ममता बनर्जी को दुर्गा बनाने पर बंगाल में बवाल
७ अक्टूबर २०१६पश्चिम बंगाल के सबसे प्रमुख त्योहार दुर्गापूजा में राजनीतिक रंग तो लगभग चार दशक पहले लेफ्ट प्रंट सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही घुलने लगा था लेकिन यह पूजा के दौरान राजनीतिक हितों के लिए आयोजन समितियों और इस दौरान जुटने वाली भीड़ के इस्तेमाल तक ही सीमित था.
बंगाल की पूजा में पूरे साल के दौरान देश-दुनिया में घटने वाली अहम घटनाओं को पंडालों की साज-सज्जा और बिजली की सजावट के जरिए उकेरने की परंपरा काफी पुरानी है. इस साल भी आयोजकों ने किसी पंडाल में चांद पर बस्ती बसाने की कल्पना को साकार किया गया है तो कहीं मैडम तुसाद के संग्रह को पंडाल में उतार दिया गया है. महानगर की पहचान रहीं पीली टैक्सियां भी पंडाल का हिस्सा बनी हैं. बावजूद इसके आयोजक अब तक किसी राजनेता को भगवान का दर्जा देने से बचते रहे हैं. लेकिन अबकी तमाम हदों को तोड़ते हुए राज्य की एक आयोजन समिति ने तो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को ही दुर्गा बना दिया है. ममता के उग्र तेवरों के चलते उनको पहले से ही बंगाल की शेरनी और अग्निकन्या जैसी उपाधियों से नवाजा जाता रहा है. लेकिन अब पहली बार उनको देवताओं की बराबरी पर खड़ा कर दिया गया है. इसे लेकर मिली-जुली टिप्पणियां हो रही हैं. सोशल मीडिया में भी इसकी काफी चर्चा हो रही है. ज्यादातर लोगों और ममता के कट्टर समर्थकों में भी इसे लेकर भारी नाराजगी है.
कहीं दाता तो कहीं याचक
बंगाल की कम से कम दो पूजा समितियों ने अबकी ममता की खुशामद का नया रिकॉर्ड बना दिया है। इनमें से एक पूजा तो महानगर में ममता के चुनाव क्षेत्र भवानीपुर में ही बनी है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी एक जगह दाता यानी देवी दुर्गा के रूप में खड़ी नजर आ रही हैं तो दूसरी जगह मां दुर्गा की प्रतिमा के सामने याचक के रूप में. पहले तीन दिनों तक चलने वाले यह त्योहार अब दस दिनों तक फैल गया है.
नदिया जिले के चाकदा में स्थानीय प्रांतिक क्लब के पंडाल में दुर्गा की प्रतिमा की जगह दस हाथों वाली ममता बनर्जी की प्रतिमा लगी है. उनकी पारंपरिक सफेद-नीली साड़ी वाली प्रतिमा के दस हाथों में राज्य सरकार की ओर से शुरू की गई तमाम योजनाओं का ब्योरा है और पृष्ठभूमि में बंगाल का नक्शा. यह प्रतिमा महिषासुर के प्रति उतनी आक्रामक नहीं नजर आती.
तस्वीरों में देखिए, कहां से कहां आ गई दुर्गा पूजा
इसी तरह महानगर के भवानीपुर क्लब की पूजा को ममता बनर्जी को दुर्गा की प्रतिमा के सामने घुटनों के बल बैठकर आशीर्वाद लेते दिखाया गया है. दुर्गा का एक हाथ ममता की प्रतिमा के सिर पर है. पूजा के आयोजकों में से एक और स्थानीय तृणमूल कांग्रेस पार्षद असीम बसु इसका बचाव करते हुए कहते हैं, "लोग चाहे जो कहें लेकिन हमने इसके जरिए महिला सशक्तीकरण को दिखाने का प्रयास किया है. हर साल की तरह अबकी इस प्रतिमा का विसर्जन नहीं किया जाएगा. इसकी वजह यह है कि उस स्थिति में ममता की प्रतिमा को भी विसर्जित करना होगा जो आयोजकों को गवारा नहीं है." इसी वजह से आयोजकों ने इस प्रतिमा को संरक्षित रखने का फैसला किया है.
