लगातार कई फसलें नाकाम होने के बाद अब क्रिस्टीन मवेंडा के पास एक ही रास्ता बचा है. यह ऐसा रास्ता है, जिस पर चलने की वह कभी सपने में भी नहीं सोच सकती थीं. लेकिन अब यही रास्ता जीने का सहारा है. 37 साल की क्रिस्टीन सेक्स वर्कर बन गई हैं. 2014 से वह जांबिया में अपना शरीर बेच रही हैं. वह कहती हैं कि जौ की खेती से बेहतर पैसा मिलता है और चार बच्चों के पेट भरने का और कोई रास्ता भी नहीं था. मवेंडा, जो कि उनका असली नाम नहीं है, कहती हैं, "अच्छा दिन हो तो मैं 500 कवाचा (करीब 70 डॉलर) तक कमा लेती हूं. इतना पैसा तो मैं खेती में सालभर में बचा पाती थी." किसान मवेंडा की जिंदगी मुश्किलों से भर गई जब खाद, पानी, परिवहन, बीज आदि के दाम इतने बढ़ गए कि खेती से कुछ बचता ही नहीं था.
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बिना खतने के औरत कहलाने का हक
अब तुम एक महिला हो!
मासाई समुदाय में तीन दिन तक चलने वाली रस्म के बाद लड़की को महिला का दर्जा मिलता है. इस रस्म के दौरान लड़कियों के जननांगों को काटने की परंपरा रही है. आज भी यहां तीन दिन तक त्योहार मनता है, नाच गाना होता है, लेकिन खतना नहीं.
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बिना खतने के औरत कहलाने का हक
जागरूकता से फायदा
अब इस त्योहार के दौरान लड़कियों को उनके शरीर के बारे में जानकारी दी जाती है. सदियों से इस समुदाय की महिलाएं खतने के दर्दनाक तजुर्बे से गुजरती रही हैं.
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अपने शरीर को जानो
लड़कियों को बताया जाता है कि एक महिला का शरीर, उसके जननांग कैसे दिखते हैं, कैसे काम करते हैं और उनकी देखभाल कैसे की जाती है. कई गैर सरकारी संगठन इसमें मदद करते हैं.
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लड़कियों की शाम
ना केवल उन्हें पुरानी दकियानूसी परंपरा से छुटकारा मिल रहा है, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनाने पर भी जोर है. शाम को लड़कियां एक दूसरे के साथ मिल कर गीत गाती हैं और रात भर मोमबत्तियां जला कर नाचती हैं.
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बिना खतने के औरत कहलाने का हक
पुरुषों की भूमिका
रस्म शुरू होने से पहले मासाई समुदाय के पुरुष इकट्ठा होते हैं. इन्हीं में से कोई आगे चल कर समुदाय का मुखिया बनेगा. पुरानी परंपरा को खत्म करने के लिए पुरुषों का साथ बहुत जरूरी है.
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बिना खतने के औरत कहलाने का हक
आजादी का एहसास
नाइस लेंगेटे इस समुदाय की पहली महिला हैं, जिनका खतना नहीं किया गया. रस्म के दौरान उन्होंने एक वर्कशॉप में हिस्सा लिया, जहां उन्हें अपने शरीर के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला. आज वे खुद लोगों को जागरूक करती हैं, "और कमाल की बात है कि वे मेरी बात सुनते भी हैं. मैं उन्हें कंडोम के बारे में बताती हूं, एचआईवी के बारे में भी."
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हर रंग का एक मतलब
रस्म के लिए लड़कियां रंग बिरंगे कपड़े और गले में हार पहन कर तैयार होती हैं. मासाई समुदाय में हर रंग का अलग मतलब होता है. कोई रंग बहादुरी का प्रतीक है, तो कोई उर्वरता का. अब तक 7,000 लड़कियां इस नई तरह की परंपरा का लाभ उठा चुकी हैं.
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बुरी नजर से बचो
कई छोटी छोटी रस्में पूरी की जाती हैं. कई परिवारों में महिलाएं सर मुंडवाती हैं, तो अधिकतर में लड़कियों के चेहरों को रंगा जाता है. ऐसा उन्हें बुरी नजर से बचाने के लिए किया जाता है.
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आशीर्वाद
आखिरी दिन कुछ ऐसा होता है. समुदाय के सदस्य हाथ में छड़ियां ले कर खड़े होते हैं और लड़कियां एक कतार बना कर उनके नीचे से गुजरती हैं. इस दौरान गीत भी गए जाते हैं और भाषण भी दिए जाते हैं. अंत में लड़कियों को सर्टिफिकेट भी मिलते हैं.
