"अनचाही" लड़कियों की संख्या कैसे बढ़ गई?
३० जनवरी २०१८माना जाता है कि भारतीय समाज में बेटों को बेटियों से ज्यादा तवज्जो मिलती रहीं हैं लेकिन अब एक सरकारी आंकड़ा इसकी पुष्टि करता नजर आ रहा है. इसके मुताबिक देश में 2.10 करोड़ अनचाही लड़कियां हैं. अनचाही इसलिए क्योंकि वे उस वक्त पैदा हुईं जब उनके मां-बाप बेटे की जन्म की उम्मीद कर रहे थे. इसके अतिरिक्त देश की 6.3 करोड़ महिलाओं और लड़कियों के सांख्यिकीय आंकड़ें उपलब्ध ही नहीं हैं.
सरकार की वार्षिक आर्थिक समीक्षा में पहली बार महिलाओं की स्थिति पर चर्चा की गई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि बिगड़ते लैंगिक अनुपात के लिए लैंगिक आधार पर होने वाले एबॉर्शन भी जिम्मेदार हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन परिवारों में लड़के पैदा हो जाते हैं वह अपने परिवारों को बढ़ाने से रोक देते हैं लेकिन जहां लड़कियां पैदा होती हैं वे बेटे की चाह में अपने परिवार का आकार बढ़ा लेते हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में बच्चे के लिंग के आधार पर एबॉर्शन कराना गैर कानूनी है और डॉक्टर बच्चे का लिंग कानूनन जाहिर नहीं कर सकते. लेकिन रेडियोलॉजिस्ट के लिए ऐसा करना आसान होता है. लंबे समय से चली आ रही सांस्कृतिक मान्यताओं और वित्तीय भय के चलते भारतीय परिवार बेटी के जन्म से डरते हैं. दरअसल बेटियों को एक बड़ी जिम्मेदारी माना जाता है.
वहीं बेटे का जन्म परिवारों में खुशी और गर्व के रूप में मनाया जाता है. माना जाता है कि बेटियों की शादी में दहेज देना होगा जो एक बड़ा वित्तीय बोझ है. पिछले कई अध्ययन ये बता चुके हैं कि देश में लड़कियां, लड़कों के मुकाबले कम शिक्षा पाती हैं और उनके खाने-पीने से लेकर उनके स्वास्थ्य पर भी कम ध्यान दिया जाता है. यहां तक कि कई पढ़ी-लिखी महिलाएं भी मानती हैं कि उनके ऊपर लड़का पैदा करने को लेकर ससुराल से दबाव बनाया जाता है.
बच्चों की जन्म दर के आकलन पर आधारित इस रिपोर्ट में कहा गया है कि देश की 2.10 करोड़ लड़कियों को उनके परिवार नहीं चाहते थे. रिपोर्ट के लेखक और देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने कहा, "जेंडर का मसला देश के सामने एक बड़ी चुनौती है. हमें समाज द्वारा बेटों को दी जा रही तवज्जो जैसे मसले का सामना करना होगा."
रिपोर्ट में कहा गया है, ऐसा नहीं है कि अमीर तबके में लड़कों को मिलने वाली तवज्जो कम हो गई हो गई है या फिर लड़कियों को लेकर उनका रुख बदला है. महिला विकास के मामले में सबसे अच्छा प्रदर्शन भारत के पूर्वोत्तर राज्यों का रहा है. रिपोर्ट में उसे पूरे देश के लिए मॉडल कहा गया है.
एए/एके (एपी)