'बच्चों के हत्यारे' भारतीयों से फोल्क्सवागन ने व्यापार रोका
२९ सितम्बर २०१६थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन की एक खोजी रिपोर्ट में पता चला था कि भारत में अवैध माइका खदानें चल रही हैं जिनमें बच्चे काम कर रहे हैं और मारे जा रहे हैं.
इस बारे में बिहार, झारखंड, राजस्थान और आंध्र प्रदेश में पत्रकारों ने पड़ताल की थी. तीन महीने तक चली इस पड़ताल में पता चला कि जून महीने से माइका खदानों में कम से कम सात बच्चों की मौत हुई. माइका का इस्तेमाल कार पेंट में चमक लाने के लिए किया जाता है.
जर्मन कार कंपनी फोल्क्सवागन के कहने पर मानवाधिकार संगठन टेरे डेस होमेस ने कंपनी के सप्लायर्स के बारे में एक अध्ययन किया. कंपनी की प्रवक्ता लेसली बोथ्गे ने बताया कि इस अध्ययन की रिपोर्ट के आधार पर कंपनी ने सप्लायर्स से करार तोड़ लिया है. उन्होंने कहा कि फोल्क्सवागन और उसकी सहयोगी कंपनियां इस बात को सुनिश्चित करना चाहती थीं कि जो माइका वे खरीद रहे हैं वह वैध खदानों से आ रहा है और वहां बच्चों से काम नहीं कराया जा रहा है. बोथ्गे ने बताया, "सेकंड टियर सहयोगी (यानी जिनसे वे तैयार प्रोडक्ट्स लेते हैं) स्तर पर भी यही मानक सुनिश्चित करने के लिए कोशिशें की जा रही हैं. कुछ सप्लाई चेन के साथ करार फिलहाल निलंबित कर दिए गए हैं."
तस्वीरों में देखिए, कितनी बुरी है भारत में बाल मजदूरी
बोथ्गे ने कहा कि फोल्क्सवागन को पेंट सप्लाई करने वाली कंपिनयां इस बात पर विचार कर रही हैं कि कैसे एक प्लैटफॉर्म तैयार किया जाए जहां उद्योग और उससे जुड़े सभी लोग मिलकर बात कर सकें और माइका खदानों में बाल मजदूरी की समस्या का हल निकाल सकें. उन्होंने कहा, "एक टिकाऊ हल तक पहुंचना आसान नहीं है. इसमें वक्त लगेगा."
भारत माइका के सबसे बड़े उत्पादकों में से है. हाल के दिनों में माइका की मांग में खासी बढ़ोतरी हुई है क्योंकि इसे पर्यावरण के अनुकूल माना जाता है. लेकिन मजदूरों के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठनों का कहना है कि भारत का 70 फीसदी माइका अवैध खदानों से आता है.
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फोल्क्सवागन के इस फैसले के बाद दुनियाभर की बड़ी कंपनियां भारत से माइका खरीदने को लेकर सचेत हो गई हैं और अपने अपने सप्लायर्स की जांच करवा रही हैं. इन कंपनियों में चीन की फुजियान कुंचाई मैटिरियल टेक्नोलॉजी कंपनी लिमिटेड, जर्मन दवा कंपनी मर्क और कॉस्मेटिक उत्पाद बनाने वाली लॉरियाल शामिल हैं.
वीके/एके (रॉयटर्स)