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समाज

जकरबर्ग की महज माफी ही काफी नहीं है

मिषाएल क्निगे
११ अप्रैल २०१८

फेसबुक के संस्थापक मार्क जकरबर्ग की माफी एक अच्छा कदम जरूर है लेकिन यह काफी नहीं है. वक्त आ गया है कि लोग फेसबुक, गूगल जैसी चीजों के सच को समझें.

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USA: Washington Protest gegen Facebook Avaaz Protestaktion
तस्वीर: picture-alliance/K. Dietsch

अमेरिकी कांग्रेस के सामने पेश होने से पहले मार्क जकरबर्ग काफी व्यस्त रहे. पिछले हफ्ते वे "ऑनेस्ट ऐड्स ऐक्ट" का समर्थन करते दिखे. इस कानून के अनुसार इंटरनेट में राजनीतिक विज्ञापन करने पर भी वही नियम लागू होंगे जो रेडियो और टीवी पर होते हैं. चुनाव और राजनीतिक मुद्दों से जुड़े विज्ञापन देने वालों को अपनी पहचान और लोकेशन बतानी होगी, और साथ ही यह भी कि विज्ञापन के लिए पैसा कौन दे रहा है. फिलहाल कांग्रेस के सामने यह प्रस्ताव रखा गया है. जकरबर्ग ने यह भी सुनिश्चित किया कि फेसबुक यूरोपीय संघ के डाटा सुरक्षा अधिनियम जीडीपीआर का भी सम्मान करेगा.

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मिषाएल क्निगे

सोमवार को जकरबर्ग अमेरिकी कांग्रेस के सामने पेश होने से पहले वॉशिंगटन में सांसदों से मुलाकात कर रहे थे. तब उन्होंने कहा कि वे अलग अलग राजनीतिक दृष्टिकोण वाले अंतरराष्ट्रीय जानकारों का एक समूह तैयार करेंगे और उनके सामने फेसबुक का डाटा रखेंगे, ताकि विभिन्न देशों में होने वाले चुनावों में फेसबुक की भूमिका को पारदर्शी तरीके से परखा जा सके. अपने वॉशिंगटन दौरे के दूसरे दिन उन्होंने सांसदों के सामने माफी मांगी. उन्होंने माना कि फेसबुक से गलती हुई है और भविष्य में बेहतर तरीके से काम करने का वादा भी किया.

यह माफी बहुत जरूरी थी क्योंकि जकरबर्ग केवल फेसबुक के संस्थापक, सीईओ और अध्यक्ष ही नहीं हैं, बल्कि कंपनी के 60 प्रतिशत मताधिकार भी उन्हीं के पास है. ऐसे में वे कंपनी के एक ऐसे नेता हैं, जो उसकी हर हरकत के लिए जिम्मेदार हैं. जितनी जरूरी यह माफी थी, उतना ही जरूरी ऑनेस्ट ऐड्स ऐक्ट के तहत विज्ञापन के नियमों को मजबूत करना और यूरोप के जीडीपीआर पर सहमति देना भी था.

लेकिन जकरबर्ग के झांसे में मत आइए. वह अब इन नियमों को मान रहे हैं क्योंकि यह उनकी मजबूरी है. अमेरिका में 2016 के चुनावों में रूस का हाथ होने और ब्रेक्जिट में कैम्ब्रिज एनेलिटिका की भूमिका की खबर के बाद, दुनिया भर में ना ही जनता और ना सरकारें अब फेसबुक को नजरअंदाज कर सकती हैं. इसलिए जकरबर्ग को सिर्फ इसलिए नहीं छोड़ा जा सकता कि उन्होंने सार्वजनिक रूप से माफी मांग ली है और कुछ अस्पष्ट से वादे कर दिए हैं कि वह अपने हर ऐप की जांच कराएंगे. यह कतई काफी नहीं है.

ऐसा पहली बार भी नहीं हो रहा है जब फेसबुक पर डाटा की निजता के हनन का आरोप लगा हो. आठ साल पहले इलेक्ट्रॉनिक फ्रंटियर फाउंडेशन नाम की संस्था ने दावा किया था कि फेसबुक ने अपनी स्थापना के कुछ समय बाद ही डाटा गोपनीयता की सेटिंग में ऐसे बदलाव किए थे जिनके तहत यूजर अपना कुछ डाटा सार्वजनिक करने पर मजबूर थे.