वैसे, राज्य में सामयिक घटनाओं के आधार पर दुर्गा या असुर के चेहरों में मामूली बदलाव पहले भी होता रहा है. मिसाल के तौर पर वर्ष 1971 में बांग्लादेश की लड़ाई के समय बनने वाली ज्यादातर प्रतिमाओं का चेहरा तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिलता-जुलता था. इसी तरह वर्ष 2001 में ज्यादातर असुरों का चेहरा ओसामा बिन लादेन से मिलता-जुलता बनाया गया था और वर्ष 2003 में इराक युद्ध के समय सद्दाम हुसैन से. लेकिन इससे पहले कभी दुर्गा की कोई प्रतिमा किसी राजनेता से हुबहू मिलती-जुलती नहीं बनी थी.
नाराजगी
ममता बनर्जी की प्रतिमा का दुर्गा का दर्जा देने के मुद्दे पर खुद ममता या उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के किसी नेता ने कोई टिप्पणी नहीं की है. एक व्यापारी दिनेश गोस्वामी कहते हैं, "उत्तर प्रदेश में मोदी और तेलंगाना में सोनिया गांधी के मंदिर बनने के बाद वह बंगाल भी उसी राह पर चल पड़ा है जिसके बारे में कभी कहा जाता था कि बंगाल जो आज सोचता है वह बाकी देश कल सोचता है. यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है." तृणमूल के कई कट्टर समर्थक भी इस बारे में कुछ बोलने से कतरा रहे हैं. एक समर्थक कृष्णेंदु का कहना था, "ममता बनर्जी जैसी जमीन से जुड़ी नेता को भगवान का दर्जा ठीक नहीं है. इसके बाद अगले साल कई अन्य आयोजक भी इसी राह पर चल पड़ेंगे. इस पर रोक लगनी चाहिए." वह कहते हैं कि आम लोगों क भावनाओं के साथ ऐसा खिलवाड़ उचित नहीं है. विपक्षी राजनीतिक दलों ने भी इस पर कटु टिप्पणी की है. सीपीएम नेता सूर्यकांत मिश्र कहते हैं, "अब यही दिन देखना बाकी था. ममता अपनी पार्टी के लिए तो पहले से ही भगवान थीं. अब उनको जबरन राज्य के तमाम लोगों पर देवी के तौर पर थोपा जा रहा है." कांग्रेस के एक नेता का कहना था, "ममता की प्रतिमा को दुर्गा के तौर पर दिखाना तृणमूल कांग्रेस के मानसिक दिवालिएपन का सबूत है." विपक्ष का कहना है कि तृणमूल नेतृत्व को समय रहते इन आयोजनों पर अंकुश लगाना चाहिए था. ऐसा नहीं हुआ तो अगले साल से तमाम पंडालों में दुर्गा की जगह ममता की प्रतिमा की ही पूजा होने लगेगी.
तस्वीरों में, सच्ची पूजा
लेकिन इस विवाद के बीच लोग तो तीन दिन पहले से ही पंडालों के चक्कर लगाने में जुट गए हैं. महानगर की एक आयोजन समिति ने बीते साल सबसे ऊंची प्रतिमा बनाई थी. लेकिन वहां जुटने वाली लाखों की भीड़ और भगदड़ के अंदेशे को ध्यान में रखते हुए पुलिस ने उस पूजा पर पाबंदी लगा दी थी. अब उसी समिति ने एक हजार हाथों वाली दुर्गा प्रतिमा बनाई है और भीड़ पिछले साल का रिकॉर्ड तोड़ने पर आमादा है. इसके अलावा बर्फ की बनी दुर्गा भी इस साल का प्रमुख आकर्षण है. लेकिन उसे देखने के लिए दर्शकों को पांच-पांच सौ रुपये का टिकट खरीदना होगा.