जब म्यूनिख में अटैक की खबर आई तो भारत से कई मेसेज आए. मेरी खैरियत जानने के लिए. मेरा जवाब था, सब ठीक है. लेकिन सच बताऊं, सब ठीक नहीं था. मैं भी घायलों में शामिल था क्योंकि उस अटैक के फौरन बाद मेरी चमड़ी के रंग ने मेरे पूरे वजूद पर कब्जा कर लिया था. मुझे लग रहा था कि यहां के लोग मुझे नहीं देख रहे थे, मेरी त्वचा को देख रहे थे. उनके देखने में एक संदेह था. और नहीं भी था तो मुझे महसूस हो रहा था क्योंकि मेरा रंग हमलावर के रंग से मिलता था. हमारे बीच वो और हम की दीवार खड़ी हो गई थी. यह एक जख्म था. हर हमले के साथ यह जख्म गहरा होता जाता है.
यह यूनिवर्सल प्रक्रिया है. जब भी कहीं कोई घटना घटती है तो हमलावर के धर्म, जाति, रंग, देश को देखा ही जाता है. देखने वाले किसी भी धर्म, जाति, रंग या देश के क्यों न हों, वे तुरंत क्लासिफिकेशन करने लगते हैं. और क्लासिफिकेशन की यह पूरी प्रक्रिया साधारणीकरण की हद तक चली जाती है. मसलन, अब तक हुए ज्यादातर आत्मघाती हमलों में हमलावर मुसलमान हैं तो हर मुसलमान को शक की निगाहों से गुजरना ही पड़ता है. कट्टरपंथी तो यह भी कहते हैं कि आतंकवाद का एक ही धर्म है इस्लाम. वैसे तो पूरी दुनिया का ही यह हाल है लेकिन मैं भारतीय हूं इसलिए जानता हूं कि भारत में मुसलमानों को इस वजह से किस-किस तरह की बातें सुननी पड़ती हैं. मसलन, जब भी पुलिस किसी व्यक्ति को आतंकवादी संपर्कों से संदेह के आधार पर गिरफ्तार करती है, जो अक्सर मुसलमान होते हैं, तो खबर होती है, आतंकवादी गिरफ्तार. कुछ साल पहले जब यूपी के आजमगढ़ के कई लड़कों को आतंकी संपर्कों की वजह से गिरफ्तार किया गया तो आजमगढ़ के मुस्लिम लड़कों को दिल्ली में किराये पर कमरे मिलना बंद हो गया था. भारत में मैं तथाकथित उच्च जाति का हिंदू हूं तो यह सब झेलना नहीं पड़ता था. यूरोप में रहने पर पहली बार मैं मेज के इस तरफ हूं जब मुझे शक की निगाह से देखा जा सकता है. और इसकी वजह सिर्फ इतनी है कि जो जर्मनी में हाल में हुए हमलों में शामिल हैं, वे भी विदेशी थे मेरी तरह.
म्यूनिख हमले की तस्वीरें
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म्यूनिख हमले की तस्वीरें
मॉल कराया गया खाली
हमले की खबर आते ही पुलिस ओलंपिया मॉल पहुंच गई. परिवहन रोक दिया गया और मॉल खाली कराया गया.
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म्यूनिख हमले की तस्वीरें
जान की चिंता
ओलंपिया मॉल में पहली गोली चलने के बाद लोग जान बचाने को भागे.
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मदद की अपील
पुलिस ने लोगों से घटनास्थल की तस्वीरें पोस्ट न करने की अपील की. सोशल मीडिया पर निर्देश दिए गए.
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हमलावरों की खोज
घंटों की खोज के बाद पुलिस को घटनास्थल के करीब एक लाश मिली. वह हमलावर की थी.
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रात गुजारने की चिंता
मुख्य रेलवे स्टेशन और रेल यातायात को रोक दिया गया था. जर्मन रेल ने बाद में अतिरिक्त गाड़ियां चलाई.
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सैकड़ों सुरक्षाकर्मी
पुलिस के अनुसार म्यूनिख में फायरिंग के बाद 2300 पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया था.
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तैयारी
बड़े हमले की आशंका से श्वाबिंग और आसपास के अस्पतालों को सतर्क कर दिया गया था.
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म्यूनिख हमले की तस्वीरें
सुनसान स्टेशन
दुनिया भर के पर्यटकों में मशहूर म्यूनिख का मुख्य रेल स्टेशन सुनसान पड़ा था.
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म्यूनिख हमले की तस्वीरें
मेट्रो की सुरक्षा
सुरक्षा के लिए नगर परिवहन को रोका ही नहीं गया, रास्तों पर पुलिस का पहरा बिठा दिया गया.
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म्यूनिख हमले की तस्वीरें
हमलावर
पुलिस ने संदिग्ध हमलावर की शिनाख्त कर ली है. वह 18 वर्षीय ईरानी मूल का जर्मन है.
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दस की मौत
म्यूनिख में हुए हमले में हमलावर सहित 10 लोगों की मौत हुई. हमलावर ने खुदकुशी कर ली.
