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अपनी ही जासूसी क्यों करवाते हैं देश?

२९ मार्च २०१८

हर देश में मौजूद विदेशी दूतावास जासूसों का भी अड्डा होते हैं. लेकिन यह पता होने के बावजूद सारे देश ऐसी जासूसी को स्वीकार करते हैं, लेकिन क्यों?

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Symbolbild digitale Überwachung
तस्वीर: Evgeniya Ponomareva - Fotolia.com

जासूसी की अंतरराष्ट्रीय दुनिया बड़ी स्याह और आम तौर पर गैरकानूनी है. लेकिन इसके बावजूद हर देश इसे स्वीकार करता है. बकिंघम यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिक्योरिटी एंड इंटेलिजेंस स्ट्डीज के डायरेक्टर एंथनी ग्लीस इसे "जेंटलमैंस एग्रीमेंट" कहते हैं. यह कोई लिखित या आधिकारिक समझौता नहीं होता, बस "आप मुझ पर नजर रखें और मैं आप पर" वाली बात है.

डॉयचे वेले से बात करते हुए ग्लीस ने कहा, "जैसा कि सब जानते ही हैं कि दूतावास हमेशा तथाकथित इंटेलिजेंस अफसरों को नियुक्त करते हैं, यह देशों के बीच एक गैरआक्रामक संधि सी है, जिसके तहत सरकारें आपसी फायदे के लिए एक दूसरे के मामलों पर आंखें मूंद लेती हैं." अगर किसी देश को अपने जासूसों को विदेश भेजना है तो उसे विदेशी जासूसों को अपने देश में भी मंजूरी देनी होती है. अब यह जासूसों पर निर्भर करता है कि वह कितनी जानकारी किस ढंग से निकाल पाते हैं.

यही वजह है कि दूसरे देशों में जासूसों को अक्सर डिप्लोमैट या कूटनीतिक अधिकारी के तौर पर नियुक्त किया जाता है. उन्हें डिप्लोमैटिक इम्युनिटी और एक खास किस्म की सुरक्षा भी दी जाती है. कूटनीतिक संबंधों को लेकर 1961 की वियना संधि में इन बातों का जिक्र है.

बर्लिन में जर्मन स्पाई म्यूजियम के रिसर्च हेड क्रिस्टॉफर नेरिंग कहते हैं, "जासूसों को सबसे पहले कानून तोड़ना होगा, तभी उसके नतीजे भुगतने होंगे. अगर मेजबान देश किसी को खुफिया सर्विस के कर्मचारी के रूप में पहचान लेता है तो यह अपने आप में अपराध नहीं है- लेकिन एक जासूस के रूप में उसकी क्या गतिविधियां हैं, मसलन मुखबिर भर्ती करना, जासूसी के लिए तकनीक इंस्टॉल करना आदि हरकतें गैरकानूनी मानी जाती हैं."

सरकारें अक्सर विदेशी जासूसों को निष्कासित नहीं करती हैं. उन्हें आम तौर पर ऐसे जासूसों का पता रहता है. सरकारों को ये भी लगता है कि दूसरा देश भी निष्कासन की कार्रवाई करेगा. इससे दोनों के हित प्रभावित होंगे और राजनीतिक रिश्तों पर भी असर पड़ेगा. जासूस को निष्कासित करने के बाद सरकारों को यह भी पता नहीं चलेगा कि वह देश के भीतर क्या क्या कर रहा था. उसे निष्कासित करने पर कोई नया कर्मचारी आएगा, उसे समझने में काफी वक्त भी लगेगा.

लेकिन हाल में ब्रिटेन, अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस और नाटो देशों ने जिस तरह से बड़ी संख्या में रूसी जासूसों को निकाला है, उससे जासूसी के एक नए आयाम का पता चलता है. स्पाई म्यूजिम के रिसर्च हेड नेरिंग कहते हैं, "अगर एक बार में इतने लोगों का नकाब उतर जाए और उन्हें एक साथ निष्कासित कर दिया जाए तो इससे पता चलता है कि आपको अपने विरोधी के कामकाज करने का अंदरूनी तरीका पता चल चुका है." अब रूस को इन सभी देशों में बिल्कुल नए सिरे से जासूसी स्टाफ तैनात करना होगा और नई तकनीक का सहारा लेना होगा.

एक दूसरे की जासूसी के साझा समझौते के बावजूद दूसरे देशों में किसी की हत्या करना स्वीकार नहीं किया जाता. रूस ने सेरगई स्क्रिपाल और उनकी बेटी को जहर देकर यह लाइन लांघ दी. एंथनी ग्लीस कहते हैं, रूसी खुफिया एजेंसी हाल के सालों में बहुत ज्यादा खतरनाक साबित हो रही है, "रूस कम्युनिज्म से दूर जा चुका है लेकिन उसने इंटेलिजेंस और सिक्योरिटी कम्युनिटी जैसे विचारों को दूर नहीं किया है. केजीबी के पूर्व जासूस रह चुके हैं पुतिन अपने और रूस के हितों को बचाने के लिए सब कुछ कर रहे हैं."

रूसी एजेंटों को वापस भेजकर नाटो के सदस्य देशों ने यह संदेश दिया है कि मॉस्को ने जासूसी की दुनिया का अनकहा "जेंटलमैंस एंग्रीमेंट" तोड़ा है.

 

डेविड मार्टिन/ओएसजे