सरायेवो में युद्ध के दर्द का म्यूजियम
१० फ़रवरी २०१७कहने को तो यहां की चीजें बहुत सामान्य लगती हैं. जैसे कि बैले स्लिपर्स, टिन वाले खाने के डिब्बे, एक बच्ची की बनाई ड्रॉइंग्स. लेकिन बोस्निया के लोगों के लिए ये चीजें जख्म हैं, हरे जख्म जिनसे कभी भी दर्द रिसने लगता है. ये चीजें बच्चों की नजर से बोस्निया के युद्ध को देखने की कोशिश है. जैसे कि म्यूजियम में एक अधूरा खत है. 20 साल से एक महिला एक खत को संभाले हुए है. महिला की मां ने यह खत लिखना शुरू किया था कि तभी उनके घर पर बम गिरा और मां खत्म हो गई.
बाल्कन देश बोस्निया हर्जेगोविना 1992 से 1995 के बीच तीन साल के लिए गृहयुद्ध की आग में जलता रहा था. उस दौर की चीजें म्यूजियम में सहेजने वाले 28 साल के याशेंको हलीलोविच कहते हैं, "आपको भरोसा पैदा करना पड़ता है."
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गृहयुद्ध के दौरान बोस्निया में लगभग 3400 बच्चे मारे गए थे. सिर्फ राजधानी सरायेवो में 1500 बच्चों की जान गई थी. यह शहर 44 महीने तक सर्बिया समर्थित बोस्नियाई सर्ब फौजों के घेरे में बंद रहा था. सर्ब विद्रोही चारों तरफ पहाड़ियों पर बैठे थे और शहर में आने जाने के सारे रास्ते बंद थे. ऊपर से गोले बरसाए जा रहे थे. और निशानेबाज चुन चुनकर लोगों को मार रहे थे.
उस युद्ध के निशान आज भी सरायेवो में घाव की तरह मौजूद हैं. इमारतों पर गोलियों से बने छेद हैं. गोलाबारी में ध्वस्त हुए कई मकान ज्यों के त्यों पड़े हैं. और सिटी सेंटर पर कई इमारतों पर उन सैकड़ों बच्चों के नाम लिखे हैं जो युद्ध में मारे गए थे. इन्हीं में 17 साल की ऐडा भी थी. वह अपने घर के सामने खड़ी थी जब एक तोप का गोला उसके पास आकर फटा था. ऐडा को डिज्नी के किरदारों की तस्वीरें बनाना बहुत अच्छा लगता था. उसने मिकी माउस की एक तस्वीर बनाई थी जिसकी आंख से टपक कर आंसू गाल पर आ गया था. ऐडा की बहन सेलमा ने उसकी बनाई पेंटिंग्स म्यूजियम को दे दी हैं.
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32 साल की मेला सॉफ्टिक ने अपने बैले स्लिपर्स दिए हैं, जो उन्हें युद्ध की यादों से दूर जाने में मदद करते थे. वह बताती हैं, "जब मैं ये स्लिपर्स पहनकर बैले करने लगती थी तब मैं युद्ध के बीच में नहीं होती थी बल्कि परियों की दुनिया में पहुंच जाती थी." वह कहती हैं कि इन स्लिपर्स के लिए म्यूजियम से बेहतर जगह कोई हो ही नहीं सकती थी.
चाइल्ड वॉर म्यूजियम में लगभग 4000 चीजें हैं. हर चीज के साथ एक कागज पर लिखकर बताया गया है कि वह युद्ध से कैसे जुड़ी है. मानवविज्ञानी और म्यूजियम की शोध टीम की प्रमुख सेलमा तानोविच कहती हैं कि इस म्यूजियम का मकसद है उस सदमे को सामने ला पाना जिसे बच्चों ने सहा है.
वीके/एके (एएफपी)