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अगली पीढ़ी को सलाह, आबादी को थाम लो

२ जुलाई २०११

लिंडाऊ में जब विज्ञान के नोबेल विजेता नए आविष्कारों की बात कर रहे हैं, तो यहां शामिल सबसे बुजुर्ग वैज्ञानिक को इस बात की चिंता खाए जा रही है कि इन आविष्कारों को देखने वाला कोई बचेगा भी या नहीं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

बेल्जियम के 93 साल के क्रिस्टियान डी डुवे के हाथ में भले ही वॉकिंग स्टिक हो लेकिन वह यूएसबी स्टिक चलाना भी खूब जानते हैं. कंप्यूटर पर शानदार प्रेजेंटेशन के दौरान डी डुवे ने भारी भरकम विज्ञान की जगह आम भाषा से अहम मुद्दों पर वैज्ञानिक तर्क दिए. उनकी बात तय वक्त से बहुत ज्यादा चलती रही लेकिन कोई भी अपनी सीट से नहीं हिला. पता नहीं कितनी बार तालियों की गड़गड़ाहट से हॉल गूंज उठा.उन्होंने अगली पीढ़ी के वैज्ञानिकों से अपील की कि सबसे बड़ी चुनौती बढ़ती आबादी को रोकना है.

Flash-Galerie Nobelpreisträger in Lindau
तस्वीर: dapd

1974 में मेडिकल का नोबेल पुरस्कार जीतने वाले डी डुवे ने कहा, "सब कुछ डूबा तो नहीं है लेकिन दीवार पर जो लिखा है, वह साफ पढ़ा जा सकता है. अगर हमारी बिरादरी स्वार्थ के अपने स्वभाविक गुण को नहीं छोड़ती है तो मानव सभ्यता और धरती पर जीवन की संरचना संकट में पड़ जाएगी. हो सकता है कि इसके बाद मानव जीवन ही नष्ट हो जाए."

लाइसोजोम और पेरेक्सीजोम की जटिल संरचना बताने वाले डी डुवे ने भविष्य की जो संरचना बताई, वह बेहद खतरनाक दिखती है. उनका कहना है कि धरती पर जल्द ही आबादी 10 अरब तक पहुंच जाएगी और इतने लोगों के लिए संसाधन नहीं हैं. उनका कहना है कि पहले भी धरती पर से प्रजातियां लुप्त हुई हैं, फिर यह सवाल क्यों उठता है कि अगर मानव भी खत्म हो जाएंगे तो क्या बिगड़ेगा. पर तजुर्बेकार वैज्ञानिक का कहना है कि पहले जो प्रजातियां लुप्त हुई हैं, उसकी आबादी हजारों में थी और कोई ऐसी प्रजाति नहीं खत्म हुई है, जिसकी संख्या 10 अरब हो. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 2050 तक धरती पर मनुष्यों की आबादी नौ अरब हो जाएगी.

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तस्वीर: dapd

डी डुवे बढ़ती आबादी की दर को देख कर घबराते हैं, "मेरे जीवनकाल में ही धरती पर आबादी चार गुना बढ़ गई. हम कहां जा रहे हैं." उनका कहना है कि जब हम इतनी भविष्यवाणियां कर सकते हैं, तो फिर भविष्य दुरुस्त क्यों नहीं कर सकते. क्रिस्टियान डी डुवे 1917 में लंदन के पास पैदा हुए. हालांकि उनके मां बाप बेल्जियम के थे लेकिन प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान वे इंग्लैंड चले गए थे. बाद में डी डुवे बेल्जियम लौट गए.

बेहतर भविष्य की परिकल्पना में डी डुवे महिलाओं का बड़ा रोल देखते हैं. उनका कहना है कि महिलाओं में नेतृत्व की नैसर्गिक क्षमता है, "मैं किसी समाजसेवी या नेता की हैसियत से नहीं, वैज्ञानिक की हैसियत से कह रहा हूं. स्तनधारियों में मादा वर्ग का रुझान गलत काम की ओर कम होता है. वे कम आक्रामक होती हैं. वे बच्चों को जन्म देती हैं, वे बच्चों को बुनियादी शिक्षा देती हैं. उन्हें विश्व का नेतृत्व करने का अधिकार है. मुझे लगता है कि उन्हें एक मौका दिया जाना चाहिए."

आबादी को मौजूदा विश्व की सबसे बड़ी समस्या बताते हुए डी डुवे ने कहा कि बेहतर शिक्षा से इस पर काबू पाया जा सकता है और धर्म इसमें बड़ा रोल अदा कर सकता है, जो अपने काम से भटक गया है, "धर्म अपना काम ठीक ढंग से नहीं कर रहा है. मुझे लगता है कि वे अपनी विचारधाराओं और नियमों के प्रचार में सारा वक्त लगा दे रहे हैं. वे मानव जाति को बचाने के बदले खुद को बचाने का काम कर रहे हैं." उन्होंने एक मिसाल देते हुए कहा कि अगर एक अरब लोग कैथोलिक धर्म का पालन करते हैं, तो कैथोलिक चर्च कम से कम एक अरब लोगों को तो शिक्षित कर ही सकता है. उनके पास विशाल क्षमता और महान शक्ति है.

डी डुवे ने कहा कि हम अभी चांद या मंगल पर नहीं जा रहे हैं. इसी छोटी सी धरती पर बहुत से लोगों को रहना है और आबादी को नियंत्रण करना बहुत जरूरी है. डी डुवे ने हॉल में जमा अगली पीढ़ी के रिसर्चरों और भावी वैज्ञानिकों को सीधे संबोधित करते हुए अपनी बात कुछ यूं खत्म की, "मेरी पीढ़ी ने, हमारी पीढ़ी ने, दुनिया को खराब कर दिया है. लेकिन आप इसे बेहतर बना सकते हैं. भविष्य आपके हाथ में है. मेरी शुभकामनाएं."

रिपोर्टः अनवर जे अशरफ, लिंडाऊ (जर्मनी)

संपादनः एन रंजन

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