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कियारोस्तामी अब कोई फिल्म नहीं बनाएंगे

विवेक कुमार५ जुलाई २०१६

जब नामी फिल्म महोत्सव कान में उन्होंने पाम डे ओर लिया तो फ्रेंच ऐक्ट्रेस कैथरीन डेनोव ने उन्हें पुरस्कार देते हुए स्टेज पर चूम लिया था. हंगामा हो गया. लेकिन कियारोस्तामी बस सिनेमा रचते रहे.

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बूसान फिल्म महोत्सव में कियारोस्तामी और और जूलियेट बिनोच (2010)तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Heon-Kyun

अब्बास कियारोस्तामी अब कोई फिल्म नहीं बनाएंगे. वह चले गए हैं, इस दुनिया से. निधन, मौत, मर जाना जैसे शब्द कियारोस्तामी के लिए नहीं हो सकते. उनके जाने का मतलब बस इतना ही होगा कि अब उनकी नई फिल्म देखने को नहीं मिलेगी. क्योंकि अब तक जो वह बना गए हैं उसकी ना कोई तुलना है, ना कोई मिसाल और ना ही कोई विकल्प. 76 साल की उम्र में इस ईरानी फिल्मकार के जाने का मतलब सिने प्रेमियों के लिए ऐसा ही है कि अब वह साकार से निराकार हो गए हैं.

1997 में जब उनकी फिल्म टेस्ट ऑफ चेरी को कान फिल्म फेस्टिवल में पाम डे ओर दिया गया था तो कान का सम्मान ज्यादा हुआ था. क्योंकि 1960 के दशक में न्यू वेव सिनेमा में कदम रखने के साथ ही कियारोस्तामी ने बेशकीमती नगीने सिनेमा की दुनिया को देने शुरू कर दिए थे.

क्या आपने कियारोस्तामी की कोई फिल्म देखी है? अगर देखी होगी तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि कोई तस्वीर आपके जहन में ना उभरे. क्योंकि उनकी फिल्म का एक-एक शॉट एक अलग फिल्म होती है. उन्होंने बहुत आम से लोगों की बहुत आम सी कहानियां कही हैं और बताया है कि कोई कहानी आम नहीं होती. फ्रांस के महान फिल्मकार जाँ-लूक गोदार्द ने कहा था, "फिल्म डीडब्ल्यू ग्रिफिथ पर शुरू होती है और अब्बास कियारोस्तामी पर खत्म."

जिस ईरान में फिल्मों, इंटरनेट और यहां तक कि अपनी बात कहने पर भी इतनी पाबंदियां हैं वहां की सरकार कियारोस्तामी के लिए उदास है. वहां के विदेश मंत्री जवाद जारिफ ने कहा, "ईरान ने अंतरराष्ट्रीय सिनेमा का स्तंभ खो दिया है." ईरान के एक और मशहूर फिल्मकार असगर फरहादी ने कहा कि वह सदमे में हैं. उन्होंने कहा, "वह सिर्फ एक फिल्मकार नहीं थे, वह तो एक आधुनिक सूफी थे, सिनेमा में भी और जिंदगी में भी."

कियारोस्तामी 1940 में जन्मे थे. अभी 22 जून को उन्होंने अपने 76 साल पूरे किए थे. तेहरान यूनिवर्सिटी को भी फख्र है कि उसके यहां से कियारोस्तामी ने पेंटिंग की पढ़ाई की थी. फिर उन्होंने विज्ञापन बनाए. और ग्राफिक डिजाइन भी किया. और 1969 में वह सिनेमा के सफर पर निकल पड़े. 1971 में पहली फिल्म आई. एक छोटी फिल्म ब्रैड ऐंड ऐली. फिर 1973 में बड़ी फिल्म आई, द ट्रैवलर. ट्रैवलर के साथ एक यात्रा शुरू हुई, जो 4 जुलाई यानी सोमवार को थम गई.

1979 में जब ईरान में इस्लामिक क्रांति हुई तो बहुत सारे आजाद ख्याल लोग मुल्क छोड़कर चले गए. उन्हें पता था कि अब काम करना मुश्किल हो जाएगा. पर कियारोस्तामी नहीं गए. छोडने के बजाय उन्होंने तोड़ने-मोड़ने की कला विकसित की. किसी को आपत्ति भी ना हो और अपनी बात, अपनी कहानी भी कह दी जाए, ऐसा करके कियारोस्तामी ने साबित किया कि जिंदा रहना चाहो तो मौत जीत नहीं सकती. उनकी फिल्मों में चीखती-चिल्लाती राजनीति नहीं है बल्कि चुप सी जिंदगी है और जिंदगी की फिलॉसफी है. एक कस्बे पर तीन फिल्में कौन बना सकता है? कियारोस्तामी ने बनाई. कोकर नाम की इस ट्रायलॉजी की शुरुआत उन्होंने 1987 में 'वेअर इज द फ्रेंड्स होम?' से की. असली जगहों पर शूटिंग. सेट का कम से कम इस्तेमाल. मशहूर ऐक्टर्स के बजाय अनजान चेहरों से काम और बहुत तीखा लेकिन छिपा हुआ कटाक्ष.

एक किस्सा बहुत प्यारा है. 1997 में जब कान में उन्होंने पाम डे ओर लिया तो फ्रेंच ऐक्ट्रेस कैथरीन डेनोव ने उन्हें अवॉर्ड देते हुए स्टेज पर किस कर लिया. ईरान में तो हंगामा मच गया. कियारोस्तामी ने कोई हंगामा नहीं मचाया. बस फिल्म बनाई. एक के बाद एक. वह सिनेमा रचते चले गए. सिर्फ ईरान में नहीं. इटली गए और सर्टिफाइड कॉपी बनाई. जापान गए और लाइक समवन इन लव बनाई. वे तस्वीरें, वे शॉट्स सब जिंदा हैं. एकदम असली हैं. हमारे सामने हैं. तो कैसे कह दें कि अब्बास कियारोस्तामी का निधन हो गया है?

विवेक कुमार