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म्यूनिख हमले की तस्वीरें
हथियार
पुलिस के अनुसार अब तक की जानकारी के अनुसार फायरिंग में पिस्तौल का इस्तेमाल हुआ.
अब सवाल यह है कि अगर कोई जर्मन सुरक्षाकर्मी म्यूजियम की एंट्री लाइन से अलग निकालकर मुझे अपना बैग खोल कर दिखाने को कहता है तो इसमें उसकी क्या गलती है. उसे कैसे पता होगा कि मैं विश्व को शांति का पाठ पढ़ाने वाले महान देश भारत से हूं, और मेरे धर्म के ठेकेदार कहते हैं कि यह दुनिया का सबसे महान धर्म है. उनके लिए तो मैं एक विदेशी हूं जिसके बैग में विस्फोटक हो सकता है. और वे गलत नहीं हैं क्योंकि सुरक्षा सुनिश्चित करना उनका काम है और अपने संदेह को दूर करना भी. और अलग दिखने वाले अक्सर संदेह के दायरे में होते हैं. फिर मैं किसी ऐसे देश से आया हूं जहां के समाज में हिंसा स्वीकार्य हो चुकी है. जहां सड़क चलते दो लोगों की लड़ाई हो जाए तो कत्ल हो जाते हैं. जहां कुछ लोग चार-छह लोगों को सरेआम इसलिए पीट डालते हैं कि वे मरी हुई गाय ले जा रहे थे. जहां भीड़ किसी के घर में घुसकर एक आदमी को इसलिए मार डालती है क्योंकि उसने कोई खास चीज खाई जो भीड़ को गवारा नहीं थी.
तस्वीरों में देखिए, सबसे खूनी साल 2016
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सबसे खूनी साल 2016
4 जुलाई
एक के बाद एक तीन आतंकवादी हमले हुए. सऊदी अरब के जेद्दा, मदीना और कतीफ में तीन खुदकुश हमले.
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सबसे खूनी साल 2016
3 जुलाई
बगदाद में इराक का सबसे भयानक आतंकवादी हमला हुआ जिसमें 215 जानें गईं और 2002 लोग घायल हो गए.
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सबसे खूनी साल 2016
2 जुलाई
ढाका में बांग्लादेश का अब तक का सबसे घातक आतंकवादी हमला जिसमें 7 आतंकवादियों ने 20 मासूम जानें ले लीं.
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सबसे खूनी साल 2016
28 जून
तुर्की के इस्तांबुल में अतातुर्क एयरपोर्ट पर तीन आतंकियों ने आत्मघाती हमला किया. 45 लोगों की जान चली गई.
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27 मार्च
पाकिस्तान के लाहौर में बच्चों के खेल के मैदान के पास बम धमाका हुआ. 72 लोग मारे गए जिनमें ज्यादातर बच्चे थे.
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सबसे खूनी साल 2016
22 मार्च
बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में एयरपोर्ट पर आत्मघाती बम हमला हुआ. 34 जानें गईं और 300 लोग घायल हुए.
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सबसे खूनी साल 2016
13 मार्च
तुर्की की राजधानी अंकारा में मुख्य चौराहे पर एक कार बम से धमाका किया गया. 37 जानें चली गईं.
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13 मार्च
आइवरी कोस्ट में कुछ अल कायदा आतंकवादी एक होटल में घुसे और गोलियां बरसाईं. 18 लोग मारे गए.
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26 फरवरी
सोमालिया की राजधानी मोगादिशू में एक होटल में अल शबाब ने कार बम से धमाका किया. 15 लोगों की जान चली गई.
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17 फरवरी
तुर्की की राजधानी अंकारा में कई बम धमाके हुए. कुर्दिस्तान फ्रीडम फाल्कन्स के इस हमले में 29 जानें गईं.
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15 जनवरी
बुरकीना फासो के एक होटल में हुए आतंकवादी हमले में 18 देशों के 23 लोगों की जानें गईं. अल कायदा का काम था.
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14 जनवरी
इंडोनेशिया के जकार्ता में बम धमाके और उसके बाद गोलियां बरसा कर आईएस ने 8 लोगों को मार डाला.
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सबसे खूनी साल 2016
12 जनवरी
साल की शुरुआत में ही तुर्की के इस्तांबुल में धमाके सुनाई दिए. 13 लोगों की जानें गईं. दर्जनों घायल हुए.
रिपोर्ट: आसिम सलीम/वीके
पर अब मैं क्या करूं? हर हमला मुझे घायल करता है. मेरी छवि बदलता है. मुझे और ज्यादा विदेशी, और ज्यादा पराया बना देता है. मैं यहां की भाषा सीख सकता हूं, यहां का खाना-पीना अपना सकता हूं, यहां का पहनावा अपना सकता हूं. लेकिन अपनी त्वचा का रंग नहीं बदल सकता. मैं चाहूं तो विक्टिम कार्ड पर खेल सकता हूं कि देखो मेरे रंग के आधार पर मेरे साथ ऐसा हो रहा है. लेकिन क्या वह जायज होगा? सोचिए और मुझे बताइए.
ब्लॉगः विवेक कुमार