रिपोर्ट: आईबी/आरआर
मवेंडा सिर्फ एक मिसाल हैं, एक चेहरा जांबिया के लाखों लोगों का. लगातार सूखा पड़ रहा है. इस साल अल नीनो की वजह से तो वह और भयानक हो गया था. इस कारण छोटे किसानों और छोटे कारोबारियों के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं. सूखा हर साल लंबा होता जा रहा है और बारिश का वक्त भी गड़बड़ा रहा है. पर्यावरण में बदलाव हो रहा है. खाद, बीज और खेती का दूसरा सामान भी महंगा हो रहा है. मवेंडा बताती हैं, "आजकल अगर आप जौ की खेती करते हैं तो आप इस बात का यकीन नहीं कर सकते कि कितनी फसल होगी. ज्यादातर तो ऐसा होता है कि फसल सूख जाती है. और बस इतना भर अनाज मिलता है कि सबका खाना निकल सके. लेकिन बच्चों को स्कूल भी तो भेजना होता है."
तस्वीरों में, प्रताड़ित और जख्मी समाज
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प्रताड़ित और जख्मी समाज
दक्षिण अफ्रीका इस शख्स ने अपने जीवन के बीस साल जेल में सजा काटते हुए बिताए हैं. इसके चेहरे का हर एक टैटू गैंग में उसके ओहदे का प्रतीक है.
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प्रताड़ित और जख्मी समाज
नाइजीरिया के लागोस में इस व्यक्ति को प्रतिबंधित क्षेत्र में अपनी ओकाडा टैक्सी चलाने के जुर्म में गिरफ्तार किया गया. 2012 में इन टैक्सियों को राजधानी की मुख्य सड़कों पर लाना मना था.
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प्रताड़ित और जख्मी समाज
तस्वीर में दिख रही दक्षिण अफ्रीका की करीब 90 साल की इस महिला ने एक रात आंख खुलने पर एक आदमी को अपने उपर चढ़ा हुआ पाया. निकिवे मसांगो ने कहा, "किसी नशीली चीज से मुझे बेहोश कर वह पूरी रात मेरे साथ बलात्कार करता रहा."
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प्रताड़ित और जख्मी समाज
एक मोबाइल फोन की चोरी के आरोप में इस आदमी को लोगों ने खूब पीटा. केप टाउन की व्यस्त सड़क पर बुरी तरह पिटने के बाद पुलिस ने इसे अस्पताल पहुंचाया लेकिन इस मामले में कोई गिरफ्तारी नहीं हुई.
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प्रताड़ित और जख्मी समाज
केन्या में एक एक्टिविस्ट बोनिफेस "बोनी" मवांगी को उठा कर ले जाते हुए सुरक्षा कर्मी. बोनी का गुनाह यह था कि एक ट्रेड यूनियन अधिकारी के भाषण के दौरान उन्होंने गद्दार! गद्दार! के नारे लगाए थे. इसके लिए उनकी पिटाई हुई और पुलिस हिरासत में रखा गया.
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प्रताड़ित और जख्मी समाज
हिंसा का सामना कर रहे कश्मीर में सुरक्षा बलों की जांच पड़ताल अत्यंत सामान्य है. अक्सर होने वाले हिंसक प्रदर्शनों के बीच किशोरों को भी इस तरह पुलिस तलाशी का सामना करना पड़ता है.
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प्रताड़ित और जख्मी समाज
आफताब आलम अंसारी को सिरीयल बम हमले के मास्टरमाइंड के रूप में पकड़ा गया और जुर्म कबूल करने के लिए यातना दी गई. अदालत में आरोप साबित नहीं किया जा सका. निर्दोष युवा पर गलत आरोप मढ़ने के लिए अदालत ने पुलिस की खिंचाई की.
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प्रताड़ित और जख्मी समाज
11 जनवरी, 2002 से अमेरिकी नौसेना की ग्वांतानामो जेल के कैदियों के साथ अमानवीय बर्ताव की खबरें आती रही हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इसे बंद करने के इरादे की घोषणा बहुत पहले ही कर दी थी लेकिन अब तक ऐसा नहीं हो सका है.
रिपोर्ट: ऋतिका राय
जाम्बिया में एक करोड़ 60 लाख लोग रहते हैं जिनमें से 54 फीसदी गरीबी रेखा के नीचे हैं. ज्यादातर महिलाएं हैं. गरीबी शहरों के मुकाबले गांवों में ज्यादा है. 2014 में यूएन की एक रिपोर्ट आई थी जिसने उजागर किया गांवों में जो गरीबी की हालत है वो शहरों से 4 गुना ज्यादा है. इसलिए लोग गांवों से शहरों की ओर जा रहे हैं. लुसाका, कित्वे, लिविंगस्टोन और चिपातान जैसे शहरों की आबादी पिछले कुछ सालों में बहुत बढ़ गई है. नतीजा यह होता है कि मवेंडा जैसे लोग दूसरे पेशों का रुख करने को मजबूर हो जाते हैं. और वेश्यावृत्ति ऐसे ही पेशों में से एक है. लुसाका की कैवेंडिश यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर लूसी बवाल्या बताती हैं कि गांवों से आने वाली महिलाएं छोटे मोटे कामों में लग जाती हैं जैसे पटरी पर सामान बेचना या दिहाड़ी मजदूरी करना आदि. लेकिन बड़ी तादाद में महिलाएं सेक्स वर्क की ओर चली जाती हैं. और इसके साथ ही जेल, हिंसा और यौन रोगों के खतरों के साथ जीने लगती हैं. बवाल्या सेक्स वर्कर्स के साथ काम कर चुकी हैं. वह बताती हैं, "वेश्यावृत्ति एक आसान रास्ता तो है लेकिन इस वजह से ये महिलाएं एचआईवी और एड्स की जद में आ जाती हैं." 2013-2014 की जनगणना के मुताबिक 15 साल से 49 साल के बीच के लोगों में एचआईवी मरीजों की संख्या 13 फीसदी थी. हालांकि एक दशक में यह 3 फीसदी घटी है लेकिन तब भी सरकार चिंतित है.
