मधुमेह और कैंसर में लाभकारी हो सकती है यह मिर्च
११ जनवरी २०१८रायपुर के नागार्जुन कॉलेज ऑफ साइंस में बायोटेक्नोलॉजी के छात्र रामलाल लहरे ने इस मिर्ची की खोज की है. लहरे सरगुजा के वाड्रफनगर में इस मिर्ची की खेती कर रहे हैं. इस मिर्ची की एक खासियत यह भी है कि यह ठंडे क्षेत्र में पैदा होती है और कई सालों तक इसकी पैदावार होती है. छत्तीसगढ़ के जिला बलरामपुर कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर केआर साहू ने लहरे को शोध में तकनीकी सहयोग और मार्गदर्शन देने का आश्वासन दिया है.
लहरे ने एक साक्षात्कार में कहा कि पहाड़ी इलाकों में पाई जाने वाली तीखी मिर्ची को सरगुजा क्षेत्र में जईया मिर्ची के नाम से जाना जाता है. उन्होंने कहा कि इस मिर्ची में प्रचुर मात्रा में कैप्सेसीन नामक एल्कॉइड यौगिक पाया जाता है, जो शुगर लेवल को कम करने में सहायक हो सकता है. इस मिर्ची का गुण एन्टी बैक्टेरियल और कैंसर के प्रति लाभकारी होने की भी संभावना है. इसमें विटामिन ए, बी और सी भी पाए जाते हैं. इसके सभी स्वास्थ्यवर्धक गुणों को लेकर रिसर्च की जा रही है.
लहरे ने कहा कि इस मिर्ची के पौधे की उंचाई दो से तीन मीटर होती है. साथ ही इसके स्वाद में सामान्य से ज्यादा तीखापन होता है. इसका रंग हल्का पीला होता है और आकार 1.5 से 2 सेंटीमीटर तक होता है. इसके फल ऊपरी दिशा में साल भर लगते रहते हैं. यूनिवर्सिटी के बायोटेक्नोलॉजी विभाग की अध्यक्ष डॉक्टर संजना भगत ने कहा कि जब तक मिर्ची पर रिसर्च पूरी नहीं हो जाती, कैंसर के प्रति इसके लाभकारी होने का दावा नहीं किया जा सकता. अभी मिर्ची पर रिसर्च जारी है.
वहीं लहरे ने कहा कि इस मिर्ची के तीखेपन को चखकर ही जाना जा सकता है कि यह सामान्य मिर्ची से अलग है. इसकी पैदावार के लिए शुष्क और ठंडे वातावरण की जरूरत होती है. इस मिर्ची में सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है. मानसून की वर्षा इसके लिए पर्याप्त रहती है. केवल नमी में यह पौधा सालों जीवित रहता है और फलता है. कई क्षेत्रों में यह धन मिर्ची के नाम से भी जाना जाता है. लेकिन प्राकृतिक कारणों से यह विलुप्त हो रहा है. पहले गौरैया-चिरैया बहुतायत में रहती थी और मिर्ची चुनकर खाती और मिर्ची लेकर उड़ जाती थीं. जहां-जहां चिड़िया उड़ती, वहां-वहां मिर्ची के बीज फैल जाते और मिर्ची के पौधे उग जाते थे. अब ये लुप्त होने की कागार पर हैं, जिसके कारण यह मिर्ची कम पैदा हो रही है. इसलिए अब इसे व्यावसायिक रूप से पैदा करने की जरूरत है.
कृष्ण कुमार निगम/आईबी