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जलवायु परिवर्तन पर मंथन

१९ अप्रैल २०१३

दुनिया भर में कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन बढ़ रहा है, जिससे जलवायु को नुकसान पहुंच रहा है. इसमें एशियाई देशों की भी हिस्सेदारी है. डीडब्ल्यू के खास टेलीविजन शो मंथन में इस बार जलवायु परिवर्तन पर खास ध्यान दिया गया है.

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तस्वीर: Reuters

फैक्ट्रियों से बदलाव

पर्यावरण बचाने के लिए कई कोशिशें चल रही हैं. फिर भी कार्बन डाई ऑक्साइड पर लगाम नहीं लग पाई है. मौसम में हो रहे बदलाव ग्रीनहाउस गैसों के असर को साफ दिखा रहे हैं. दुनिया भर में कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन का 45 फीसदी हिस्सा एशिया प्रशांत हिस्से से आता है. तेजी से विकास कर रहे एशियाई देशों में फैक्ट्रियां बढ़ रही हैं. पर्यावरण बचाने के लिए थाइलैंड की फैक्ट्रियों में बदलाव किए जा रहे हैं. बैंकॉक में सीमेंट और कंक्रीट की मांग लगातार बढ़ रही है. सीमेंट बनाने के लिए ऊर्जा धान के भूसे से बन रही है, जो फैक्टरी के आस पास से खरीदी जाती है. भूसे के इस्तेमाल से प्लांट में निकलने वाले कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा भी कम हुई है. सीमेंट फैक्टरी के लिए भी यह गर्व की बात है कि वे पर्यावरण का ख्याल रख रहे हैं.

कार्बन क्रेडिट, कार्बन सर्टिफिकेट और कार्बन फुटप्रिंट जैसी वैज्ञानिक शब्द अकसर जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में सुनने को मिलते हैं, लेकिन इनका मतलब क्या होता है? इन्हें समझने के लिए इस बार मंथन में एक इंटरव्यू शामिल किया गया है. नवनीत कुमार जो यहीं बॉन यूनिवर्सिटी में ग्राउंड वाटर मैनेजमेंट और जलवायु परिवर्तन पर रिसर्च कर रहे हैं. वह बता रहे हैं कि किस तरह से कम्पनियां और देश एक दुसरे से कार्बन क्रेडिट खरीदती हैं.

Sendungslogo TV-Magazin "Manthan" (Hindi)
तस्वीर: DW

फोन से खरीदिए फल

हर देश में, हर मौसम में अलग अलग किस्म के फल उगते हैं. इंसानों को खुद को तेज गर्मी और सर्दी से बचाने के जरिए ढूंढने पड़ते हैं. पर फलों के साथ ऐसा कुछ भी नहीं होता. तेज धूप में भी रसदार तरबूज उग जाते हैं और कश्मीर की सर्दी में लजीज सेब. मौसम के थपेड़ों से बचने के लिए इन फलों के पास होता है एक खास सुरक्षा कवच. फलों पर एक बाहरी परत होती है जो हमें दिखाई नहीं देती. इस परत में कोशिकाओं की दीवार से फल को एक अंदरूनी ठोस संरचना मिलती है. फल की ऊपरी पतली खाल की भी कई परतें होती हैं. सबसे ऊपर होती है प्राकृतिक वैक्स की परत. अगर इसे इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप में देखें तो पता चलेगा कि इस परत की संरचना काफी बारीकी से बुनी होती है. यह जाल फल को सुरक्षा कवच देता है.

फल को खाने से पहले धो लेना चाहिए, काट कर देखना चाहिए कि अंदर कहीं फल खराब तो नहीं, ये सब हमें बचपन से ही सिखाया जाता है. लेकिन जब बाजार में फल खरीदने जाएं तो कैसे जानें कि फल ताजा है या बासी? हो सकता है चमकदार लाल सेब अंदर से सड़ा हो. ड्रेसडेन के फ्राउनहोफर इंस्टीट्यूट ऑफ फोटोनिक माइक्रोसिस्टम्स में इसके लिए एक ऐप विकसित किया जा रहा है. मोबाइल में लगा स्पेक्ट्रोमीटर रोशनी का विश्लेषण करता है. वह जान लेते है कि देखने में ताजा लगने वाला फल अंदर भी ताजा है या नहीं. यह ऐप एक डिजिटल कैमरे की तरह काम करता है. यह रोशनी को तीन चैनलों में बांट देता है और उसे मिलाकर एक तस्वीर बनाता है.

Solarkraftwerk in Abu Dhabi
तस्वीर: DW/I.Quaile-Kersken

संगीत की भाषा नहीं

फिनलैंड के रैपर साइनमार्क इशारों से पहुंचाते हैं लोगों तक अपना संगीत. सुनने से लाचार साइनमार्क संगीत की धुनों को सुन नहीं सकते. पर उन्हें महसूस कर सकते हैं. साइन लैंग्वेज यानी सांकेतिक भाषा का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने अपना नाम ही साइनमार्क रख लिया. साइनमार्क पहले ऐसे कलाकार हैं जो सुनने की क्षमता न होने के बाद भी मशहूर कलाकारों में गिने जा रहे हैं. साइनमार्क तरंगों पर ध्यान देते हैं, वह गहरा है या जोरदार, इसे वे पैरों से महसूस करते हैं. साइनमार्क अपनी इस पहचान और रुतबे का इस्तेमाल विकलांग लोगों को समान अधिकार दिलाने के लिए कर रहे हैं.

कई लोगों के लिए सिनेमा हॉल में बिना पॉपकॉर्न के फिल्म देखना नामुमकिन सी बात है. लेकिन हर बार वही नमकीन पॉपकॉर्न खा कर आप बोर नहीं हो जाते? सोचिए आप काउंटर पर पहुंचें और आपके सामने हो पॉपकॉर्न की 10 अलग अलग किस्म. हनी चिली, लाटे माकियाटो, चेदर चीज.. ये पॉपकॉर्न की कुछ किस्में हैं जो पॉपकॉर्न के शौकीनों के लिए हैम्बर्ग के केट्स पॉपकॉर्न में तैयार की जा रही है. इस समय केट्स पॉपकॉर्न जर्मनी और ऑस्ट्रिया की लगभग 100 दुकानों में बिक रहा है. कंपनी ऑर्डर इंटरनेट पर भी लेती है. डेनमार्क, पौलैंड, ईरान और टर्की से भी लोग केट पॉपकॉर्न के बारे में पूछताछ कर रहे हैं. अब तक यहां पॉपकॉर्न के लिए 30 नए स्वाद तैयार हो चुके हैं. जिसमें से 12 मार्केट में मौजूद हैं.

रिपोर्टः ईशा भाटिया

संपादनः ए जमाल