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माहवारी के कारण एकांतवास में रखी गई लड़की की मौत

२३ दिसम्बर २०१६

नेपाल के पश्चिमी इलाके में 15 साल की एक लड़की की दम घुटने से मौत हो गई, क्योंकि महावारी होने के कारण उसे घर के बाहर एक बंद कमरे में रखा गया था.

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Nepal Chhaupadi-Haus
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Mathema

पुलिस ने इस लड़की का नाम रोशनी तिरुवा बताया है जो एक दशक पहले प्रतिबंधित कर दी गई एक हिंदू प्रथा का शिकार बनी. "चौपदी" नाम की इस प्रथा में माहवारी के दौरान लड़कियों और महिलाओं को बिल्कुल अलग और छिपा कर रखा जाता है. इस दौरान अकसर उन्हें पशुओं को रखने वाली जगहों पर रहना पड़ता है. ऐसा इसलिए, क्योंकि माहवारी के दौरान उन्हें अपवित्र माना जाता है.

रोशनी के पिता को मिट्टी और ईंटों से बने एक कमरे से बेटी का शव मिला. यह घटना राजधानी काठमांडू से पश्चिम में 440 किलोमीटर दूर अछाम जिले में गिरजा गांव की है. पुलिस इंस्पेक्टर बद्री प्रसाद ढकाल ने रॉयटर्स को बताया, "हम पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं जिससे मौत का कारण पता चल सकेगा. हमें लगता है कि उनकी मौत दम घुटने के कारण हुई.” उन्होंने बताया, "उस कमरे में सोने से पहले उसने सर्दी से बचने के लिए आग जलाई थी. कमरे में कोई खिड़की या रोशनदान नहीं था.”

पीरियड्स से जुड़ी गलतफहमियां

रोशनी एक महीने के भीतर चौपदी व्यवस्था की वजह से मरने वाली दूसरी लड़की है. चौपदी पर 2005 में प्रतिबंध लगा दिया गया था. फिर भी अकसर महिलाओं को माहवारी में घर से बाहर रखे जाने की खबरें मिलती हैं और इस दौरान कई बार उन पर हमले के मामले भी सामने आए हैं. एकांतवास में रखे जाने के कारण कई बार उनका बलात्कार भी होता है जबकि कई बार उन्हें सांप और जंगली जानवर भी काट लेते हैं.

पश्चिमी नेपाल के दूरदराज के कुछ इलाकों में यह प्रथा अब भी जारी है. कई लोग मानते हैं कि अगर माहवारी के दौरान लड़कियों और महिलाओं को एकांतवास नहीं रखा गया तो इससे प्राकृतिक संकट आएंगे. वहां महिलाओं को माहवारी के दौरान दूध पीने की अनुमति नहीं होती और उन्हें खाना भी कम दिया जाता है.

सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि नेपाल में चौपदी और बाल विवाह जैसी प्रथाओं को खत्म करने के लिए सरकार में पर्याप्त इच्छाशक्ति नहीं है. लेकिन अधिकारियों का कहना है कि वे कोशिश कर रहे हैं लेकिन सदियों से चली आ रही सोच को रातोंरात नहीं बदला जा सकता.

नेपाल के महिला और बाल कल्याण मंत्रालय की एक अधिकारी बिनिता भट्टराई कहती हैं, "हमने कई योजनाएं शुरू की हैं लेकिन समाज में जड़ जमाए बैठी प्रथाओं को अचानक से खत्म नहीं किया जा सकता है. लोगों की मानसिकता को बदलने में समय लगता है.”

एके/एमजे (रॉयटर्स)

आप भी इन गलतफहमियों के शिकार तो नहीं..