. इस प्रकार भारत विश्व का सबसे तेज़ी से बढ़ता बाज़ार बन गया है. और यह विकास रुकने वाला नहीं है, क्योंकि ग्रामीण आबादी का सिर्फ़ 12 प्रतिशत अभी तक मोबाईल ग्राहक है. लेकिन बढ़ते बाज़ार के कारण नेट पर बोझ बढ़ता जा रहा है, सर्विस की सुविधा नहीं है. सरकार को भी मानना पड़ रहा है कि आईटी के क्षेत्र में अगुआ भारत दूरसंचार के क्षेत्र में अभी तक एक विकासशील देश है.

संकलन: अना लेमान

संपादन: उज्ज्वल भट्टाचार्य