यह अनूठा वाकया कलकत्ता हाईकोर्ट का है. खुली अदालत में एक मामले पर फैसला सुनाए जाने के बाद हाईकोर्ट की एक खंडपीठ के एक जूनियर जज ने बाद में फैसले में बदलाव कर दिया. नतीजतन दोनों जजों के बीच भरी अदालत में ही तीखी झड़प हो गई. वरिष्ठ जज ने इसे अदालत व संविधान का अपमान बताते हुए इस्तीफा देने की धमकी दी है. वर्ष 1862 में इस कोर्ट की स्थापना के बाद यह अपनी किस्म का पहला मामला है. अब हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने जूनियर जज सीएस करनान के बेमियादी बायकॉट का फैसला किया है.
फ्लाई ओवर हादसे पर बवाल
यह मामला महानगर में बीते 31 मार्च को हुए विवेकानंद फ्लाई ओवर हादसे से संबंधित है. उस मामले में गिरफ्तार निर्माण कंपनी के अधिकारियों ने अदालत में जमानत की याचिका दायर की थी. लेकिन न्यायमूर्ति असीम कुमार राय और सीएसकरनान की खंडपीठ ने बीती 20 मई को वह याचिका खारिज कर दी थी. उस फैसले पर दोनों जज एकमत थे.
उसी दिन कोर्ट में गर्मी की छुट्टियां शुरू हो गईं. लेकिन सोमवार को कोर्ट के दोबारा खुलने के बाद न्यायमूर्ति करनान ने पिछले फैसले में बदलाव करते हुए लिखा कि वह इससे सहमत नहीं हैं. उनकी राय में सभी अभियुक्तों को जमानत पर रिहा कर दिया जाना चाहिए. न्यायमूर्ति करनान अपने वरिष्ठ जज असीम कुमार राय से अनुमित लिए बिना ही अपनी सीट से उठ कर कक्ष में चले गए थे.
बदल गया जज का मन
20 मई को जमानत की याचिका पर सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति राय ने याचिका खारिज करने का फैसला सुनाया था. तब न्यायमूर्ति करनान ने भी उस फैसले पर सहमति जताई थी. अगले दिन से गर्मी की छुट्टी होने की वजह से न्यायमूर्ति राय ने तो उसी दिन फैसले पर हस्ताक्षर कर दिए थे. लेकिन न्यायमूर्ति करनान ने ऐसा नहीं किया. वह मामले की केस डायरी लेकर घर चले गए. बाद में सोमवार को उन्होंने खंडपीठ से फैसले पर हस्ताक्षर कराने का निर्देश दिया. उन्होंने हस्ताक्षर कर भी दिया.
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ये हैं उटपटांग कानून
बल्ब बदलने का कानून
बल्ब बदलना कितना मुश्किल होता है? ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया प्रांत के लोग शायद कहेंगे, बहुत मुश्किल. आबादी के लिहाज से देश के दूसरे बड़े राज्य विक्टोरिया में पेशेवर इलेक्ट्रिशियन से ही बल्ब बदलवाने का कानून है. ऐसा न करने वालों को 10 ऑस्ट्रेलियन डॉलर का जुर्माना देना पड़ सकता है.
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टॉयलेट फ्लश का कानून
स्विट्जरलैंड की रिहाइशी इमारतों में रात को 10 बजे के बाद टॉयलेट का फ्लश चलाना गैरकानूनी है. सरकार के मुताबिक फ्लश से ध्वनि प्रदूषण होता है. होटलों को इससे छूट है.
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चुईंगम बैन
सिंगापुर में चुईंगम चबाने पर पाबंदी है. इसे बड़ी सख्ती से लागू भी किया जाता है. 2004 में चिकित्सकीय कारणों से कुछ लोगों को चुईंगम चबाने की छूट दी गई. हालांकि इन लोगों को भी चुईंगम डॉक्टर से खरीदना पड़ता है.
