"लड़ाई के वे दिन आज से बहुत अच्छे थे"
१४ अप्रैल २०१७इन बच्चों का कहना है कि लड़ाई के दिनों में वह अपने परिवार के साथ ज्यादा घुल मिल कर रहते थे और उनका ख्याल रखा जाता था. लेकिन लड़ाई खत्म होने के बाद सिर्फ हिंसा, कलंक और तिरस्कार की उनके हिस्से आया है. यह बात कनाडा की मैकगिल यूनिवर्सिटी के एक शोध से उभरकर सामने आयी है.
इस शोध में ऐसे लगभग 60 लोगों से बात की गयी है, जो युद्ध की संतानें हैं. इन लोगों की मांएं वे महिलाएं थीं, जिनका विद्रोही संगठन लॉर्ड रेजिस्टेंस आर्मी (एलआरए) के विद्रोहियों ने अपहरण और बलात्कार किया. और उसी बलात्कार से ये बच्चे पैदा हुए. एलआरए ने युगांडा में दो दशक तक बर्बर हिंसक मुहिम चलाई, लेकिन 2005 में युगांडा ने उसे खदेड़ दिया.
मैकगिल स्कूल ऑफ सोशल साइंस वर्क में प्रोफेसर मरियम डेनोव इस शोध रिपोर्ट की मुख्य लेखिका हैं. उनका कहना है, "यह बात परेशान करने वाली है कि ये बच्चे और युवा लड़ाई के उन दिनों को शांति काल से बेहतर बता रहे हैं, जब हिंसा, उथलपुथल, भुखमरी, अभाव और खूनखराबा अपने चरम पर था."
इनमें से कुछ बच्चों का पिता तो एलआरए का नेता जोसेफ कोनी ही था. लड़ाई खत्म होने के बाद ऐसे बहुत से बच्चों की जिंदगी आसान नहीं रही. बाद में उनके परिवारों ने उन्हें खुले दिल से नहीं अपनाया. शोधकर्ताओं ने एक बच्चे के हवाले से लिखा, "मेरे परिवार में हम तीन बहन भाइयों को बहुत नफरत की निगाह से देखा जाता है, क्योंकि हमारा जन्म (एलआरए की) कैद के दौरान हुआ था. मेरे रिश्तेदार हमें बहुत मारते हैं और कहते थे कि हमारी जान ले लेंगे."
इन बच्चों का कहना है कि युद्ध के बाद उनके परिवारों और समुदाय ने उन्हें खतरनाक बागियों के बच्चे ही समझा है जो जंगलों से अपने साथ बुरी बातों को लेकर आए हैं. एलआरए आम नागरिकों को बर्बर यातनाएं देने और बच्चों का सैनिकों के तौर पर इस्तेमाल करने के लिए बहुत बदनाम था. बहुत से बच्चों को अपने दोस्त और परिवारों को मारने के लिए मजबूर किया गया.
एलआरए के एक कमांडर डोमेनिक ओंगवेन के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय अपराध अदालत में मुकदमा चल रहा है. युद्ध अपराध के आरोप झेलने वाले ओंगवेन को भी अगवा करके बाल सैनिक के तौर पर संगठन में भर्ती कराया गया था.
रिसर्च के दौरान पता चला कि बलात्कार और जबरन शादियों से पैदा होने वाले इन बच्चों के पिता उनका बहुत ख्याल रखते थे. वे उन्हें जरूरत की सभी चीजें लाकर देते थे, जो लड़ाई खत्म होने के बाद उन्हें कभी नसीब नहीं हुईं.
शोधकर्ता एक बच्चे के हवाले से कहते हैं, "जिंदगी इतनी भी बुरी नहीं थी क्योंकि तब मेरे पिता मेरे पास थे. जो कुछ भी वे लेकर आते, मुझे जगाकर खिलाते थे. वे मुझे बहुत प्यार करते थे." इस शोध के दौरान 12 से 19 साल के जिन बच्चों से बात की गई है, उनके बचपन का शुरुआती समय एलआरएर के लड़ाकों के साथ ही बीता था.
एके/आरपी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)