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अरब देशों में विकलांग औरत होना 'कलंक' है

८ दिसम्बर २०१६

मध्य पूर्व में विकलांग औरतें बेहद दर्दनाक जिंदगियां गुजार रही हैं. अगर कोई औरत विकलांग हो जाती है तो उसका जीवन खत्म. खासकर चेहरा जलने पर तो उसे उसके बच्चे तक छोड़ जाते हैं.

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Pakistan Explosion in einem Sufi-Schrein
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/bschlotterbeck

33 साल की अजान बगदाद के एक बाजार में खरीददारी कर रही थीं, जब एक धमाका हुआ. धमाके के बाद जब धूल और धुआं कुछ छंटा तो अजान ने देखा कि उनके शरीर के हिस्से इधर उधर बिखर गए थे. उनकी बायीं टांग एक लोथड़ा बनकर लटक रही थी. बाद में डॉक्टरों को इसे काटना पड़ा. यह दर्दनाक था लेकिन सबसे दर्दनाक नहीं.

अजान बताती हैं कि वह तो बस दर्द की शुरुआत थी. उनके पेट में पड़े घाव भी कभी नहीं भरे. और उनकी शादी भी नहीं हो पाई. वह बताती हैं कि इस हादसे के बाद रिश्ते आने बंद हो गए. "मुझे खुदकुशी के ख्याल आते थे. मैं मर जाना चाहती थी. मैं बस घर पर रहती थी. दिनभर पड़ी रहती थी." अब अजान अम्मान के एक अस्पताल में भर्ती हैं जहां उनका इलाज चल रहा है.

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स्वास्थ्यकर्मी कहते हैं कि मध्य पूर्व के देशों में एक महिला का विकलांग हो जाना उसके लिए सामाजिक जीवन का अंत होता है. समाज उसे कलंक मानने लगता है और उसकी जिंदगी नरक हो जाती है. लड़की कुआंरी हो तो उसकी शादी नहीं होती. शादीशुदा हो तो उसका तलाक हो जाता है. समाज उससे नाता तोड़ लेता है. उसे परिवार चलाने और बच्चे पैदा करने के लिए अयोग्य मान लिया जाता है.

अजान बताती हैं, "लोग अहसास दिलाते हैं कि मैं विकलांग हूं, कि मैं पूरी नहीं हूं, कि मुझे किसी न किसी सहारे की जरूरत होगी." अजान के साथ हुए हादसे को 10 साल हो चुके हैं. 43 साल की उम्र में आज भी अजान अकेली हैं. और शादीशुदा ना होना भी उनके समाज-संस्कृति में तुच्छता का प्रतीक है.

अम्मान के जिस अस्पताल में अजान भर्ती हैं, उसका नाम है एमएसएफ. मध्य पूर्व का यह अकेला अस्पताल है जहां नकली अंग लगाए जाते हैं. यहां के कर्मचारी बताते हैं कि शारीरिक अंग खो देना महिला के लिए पुरूष के मुकाबले कहीं ज्यादा पीड़ादायक होता है. इसकी वजह से कई युवतियों पढ़ाई छोड़ देती हैं. परिवार और दोस्त उन्हें अकेला छोड़ देते हैं. उन्हें उनकी शारीरिक परेशानियों के बीच अकेला छोड़ दिया जाता है जिसका असर उनकी मानसिक सेहत पर भी पड़ता है.

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2006 में इस अस्पताल के शुरू होने के बाद से यहां इराक, यमन, सीरिया, और गाजा के लगभग 4400 मरीजों का मुफ्त इलाज किया जा चुका है. अजान का इलाज कर रहीं मनोवैज्ञानिक याफा जफाल बताती हैं कि कटे हुए अंग तो लोग कपड़ों में छिपा लेते हैं या फिर नकली अंग लगा लेते हैं लेकिन जिन महिलाओं के चेहरे खराब हो जाते हैं, उनके लिए तो जिंदगी में आगे बढ़ना लगभग नामुमकिन हो जाता है. जफाल कहती हैं, "बहुत सी औरतें तो अपने बच्चों तक के सामने नहीं जा पातीं क्योंकि कई बार बच्चे उन्हें पहचान ही नहीं पाते. एक मां के लिए यह बहुत मुश्किल होता है जब वह अपने बच्चे को बुलाए और बच्चा कहे कि तुम मेरी मां नहीं हो."

ऐसी ही बहुत सी वजहों के कारण पति उन्हें तलाक दे देते हैं और बच्चों को साथ लेकर चले जाते हैं. महिला मरीजों को मनोवैज्ञानिक मदद देने वालीं स्वास्थ्यकर्मी मुंतहा माशायेख कहती हैं, "विकलांग होने के बाद, खासकर जलने के बाद कितनी औरतें अपने पतियों के साथ रहीं, उन्हें मैं उंगलियों पर गिन सकती हूं. उनकी तो जिंदगी ही खत्म हो जाती है."

हालांकि इस अस्पताल में चेहरे से जलीं महिलाओं को भी मदद दी जाती है. उन्हें ऐसे टिप्स दिए जाते हैं जिनसे वे अपने चेहरे के जख्म मेकअप आदि से छिपा सकें. साथ ही उन्हें डांस थेरेपी आदि के जरिए हौसला देने की कोशिश भी का जाती है ताकि उनका आत्मविश्वास लौट सके.

वीके/एके (रॉयटर्स)