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क्या गूगल को नहीं जलवायु परिवर्तन पर भरोसा?

४ मई २०१७

गूगल जैसी बड़ी कंपनियां आज ऐसे कई संगठनों में बड़े स्तर पर निवेश कर रही हैं, जो जलवायु परिवर्तन को लेकर संदेह जताते हैं. इनमें कुछ ऐसे संस्थान भी हैं जो यह मानते ही नहीं कि दुनिया में जलवायु परिवर्तन की समस्या भी है.

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तस्वीर: Imago/Zumapress

वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं का एक बड़ा वर्ग मानता है कि जलवायु परिवर्तन के लिये मानवीय गतिविधियां जिम्मेदार रहीं है. हालांकि कुछ ऐसे समूह भी हैं जो जलवायु परिवर्तन से जुड़े इन तथ्यों को नकारते हैं. फिर भी जब गूगल, फेसबुक जैसी बड़ी बड़ी कंपनियां इन्हें समर्थन देती हैं तो हैरानी होती है.

थिंक टैंक इसमें अहम भूमिका निभाते हैं. वे पहले स्वयं को निष्पक्ष विशेषज्ञों वाले वैज्ञानिक संगठनों के रूप में पेश करते हैं, लेकिन हकीकत में सभी थिंक टैंक एक स्पष्ट एजेंडे पर काम करते हैं. अमेरिका में इन समूहों का लोगों की राय और राजनीति पर खासा प्रभाव नजर आता है इसलिये भी इनकी भूमिका अहम हो जाती है. ऊर्जा कंपनियां, कार निर्माता कंपनियां और तंबाकू उद्योग अपने लाभ के चलते अकसर ऐसी बातों और दावों को नकारते आये हैं. फॉक्सवागन, मोनसेंटो जैसी कंपनियां संदेह जताने वाले ऐसे बहुत से थिंक टैंकों के साथ खड़ी हैं. लेकिन हैरानी की बात है कि अपने आप को जाहिर तौर पर ग्रीन कहने वाली गूगल, फेसबुक और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियां भी जलवायु परिवर्तन पर संदेहास्पद राय रखने वाले संगठनों में निवेश करती हैं.

CATO Institute
तस्वीर: picture alliance/AP Photo

दरअसल ये वही गूगल है जो अपनी ऊर्जा जरूरतों को नवीकरणीय ऊर्जा से पूरा करने का दम भरती है, साथ ही अपनी कंपनी वेबसाइट पर बताती है कि पारिस्थितिकी स्थिरता उसके लिये कितना महत्वपूर्ण मुद्दा है. लेकिन गूगल अतिरूढ़िवादी कैटो इंस्टीट्यूट और साथ ही कॉम्पिटीटिव इंटरप्राइज इंस्टीट्यूट (सीईआई) में निवेश करती है. ये दोनों ही संस्थान जलवायु परिवर्तन पर संदेहास्पद राय रखने वाली सबसे बड़ी संस्थाएं हैं. "वॉशिंगटन पोस्ट" के मुताबिक साल 2013 में सीईआई में गूगल ने सबसे अधिक निवेश किया था. उल्लेखनीय है कि यह इंटरनेट कंपनी अमेरिकी चैंबर ऑफ कॉमर्स की सदस्य भी है जो दुनिया का बड़ा लॉबी ग्रुप है. इसे अधिकतर रिपब्लिकन राजनेताओं का समर्थन प्राप्त है, जो जलवायु परिवर्तन को नकारते हैं और जिन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की जलवायु परिवर्तन पर ढील देने वाली नीतियों को अपना समर्थन दिया है.

हालांकि गूगल के प्रवक्ता ने इस मसले पर जवाब में यही कहा कि हम बहुतेरे संगठनों के साथ काम करते हैं, ऐसे में जरूरी नहीं है कि हम सभी संगठनों के साथ 100 फीसदी सहमत हो. लेकिन सवाल अब भी बना हुआ है कि कैसे गूगल जैसी कंपनियों ने जलवायु परिवर्तन और संरक्षण पर विपरीत विचारधारा रखने वाले संगठनों में इतना पैसा लगाया.

विशेषज्ञों के मुताबिक, यूरोपीय देशों के मुकाबले, अमेरिकी राजनीति में पैसा एक बड़ी भूमिका अदा करता है और यही कारण है कि कंपनियों का राजनीति पर खासा प्रभाव होता है और इन्हीं में एक गूगल भी है.

(इनेस ईजेले/एए)