साथ ही, फेसबुक का यह स्कैंडल एक बड़ी समस्या की छोटी सी झलक भर है. इंटरनेट के दूसरे बड़े खिलाड़ी, मसलन गूगल और ट्विटर ने भी अमेरिकी चुनाव के दौरान गलत जानकारी फैलाने में बड़ी भूमिका निभाई है. उन्होंने अपने रवैये से साबित कर दिया है कि लोगों के डाटा और उनकी निजता को बचाना, उनके लिए प्राथमिकता नहीं है. अभी सोमवार को ही अमेरिका में 20 ग्राहक समूहों ने शिकायत दर्ज की है कि गूगल के वीडियो प्लेटफॉर्म ने अमेरिकी बाल संरक्षण कानूनों का हनन किया है और 13 साल से कम उम्र के बच्चों का निजी डाटा जमा किया है.

यह हैरानी की बात नहीं है कि फेसबुक और गूगल हमारे डाटा के लिए इतने भूखे हैं. भले ही जकरबर्ग अमेरिकी कांग्रेस के सामने बोलते रहे हों कि फेसबुक एक "आदर्शवादी" कंपनी है, जिसका मकसद केवल लोगों को एक दूसरे से जोड़ना है, और भले ही गूगल भी यह दावा करता रहे कि उसका लक्ष्य लोगों तक जानकारी पहुंचाना है, लेकिन सच्चाई तो यही है कि दोनों कंपनियों का असली काम लोगों के डाटा को जमा करना और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विज्ञापन चलाना है. दोनों ही कंपनियां लोगों को एक दूसरे से जोड़ कर या फिर जानकारी दे कर कमाई नहीं करती हैं, बल्कि लोगों की निजी प्रोफाइल को निशाना बना कर, वहां विज्ञापन बेच कर पैसा कमाती हैं. अगर आपको अब भी कोई शक है, तो अपनी "पर्सनल हिस्ट्री" डाउनलोड कर के देख लीजिए.

इन कंपनियों के समर्थन में जो दलील दी जाती है कि कोई भी इन्हें इस्तेमाल करने के लिए मजबूर नहीं है, वह भी बेतुकी है. आज की डिजिटल अर्थव्यवस्था में यह मुमकिन ही नहीं है कि आप इंटरनेट और सोशल मीडिया से दूर रहें. आपको गूगल, फेसबुक, एमेजॉन और एप्पल से तो जुड़े  रहना पड़ेगा ही. यह कंपनियां हमारी ऐसी जरूरत बन गई हैं, जिनके बिना जीना अब मुमकिन ही नहीं रह गया है.

यह भी दिलचस्प है कि जब कांग्रेस ने जकरबर्ग से कहा कि वह फेसबुक को एक "पेड सर्विस" में तब्दील कर दें, जहां यूजर्स को पैसा देना होगा और कोई विज्ञापन नहीं चलेंगे, तो उन्होंने इसे मानने से इंकार कर दिया. उन्होंने कई सवालों के ऊटपटांग जवाब दिए, जैसे कि फेसबुक फेक अकाउंट बनाने की अनुमति नहीं देता है. भले ही यह तकनीकी तौर पर सही हो लेकिन सब जानते हैं कि ऐसा नहीं है.

यह सब दिखाता है कि जकरबर्ग जो भी कदम उठा रहे हैं, अपने बिजनेस मॉडल को बचाने और अपनी कंपनी को जितना हो सके, उसी रूप में आगे भी चलाते रहने का प्रयास है. माफी मांग कर वह सिर्फ सजा से बचने की कोशिश कर रहे हैं. अमेरिकी कांग्रेस और यूरोपीय संघ, दोनों को ही इस छलावे में नहीं फंसना चाहिए. फेसबुक और दूसरी इंटरनेट कंपनियों पर लगाम लगना बेहद जरूरी है, क्योंकि आने वाले समय में ये दुनिया भर के लोकतंत्र पर बड़ा असर डालने वाली हैं.