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ब्रिटेन में बेघर लोगों की बढ़ती संख्या बनी संकट

११ मई २०१८

ब्रिटेन में बेघर लोगों की बढ़ती तादाद एक राष्ट्रीय संकट का रूप लेती जा रही है. इस बात को ज्यादातर राजनेता भी मानते हैं और स्वयंसेवी संगठन भी. आलोचक इसके लिए प्रधानमंत्री टेरीजा मे के रवैये को जिम्मेदार मानते हैं.

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UK Obdachlos
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot

ब्रिटेन में ऐसे परिवारों की संख्या 78 हजार के आसपास है जिनके पास अपना घर या मकान नहीं है और वे अस्थायी रूप से कहीं रह रहे हैं. वहीं नौ हजार लोग ऐसे हैं जो सड़कों, पार्कों या फिर बस स्टैंड पर खुले आकाश के नीचे सोते हैं. यही नहीं, कुछ ऐसे 'छिपे हुए बेघर' लोग भी हैं जिनकी गिनती सरकारी आंकड़े में नहीं की गई है. दिसंबर में बेघर लोगों पर आई एक रिपोर्ट में अलग अलग पार्टियों के सांसदों ने कहा कि इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री टेरीजा मे की सरकार का रवैया बेहद 'उदासीन है जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता'.

ब्रिटेन में संसदीय लोक लेखा समिति की रिपोर्ट में कहा गया है, "बेघर लोगों का संकट कुछ समय से लगातार बढ़ रहा है. मिसाल के तौर पर 2010 से अस्थाई आसरों में रहने वाले लोगों की संख्या में 60 फीसदी की वृद्धि हुई है जबकि मार्च 2011 से खुले आसमान के नीचे सोने वाले लोगों की संख्या में 134 फीसदी इजाफा हुआ है." सासंदों का कहना है कि बेघर लोगों की समस्या से निपटने के लिए स्थानीय प्रशासन के साथ मिल कर काम करने की सरकार की 'हल्की फुल्की कोशिशें निश्चित तौर पर नाकाम' रहीं हैं.

संसदीय समिति की अध्यक्ष और विपक्षी लेबर सांसद मैग हिलर ने कहा कि सरकार को उन लोगों के लिए वास्तविक आवास विकल्पों की किल्लत की तरफ ध्यान देना ही होगा जो बेघर होने के कगार पर हैं या फिर पहले से ही अस्थायी बसेरों में रह रहे हैं. वह कहती हैं, "बुनियादी बात यह है कि किफायती दामों में खरीदने या फिर किराए पर देने के लिए घर मुहैया कराने में बाजार की नाकाम पर नियंत्रण करना होगा."

सरकार ने इस समिति की ज्यादातर सिफारिशों को मान लिया है और वह इस साल बेघर लोगों से जुड़ी समस्या को कम करने के लिए रणनीति तैयार करने को राजी हो गई है. इसके लिए सरकार ने एक टास्क फोर्स भी बनाई है जो ऐसी रणनीति तैयार करने पर काम करेगी ताकि 2027 तक ब्रिटेन में कोई भी सड़कों पर न सोए. मार्च महीने से सरकारी आंकड़े बताते हैं कि ज्यादातर लोग इसलिए बेघर होते हैं क्योंकि उनके रेंट कॉन्ट्रैक्ट खत्म हो जाते हैं. पिछले साल 16 हजार से ज्यादा परिवारों को इसी वजह से अपने मकान छोड़ने पड़े.

हाउसिंग के मुद्दे पर काम करने वाली एक गैर सरकारी संस्था 'शेल्टर' का कहना है कि बढ़ते किरायों, सामाजिक कल्याण से जुड़े कार्यक्रमों में बहुत अधिक बदलाव और किफायती दामों पर मिलने वाली घरों की किल्लत ने इस समस्या को संकट बनाने में योगदान दिया है. शेल्टर की चीफ एग्जीक्यूटिव पॉली नीटे का कहना है, "आपकी आदमनी का इतना बड़ा हिस्सा किराए के रूप में चला जाता है कि फिर आपको खाने का प्रबंध करने और दूसरे बिल चुकाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है." वह कहती हैं, "और हजारों परिवार बेघर लोगों की कतार में शामिल न हो जाए, इसके लिए सरकार को नए घर बनाने के काम पर जुट जाना चाहिए. ऐसे घर परिवार किफायती दामों पर किराए पर ले सकें. साथ ही किराए पर मकान देने की व्यवस्था को ज्यादा स्थिर और सुरक्षित बनाए जाने की भी जरूरत है."

एके/एमजे (डीपीए)