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जर्मनी के यौन हिंसा कानून में बड़ा बदलाव

नाओमी कोनराड७ जुलाई २०१६

जर्मनी का "मध्य युगीन" रेप विरोधी कानून अब बदलने जा रहा है. अब तक तो पीड़ित की ना को कानून ना ही नहीं मानता था.

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तस्वीर: Fotolia/Miriam Dörr

क्रिस्टीना क्लेम के पास महिलाएं रेप के कितने ही मामले लेकर आती हैं. और क्लेम जानती हैं कि वे अदालत में जीत नहीं सकतीं. वह लड़की जिसे ट्रेन में यौन शोषण से गुजरना पड़ा. वह महिला जिसे भीड़ में लोगों ने दबोचा, नोचा-खसोटा. या फिर वह लड़की जिसने अपने दोस्त को रात की पार्टी के बाद घर में रुकने दिया क्योंकि उसकी आखिरी बस छूट गई थी. क्रिमिनल लॉयर क्लेम कहती हैं कि वह लड़की खुद भी थोड़ी नशे में थी और उसके दोस्त ने उसे दबोच लिया, लाख मना करने के बाद भी. क्लेम बताती हैं कि कोर्ट ने उसके केस को यह कहकर खारिज कर दिया कि उसने समुचित विरोध नहीं किया था.

क्लेम के जाने कितने ही क्लाइंट्स कोर्ट में केस इसी आधार पर नहीं जीत पाते. ऐसा इसलिए क्योंकि जर्मनी में कानून रेप तभी मानता था जबकि पीड़ित पूरा विरोध करे और लड़े और अपराधी डराए, धमकाए और सेक्स के लिए हिंसा करे. मौजूदा कानून कहता है कि अगर महिला सिर्फ रोती-चिल्लाती रही, मुंह से मना करती रही और हाथ जोड़कर रहम की भीख मांगती रही तो वह रेप नहीं है. फिलहाल तो हद यह है कि अगर भीड़ में कोई व्यक्ति किसी महिला या पुरुष के शरीर को, उसके अंतरंग अंगों को छूता है तो इसके लिए कोई सजा ही नहीं है. इसलिए सामाजिक कार्यकर्ता अक्सर कहते हैं कि जर्मनी में कानून शरीर से ज्यादा जमीन की रक्षा करता है. लेकिन पीड़ित को यह बात समझ नहीं आती. वह तो क्लेम से पूछती है कि इस तरह की बेहूदगी के लिए सजा ना हो, ऐसा कैसे हो सकता है.

देखें, कहां महिलाएं सबसे असुरक्षित हैं

कानून में बदलाव की यह लड़ाई लंबे समय से चल रही है. लड़ने वाले कहते हैं कि जरूरी नहीं कि हर महिला यौन हमले के विरोध में लड़ पाए. कई महिलाएं उस वक्त सदमे में चली जाती हैं और चाहते हुए भी विरोध नहीं कर पातीं. कई महिलाओं को लगता है कि विरोध से हालात बस और खराब होंगे और इस डर से वे विरोध नहीं कर पातीं. कानून में बदलाव के लिए इंटरनेट पर अभियान चलाने वाली क्रिस्टीना लुंत्स कहती हैं हमारा कानून तो मध्य युगीन है. लुंत्स के अभियान का नाम है, नो मीन्स नो. यानी नहीं, मतलब नहीं. उनकी कई ऐसी दोस्त हैं जिनके साथ रेप हुआ लेकिन मुकदमा नहीं चला. वह बताती हैं, "उन्हें लगता है कि कोई मतलब ही नहीं है पुलिस के पास जाने का. उनसे एक सवाल पूछा जाएगा, जिसका कोई जवाब उनके पास नहीं है. वही सवाल कि विरोध क्यों नहीं किया."

लुंत्स कहती हैं कि जर्मनी ने इस्तांबुल कन्वेंशन पर दस्तखत किए हैं जिसके तहत बिना सहमति के किया गया हर तरह का यौन व्यवहार अपराध है. यानी कि नहीं, मतलब नहीं.

क्यों होते हैं बलात्कार?

पिछले साल जर्मनी के न्याय मंत्रालय ने एक कानून का मसौदा तैयार किया था लेकिन बात आगे नहीं बढ़ पाई. राजनीतिक दल एसपीडी के संसदीय दल की उपाध्यक्ष एफा होएग्ल कहती हैं कि ज्यादातर सदस्यों को यह मसौदा पसंद नहीं आया. लेकिन 31 दिसंबर 2015 की रात कोलोन में हुए यौन हमले ने काफी लोगों को बदल दिया.

कोलोन में कुछ पुरुषों ने, जो विदेशी दिखते थे, नए साल का जश्न मनाती भीड़ में लड़कियों को नोंचा-खसोटा. जो आरोपी गिरफ्तार हुए, उनमें से दो के खिलाफ रेप का केस चलाया गया. उसके बाद चीजें तेजी से बदलीं. कानून का मसौदा न्याय मंत्रालय से मार्च में कैबिनेट में पहुंचा. काफी बहस के बाद अब यह कानून वोटिंग के लिए संसद में पहुंच चुका है. हालांकि कानून को बनकर लागू होने में अभी समय लगेगा लेकिन कार्यकर्ता खुश हैं कि बात आगे बढ़ रही है. वे इसे बहुत बड़ा बदलाव मान रहे हैं क्योंकि 1990 तक तो शादी में बलात्कार तक जर्मनी में सजा के दायरे में नहीं आता था.

यौन शोषण का शिकार हुए सितारे

नया कानून अमल में आ जाने पर जो व्यक्ति पार्टनर की इच्छा को नजरअंदाज करके सेक्स करेगा, उसे पांच साल तक की कैद का प्रावधान होगा. अगर पार्टनर एक बार बोल भी दे, नहीं. तो इसका मतलब स्पष्ट ना माना जाएगा और फिर भी संबंध बनते हैं तो वे जबरदस्ती के दायरे में होंगे. छूना, नोचना, दबोचना आदि भी यौन हिंसा माने जाएंगे. डागमार फ्रॉयडेनबैर्ग कहती हैं कि यह ऐतिहासिक बदलाव है. सरकारी वकील के तौर पर लंबा अनुभव रखने वाली फ्रॉयडेनबैर्ग कहती हैं कि अब ज्यादा अपराधियों को सजा हो पाएगी. फिलहाल सिर्फ छह फीसदी यौन अपराधों की शिकायत होती है. नए कानून से यह आंकड़ा बढ़ने की भी उम्मीद है.

नाओमी कोनराड/वीके