देखिए, जननांगों की विकृति की क्रूर परंपरा
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महिला खतने के डरावने सच
कहां-कहां
दुनियाभर में हर साल करीब 20 करोड़ बच्चियों या लड़कियों का खतना होता है. इनमें से आधे से ज्यादा सिर्फ तीन देशों में हैं, मिस्र, इथियोपिया और इंडोनेशिया.
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महिला खतने के डरावने सच
बच्चियां सबसे ज्यादा
यूनिसेफ के आंकड़े कहते हैं कि जिन 20 करोड़ लड़कियों का खतना होता है उनमें से करीब साढ़े चार करोड़ बच्चियां 14 साल से कम उम्र की होती हैं और इन तीन देशों से आती हैं: गांबिया, मॉरितानिया और इंडोनेशिया. इंडोनेशिया की आधी से ज्यादा बच्चियों का खतना हुआ है.
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महिला खतने के डरावने सच
क्यों होता है खतना?
खतना कराने की वजहों में परंपरा सबसे ऊपर है. उसके बाद धर्म, फिर साफ-सफाई और बीमारी से बचने आदि के नाम पर भी लड़कियों का खतना किया जाता है. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी तर्क देते हैं कि युवा होने पर लड़कियों की सेक्स की इच्छा कम करने के मकसद से भी ऐसा किया जाता है.
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महिला खतने के डरावने सच
क्या फायदा है?
इंडोनेशिया की यारसी यूनिवर्सिटी की डॉ. आर्था बदुी सुशीला दुआरसा कहती हैं कि महिला खतने का कोई फायदा नहीं है. बल्कि इसके उलट इसके बहुत नुकसान हैं जिनमें मौत भी एक है.
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महिला खतने के डरावने सच
मौत भी हो सकती है
महिला खतने से कई तरह की मानसिक और शारीरिक दिक्कतें हो सकती हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन कहता है कि कुछ मामलों में तो मौत तक हो सकती है. खतने के दौरान या उसके बाद अत्याधिक खून बहने से या बैक्टीरियल इन्फेक्शन से मौत हो सकती है.
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महिला खतने के डरावने सच
कैसे-कैसे खतने
संयुक्त राष्ट्र की संस्था विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक महिला खतना चार तरह का हो सकता है. पूरी क्लिटोरिस को काट देना, कुछ हिस्से काटना, योनी की सिलाई और छेदना या बींधना.
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महिला खतने के डरावने सच
यौन हिंसा का एक प्रकार
महिला कार्यकर्ता मानती हैं कि महिलाओं का खतना एक तरह की यौन हिंसा है जिसमें पीड़ित को मानसिक और शारीरिक दोनों तरह के तनाव से गुजरना पड़ता है. कई संस्थाएं इसे महिलाओं के खिलाफ हिंसा में जोड़ चुकी हैं.
रिपोर्ट: एपी/वीके
अब सरकार कोशिश कर रही है कि ज्यादा से ज्यादा लोग, खासकर महिलाएं खेती से जुड़ी रहें. इसके लिए सरकार प्रोत्साहन योजनाएं ला रही हैं. एक समाजसेवी संस्था एनविरो ग्रीन किसानों को ऐसी फसलों की खेती करना सिखा रही है जिन पर पर्यावरण का ज्यादा असर नहीं पड़ता. ज्वार जैसी ये फसलें ऐसी हैं जिनमें पानी की कम जरूरत पड़ती है. जौ जैसी फसलों की खेती को हतोत्साहित किया जा रहा है. एनविरो ग्रीन की निदेशक मार्था सिमुकोंडे कहती हैं, "हमारी चिंता है लोगों का गांवों से शहरों की ओर पलायन. खासकर वे महिलाएं जो वेश्यावृत्ति में फंस रही हैं. हम उन महिलाओं को सिखा रहे हैं कि बुआई थोड़ी जल्दी की जाए ताकि पानी की जरूरत पहली बारिश से ही पूरी हो जाए. इससे फसलों के फलने की संभावना बढ़ जाती है."
कोशिशें हो रही हैं लेकिन मवेंडा जैसी हजारों महिलाओं के लिए इन कोशिशों के शुरू होने से पहले ही जिंदगी एक ऐसा मोड़ ले चुकी थी जहां से लौटने के रास्ते बंद हो चुके हैं.