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भारत में बच्चा गोद लेना मुश्किल है, खरीदना आसान!

२९ दिसम्बर २०१६

भारत में अब गोद लेने के लिए कम बच्चे उपलब्ध हैं और इसकी वजह है बच्चों के ज्यादा अपहरण होना. सरकारी आंकड़े यह जानकारी दे रहे हैं.

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Indien Feier zum Tag der Republik 26.01.2015 Bangalore
तस्वीर: picture-alliance/epa/Jagadeesh NV

आंकड़ों के मुताबिक दुनिया के दूसरे सबसे ज्यादा आबादी वाले मुल्क में इस वक्त गोद लेने के लिए सिर्फ 1700 बच्चे उपलब्ध हैं. और गोद लेने के इच्छुक परिवारों की संख्या 12,400 है. 2015-16 में कुल 3010 बच्चे गोद लिए गए.

गोद लेने के मामलों और प्रक्रिया पर नजर रखने वाले सरकारी अधिकारी इन आंकड़ों को सीधे तौर पर बच्चों के अपहरण की बढ़ती संख्या से जोड़ते हैं. पिछले दो महीने में ही देश में बच्चों की तस्करी करने वाले दो बड़े गिरोह पकड़े गए हैं. सेंट्रल अडॉप्शन रिसॉर्स अथॉरिटी (कारा) के प्रमुख दीपक कुमार कहते हैं कि गोद लेने के लिए उपलब्ध बच्चों की संख्या तो गोद लेना चाहने वाले परिवारों से ज्यादा होनी चाहिए, लेकिन ऐसा है नहीं. वह बताते हैं, "हम ऐसी उम्मीद तो करते हैं लेकिन गिरोह हैं और कई मामलों में एजेंसियां भी बेऔलाद माता-पिता को बच्चे बेच रही हैं."

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भारतीय कानून के मुताबिक एक कानूनी प्रक्रिया के बाद ही ऐसे बच्चों को गोद लेने लायक माना जाता है, जो उनके माता-पिता ने छोड़ दिए हों या फिर पुलिस को कहीं से मिले हों. गोद लेने के लिए बच्चों को उपलब्ध करवाने से पहले एक सख्त कानूनी प्रक्रिया का पालन होना चाहिए. अगर कोई माता-पिता अपने बच्चे को गोद देना चाहते हैं तो उन्हें एक बार फैसला लेने के बाद अपने फैसले पर विचार के लिए 60 अतिरिक्त दिन दिए जाते हैं. प्रक्रिया को और ज्यादा पारदर्शी बनाने के लिए पिछले साल से इसे ऑनलाइन कर दिया गया है. अब इंतजार कर रहे बच्चे और परिवार दोनों की सूची वेबसाइट पर उपलब्ध है.

लेकिन कुमार कहते हैं कि कई बार बच्चे इन दलालों के हाथ पहले लग जाते हैं. दिसंबर महीने में ही मुंबई पुलिस ने एक गिरोह को पकड़ा जो अकेली मांओं को बच्चे गोद देने के लिए तैयार कर रहा था. पूरे देश में फैला यह गिरोह अकेली मांओं से बच्चे लेकर उन्हें बेऔलाद लोगों को बेच देता था. इसी तरह पश्चिम बंगाल में एक गिरोह पकड़ा गया जो अस्पतालों से नवजात शिशु चुराता था. इन चोरों को बच्चा होने के पहले ही पता चल जाता था क्योंकि अस्पताल का स्टाफ इनके साथ मिला हुआ था. स्टाफ के लोग बच्चे के परिजनों को बताते थे कि बच्चा स्वस्थ नहीं है इसलिए उसे संरक्षण के लिए रखा गया है. और तब चोर उन्हें चुरा लेते थे.

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एक अडॉप्शन एजेंसी के मालिक बताते हैं कि अक्सर गोद लेने के इच्छुक परिवार उन्हें फोन करते हैं और कहते हैं कि एक बच्चा मिल रहा है, हमें खरीद लेना चाहिए क्या. हाल ही में महाराष्ट्र में दो एजेंसियों को बंद किया गया. ये एजेंसियां बच्चे बेच रही थीं और कीमत होती थी दो लाख से छह लाख रुपये तक.

वीके/एके (रॉयटर्स)