देश का खजाना जो लोगों को खोखला कर रहा है
९ जून २०१६मलयेशिया के चे लॉन्ग को बिना शोरगुल के अपने बगीचे का आनंद लेने के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा. कुछ वक्त पहले तक उन्हें हर दिन ट्रकों का शोर बर्दाश्त करना पड़ता था. वह बताते हैं कि दिन भर शोर का यह सिलसिला चलता रहता था. उनके शब्दों में, “हर दिन हमें ट्रकों के शोर और उनसे उठने वाली धूल को झेलना पड़ता था. हालत यह थी कि हमारे पास एक ही विकल्प बचा और वह यह कि हम सुबह सुबह घर से बाहर कहीं चले जाएं. मेरी पत्नी और बच्चे मेरे साथ मेरे दफ्तर चले जाते और हम वहां तब तक रहते, जब तक ट्रक ड्राइवरों का काम खत्म ना हो जाए, यानी पूरा दिन.“
ऐसा कई महीनों तक चलता रहा. वजह थी चे लॉन्ग के घर के आस-पास भारी मात्रा में मिलने वाला बॉक्साइट. चे लॉन्ग का घर मलयेशिया के पूर्वी शहर कुआनटान के करीब है. लाल रंग की यह धातु एलुमिनियम का मुख्य स्रोत है. दो साल पहले पड़ोसी देश इंडोनेशिया ने बॉक्साइट के निर्यात पर पूरी तरह रोक लगा दी. तब से मलेशिया इस इलाके का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है. कंपनियों ने चे लॉन्ग की जमीन पर खनन करने के बदले में उन्हें 45 हज़ार यूरो की राशि देने की कोशिश की लेकिन चे ने इससे साफ इंकार कर दिया. वह कहते हैं, “उन्होंने मुझे अस्थायी रूप से रहने की जगह देने की पेशकश की. उन्होंने कहा कि खनन हो जाए, उसके बाद, मैं यहां लौट सकता हूं और वे मेरा सारा खर्च भी उठाएंगे, मेरे घर का ख्याल भी रखेंगे लेकिन मैंने इनकार कर दिया.”
अब मलयेशिया की सरकार ने अस्थायी रूप से बॉक्साइट के खनन पर रोक लगाई है ताकि इसे बेहतर रूप से निर्धारित किया जा सके. लेकिन जितना नुकसान होना था, वह तो हो ही चुका है. बारिश का पानी ज़मीन की ऊपरी सतह को बहा कर ले जा रहा है. आर्सेनिक, पारा और यहां तक कि रेडियोधर्मी यूरेनियम भी स्थानीय नदियों में घुल चुका है. मछुआरों को भी इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ सकता है. मछली पकड़ने वाले निक अल बुखारी कहते हैं, “जब यहां खनन नहीं हुआ करता था, तब मैं हर दिन छह किलो झींगा मछली पकड़ लिया करता था लेकिन अब तो दिन भर में एक किलो भी नहीं मिल पाता. अब यहां झींगा बचा ही नहीं है, सब बॉक्साइट के कारण.”
हालांकि कुछ लोगों ने बॉक्साइट के खनन का फायदा उठाने की भी कोशिश की. हलीमा कादिर और उनके बेटे के पास कभी यहां ताड़ का बागान हुआ करता था, जिससे अच्छी खासी कमाई भी होती थी. लेकिन जब उन्हें अपनी ज़मीन पर खनन की अनुमति देने के बदले में दो लाख यूरो की पेशकश की गयी, तो उन्होंने फौरन हां कर दी.
जब पेड़ कटे और खनन शुरू हुआ, तो उन्हें बताया गया कि उनकी ज़मीन किसी काम की नहीं है क्योंकि वहां मौजूद बॉक्साइट में सिलिकेट की भी भारी मात्रा शामिल है. उन्हें पैसा भी नहीं मिला. हलीमा कादिर बताती हैं, “मैं सड़क पर एक छोटा सा रेस्तरां चलाती थी और मैं उम्मीद कर रही थी कि जो धन मिलेगा, उसे मैं इसी काम में लगा दूंगी लेकिन अब पेड़ भी चले गए और मेरे पास कमाई का कोई ज़रिया नहीं बचा, मेरे पास कुछ भी नहीं बचा.”
मलेशिया में बॉक्साइट का खनन बहुत ज्यादा वक्त तक नहीं चल सकता. जानकारों का कहना है कि जिस गति से खनन किया जा रहा है, कुछ सालों में ज़मीन से बॉक्साइट पूरी तरह खत्म हो जाएगा. खनन के चलते यहां के निवासियों और पर्यावरण को जो नुकसान हुआ है, उसका असर बहुत लंबे वक्त तक यहां देखने को मिलेगा.
बास्टियान हार्षिट/आईबी