1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

पाकिस्तान में औरतों को घूरने पर बहस

२८ अक्टूबर २०१६

पाकिस्तान में एक महिला ने घूरने वालों के खिलाफ मुहिम छेड़ी है. रेडियो पर जारी इस मुहिम को हालांकि पुरुषों का पूरा समर्थन नहीं है.

https://p.dw.com/p/2RpZo
Pakistan Valentinstag
तस्वीर: picture-alliance/Zuma Press/Xinhua/Libaodong

पाकिस्तान में औरतों का घर से निकलना मुश्किल, बहुत मुश्किल और कई बार तो खतरनाक तक हो जाता है. क्योंकि मर्दों की निगाहें उन्हें लगातार घूरती रहती हैं. इस बात से दुखी होकर एक रेडियो जॉकी ने मुहिम छेड़ दी है. अनिला अंसारी की यह मुहिम रेडियो शो के जरिए घर घर तक पहुंच रही है.

अनिला दो दशक तक ब्रिटेन में रही हैं. इसलिए उन्हें घूरने जैसी चीजों की आदत ही नहीं थी. इस साल की शुरुआत में वह पाकिस्तान लौटीं. और तब से वह लोगों की घूरती निगाहों से हैरान परेशान थीं. इसी परेशानी से इस मुहिम का विचार आया. वह बताती हैं, "मैं किसी दफ्तर में जाऊं, रेस्तरां में जाऊं या कहीं और निगाहें हमेशा मेरा पीछा करती रहती हैं. इसलिए एक दिन मैं दफ्तर आई और मैंने अपनी सहयोगियों से पूछा कि क्या ऐसा सिर्फ मेरे साथ हो रहा है. और जिस भी महिला से मैंने पूछा, सबने एक ही बात कही कि इस बारे में तो बात ही मत करो, यह तो एक बीमारी है."

यह भी देखिए: कहां कितनी बराबर हैं औरतें

और जब इस बारे में अनिला ने पुरुषों से बात की तो पता चला कि उन्हें तो यह कोई समस्या ही नहीं लगती. वह कहती हैं, "या तो वे इस बात को हंसी में उड़ा देते हैं या फिर गु्स्सा हो जाते हैं." अनिला बताती हैं कि पुरुष इस समस्या की जिम्मेदार भी महिलाओं को ही मानते हैं कि वे ऐसे कपड़े क्यों पहनती हैं. अब उन्होंने इसके खिलाफ एक मुहिम छेड़ दी है. वह लोगों को बताना चाहती हैं कि इस बात का असर महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है और पढ़ाई, रोजगार और दूसरे मौके भी प्रभावित होते हैं.

अनिला अंसारी रेडियो99 में काम करती हैं जिसका दावा है कि देशभर में उसके ढाई करोड़ सुनने वाले हैं. इस मुहिम के तहत अंसारी अपने शो में घूरने के मुद्दे पर बहस कराती रहती हैं और लोगों से भी कहती हैं कि वे फोन करके अपनी समस्याएं बताएं. रेडियो के निदेशक नजीब अहमद कहते हैं कि इस मुहिम को उनका चैनल पूरा समर्थन दे रहा है. वह कहते हैं, "हमारे देश में ऐसे मुद्दों को दरी के नीचे खिसका दिया जाता है. हम इन पर बात ही नहीं करते. लेकिन यह हर चीज का आधार है. अर्थव्यवस्था का आधार है. अगर महिलाएं घर से बाहर निकलने में सहज नहीं होंगी तो वे ठीक से काम नहीं कर पाएंगी."

देखिए, बॉयफ्रेंड के पास खड़े होने की कैसी सजा मिली

महिलाओं को, खासकर युवाओं को यह मुहिम पसंद आ रही है. सना जाफरी कहती हैं कि इस मुहिम को उनका पूरा समर्थन है. वह बताती हैं, "ये मर्द अपनी बहनों को तो तालों में बंद रखते हैं, फिर वे दूसरों को क्यों घूरते हैं? उन्हें यह बात समझनी चाहिए कि घर से बाहर निकलने वाली औरतें भी इज्जतदार हैं."

लेकिन लड़कों में इस मुहिम को लेकर एक तरह की नाराजगी भी देखी जा सकती है. एक नौजवान अयान अली कहते हैं, "लड़कियां अपने मां-बाप की इज्जत होती हैं. अगर वे बुरका नहीं पहनतीं या ऐसे कपड़े पहनती हैं जो उनके पूरे बदन को नहीं ढक पाते, तो फिर वे घूरने की शिकायत नहीं कर सकतीं. और अगर वे ऐसे कपड़े पहनकर निकलेंगी तो फिर हम क्या कर सकते हैं."

पाकिस्तान में महिलाओं की स्थिति कुछ अच्छी नहीं है. 2015 की वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की लैंगिक भेद रिपोर्ट में 145 देशों में पाकिस्तान का 143वां नंबर था. अनिला अंसारी को उम्मीद है कि उनकी मुहिम शायद कुछ बदलाव ला पाए.

ये हैं लड़कियों के लिए सबसे अच्छे देश

वीके/एमजे (एएफपी)