अपनी करेंसी से जर्मनों का लगाव
मुद्रा राष्ट्रीय पहचान का अहम कारक होती है जो लोगों को एक दूसरे से जोड़ती भी है. जर्मनी की पुरानी मुद्रा डॉयचे मार्क के साथ ऐसा ही है. करीब 16 साल से यूरो प्रचलन होने के बावजूद 12 अरब डॉयचे मार्क अभी भी बाजार में हैं.
एक मार्क के सिक्के
पुरानी यादें इन्हें जमा करने और संदूक में रखने की एक वजह हो सकती है. लेकिन अभी भी बहुत से लोग जिनमें बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक हैं, केंद्रीय बैंक बुंडेसबैंक में पुरानी करेंसी बदलने के लिए लाइन लगाते हैं.
यात्रा की यादगार
आज डॉयचे मार्क बहुत से लोगों के लिए यात्रा से वापस लाया गया सुवेनियर है तो कुछ के लिए कहीं ड्रॉवर में छुपा रह गया सिक्का या नोट या फिर पुराने जमाने की याद दिलाता सेफ के किसी कोने में बंद पड़ा रहा नोट.
सिक्कों की विरासत
ये भी हो सकता है कि कुछ सिक्के विरासत में मिले. एक ट्रक ड्राइवर ने एक फेनिष के इतने सिक्के परिवार के लिए छोड़े कि एक मुस्तैद बैंक क्लर्क ने ढाई हजार किलो सिक्कों को गिनने में छह महीने लगाए.
जर्मनों का प्यार
जर्मन नोट रखने और उसी में भुगतान करने के लिए जाने जाते हैं. हालांकि दो दो विश्वयुद्धों और आर्थिक उथल पुथल के कारण करेंसी के अवमूल्यन का उनका अनुभव रहा है. लेकिन फिर भी नोटों का प्यार खत्म नहीं हुआ.
अरबों के नोट
31 दिसंबर 2001 को जब डॉयचे मार्क का चलन रुका तो बाजार में 162.3 अरब मार्क के नोट चलन में थे. अब तक 92 प्रतिशत नोट बदले जा चुके हैं और बैंक के पास वापस लौट आए हैं. 12.6 अरब के नोट अभी भी लोगों के पास हैं.
डिमोनेटाइजेशन नहीं
डॉयचे मार्क का चलन भले ही बाजार में रुक गया हो, लेकिन वे मूल्यहीन नहीं हुए हैं. 20 जून 1948 के बाद जारी नोटों को अनिश्चित काल तक जर्मन केंद्रीय बैंक में यूरो में बदला जा सकता है. रेट है 1.95583 मार्क के बदले 1 यूरो.
यादों की कीमत
पिछले एक साल में लोगों ने करीब 9 करोड़ मार्क केंद्रीय बैंक की 35 शाखाओं में बदले हैं. 12.6 अरब मार्क अभी भी लोगों के पास है. उसमें करीब आधे सिक्कों में होगा, जिसे लौटाने का कोई मतलब नहीं. यादों की कीमत उससे ज्यादा होगी.
भरोसे की दलील
आखिर बैंक इन्हें अपने खातों में अभी भी क्यों रख रहे हैं? बैंक की दलील है कि डॉयचे मार्क में लोगों का भरोसा रहा है, जिसे वह तोड़ना नहीं चाहते. दूसरे, इसका इस्तेमाल पूर्वी यूरोप के कुछ देशों में रिजर्व के रूप में भी होता था. (एमजे/आईबी)