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अंगेला मैर्केल में दम है

येंस थुराऊ
१२ फ़रवरी २०१८

जर्मनी में बड़ी पार्टियों के बीच सरकार बनाने का समझौता हो जाने के बाद सीडीयू और एसपीडी में घमासान मचा है, लेकिन चांसलर मैर्केल अद्भुत संयम दिखा रही हैं. डॉयचे वेले के येंस थुराऊ का कहना है कि मकसद पद पर बने रहना है.

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Angela Merkel beim ZDF
तस्वीर: picture-alliance/ZDF/T. Ernst

टीवी चैनल जेडडीएफ को दिए गए चांसलर मैर्केल के इंटरव्यू को सराहा जाए या भौचक्का हुआ जाए? मैर्केल का हफ्ता बेमिसाल रहा है, उन्होंने एसपीडी के साथ गठबंधन समझौता किया, जिसमें चांसलर के पद को छोड़कर सभी महत्वपूर्ण मंत्रालय एसपीडी के लिए छोड़ दिया. विदेश मंत्रालय और वित्त मंत्रालय एसपीडी को गए जबकि सितंबर में हुए चुनावों में सीडीयू स्पष्ट विजेता रही थी. एसपीडी के लिए असाधारण सफलता लेकिन इसके बावजूद एसपीडी में खुलेआम घमासान मचा है.

सीडीयू भी संतुष्ट नहीं है. मैर्केल की सौदेबाजी के तरीके की आलोचना हो रही है, वह भी ऐसी पार्टी में जिसने अपने अध्यक्ष और चांसलर के लिए वफादारी डीएनए में लिखवा रखी है और अब मैर्केल ने कुछ बातें अद्भुत बेबाकी से कही. सिर्फ अत्यंत तकलीफदेह रियायतों के साथ ही सहमति संभव हुई. उन्होंने कहा कि 12 घंटे तक मंत्रालयों के बंटवारे पर बातचीत होती रही, और यह ऐसे कहा जैसे वह यह बहस बाहर से देखती रही हों. चलते चलते उन्होंने पार्टी के अंदर उनके बाद के समय पर चल रही बहस को अस्वीकार कर दिया कहा कि वे चार साल चांसलर दफ्तर में रहेंगी और पार्टी का अध्यक्ष पद भी नहीं छोड़ेंगी.

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येंस थुराऊ

आलोचना के बावजूद चुनौती नहीं

कम से कम उन्होंने इतना तो समझा है कि सीडीयू में कानाफूसी हो रही है. वे येंस श्पान और जूलिया क्लॉकनर जैसी युवा पार्टी सदस्यों को जानती हैं जो पार्टी के नवीकरण और स्पष्ट छवि की मांग कर रहे हैं. अब उन्होंने नई सरकार बनाते समय पद के बंटवारे में युवा लोगों का ध्यान रखने की बात कही है. हालांकि यह बात पहले ही सामने आई थी कि क्लॉकनर को कृषि मंत्री बनाया जा सकता है, लेकिन फिर भी चांसलर की घोषणा का यंग यूनियन ने जबरदस्त स्वागत किया है. मैर्केल बड़ी आसानी से उन्हें अपने पक्ष में ले आईं, इससे उनके ताकत का पता चलता है.

मैर्केल का ये इंटरव्यू कितना भी उबाऊ लगे, लेकिन दुनिया में कोई इस बात को नहीं समझ पाएगा कि जर्मनी के नेताओं के लिए अभी सरकार बनाना कितना जरूरी है. चुनाव में हार और पार्टी के अंदर के झगड़ों के कारण मुश्किल में पड़े एसपीडी को भी कुछ खास चाहिए ताकि वह गठबंधन पर अपने सदस्यों की मुहर लगवा सके. इसलिए मैर्केल को रियायतें देनी पड़ीं, दर्द की सीमा आ जाने तक और उसके बाद भी. चेहरे के भावों से मैर्केल ने यही संदेश दिया, उनमें माद्दा है.

और सचमुच, इसे चांसलर ने सैकड़ों बार साबित किया है. हो सकता है कि वे संयम और यथार्थवाद पर बहुत ज्यादा जोर दे रही हैं, लेकिन मुझे आश्चर्य नहीं होगा यदि वे इस बार भी अपने तरीके से कामयाब रहेंगी. एसपीडी भारी तकलीफ के बावजूद गठबंधन के लिए हां कह देगी, मामला ठंडा पड़ जाएगा, लोग शांत हो जाएंगे, मैर्केल अपने आलोचकों के साथ पहले से ज्यादा बातचीत करेंगी, बदले में और चार साल वे चांसलर और पार्टी प्रमुख बनी रहेंगी. यही संभावित विकल्प है. ये कोई संतोष की बात भले ही न हो लेकिन नए चुनाव के उथलपुथल से ज्यादा अच्छा है.