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हंसो या फंसो
इटली के मिलान प्रांत के निवासियों को हमेशा मुस्कुराते रहना पड़ता है. वरना उन पर जुर्माना ठोंका जा सकता है. हालांकि अस्पताल और अंतिम संस्कार में जाने वालों को इस नियम से छूट मिलती है.
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दांत काटने का कानून
अमेरिका के लुजियाना प्रांत में अगर आपने किसी को असली दांतों से काटा तो इसे 'साधारण हमला' माना जाएगा. लेकिन अगर नकली दांतों से काटा तो इसे 'गुस्से से भरा हमला' माना जाएगा.
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अंडरवेयर सुखाने का नियम
अमेरिकी राज्य मिनीसोटा में महिला और पुरुष के अंडरवेयर एक ही रस्सी पर एक साथ सुखाना गैरकानूनी है.
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पालतू जानवर से सेक्स
ईरान का कानून अपने पालतू जानवर से सेक्स करने की इजाजत देता है. लेकिन सेक्स के बाद जानवर को मारने या उसका मीट किसी और को खिलाने की अनुमति नहीं देता. जंगली जानवर से सेक्स करना गैरकानूनी है.
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ये हैं उटपटांग कानून
चिल्लर अपने पास रखो
कनाडा में अगर किसी चीज का दाम 10 डॉलर से ज्यादा हो तो आप भुगतान सिक्कों में नहीं कर सकते. आपको नोट निकालना ही पड़ेगा.
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याद रखना जन्मदिन
सेंट्रल साउथ प्रशांत में बसे द्पीय देश समोआ में पत्नी का जन्मदिन भूलना अपराध है.
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जोर से न गाना
होनोलुलू में सूरज डूबने के बाद ऊंची आवाज में गीत गाना गैरकानूनी है.
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जेल से भागो
डेनमार्क में जेल से भागने की कोशिश करना अपराध नहीं है.
रिपोर्ट: ओंकार सिंह जनौटी
अदालत के सूत्रों का कहना है कि सोमवार शाम को उन्होंने फैसले पर अपना हस्ताक्षर काट कर न्यायमूर्ति राय को कोर्ट ऑफिसर के जरिये सूचना दी कि वह जमानत के पक्ष में हैं. इसलिए फैसले को नए सिरे से लिखा जाए. मंगलवार को सुबह अदालत की बैठक शुरू होते ही न्यायमूर्ति राय अपने सहयोगी जज पर बुरी तरह बिफर गए. उन्होंने बार एसोसिएशन के प्रतिनिधियों और एडवोकेट जनरल को भी अदालत में हाजिर होने का निर्देश दिया. वहां न्यायमूर्ति करनान भी बैठे थे. न्यायमूर्ति राय का कहना था, "भलमनसाहत को किसी की कमजोरी नहीं समझना चाहिए. कलकत्ता हाईकोर्ट का इतिहास शानदार रहा है. यहां किसी की मर्जीमाफिक काम नहीं हो सकता." यह कहकर वह न्यायमूर्ति करनान को फटकारने लगे.
न्यायमूर्ति का बॉयकाट
सरकारी वकील ने भी न्यायमूर्ति करनान से सवाल किया कि जब वह इस फैसले से सहमत नहीं थे तो उनको उसी दिन अपनी राय बतानी चाहिए थी. इसके अलावा उन्होंने अपने हस्ताक्षर क्यों काट दिए. कुछ देर तक बहस चलने के बाद न्यायमूर्ति करनान ने कहा, "मुझे बाद में लगा कि अभियुक्तों को जमानत दी जा सकती है. इसलिए मैंने पहले के फैसले पर अपने हस्ताक्षर काट दिए." यह सुन कर न्यायमूर्ति राय का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया.
इस बीच भरी अदालत में दो जजों के बीच की इस भिड़ंत की खबर पूरे हाईकोर्ट परिसर में जंगल के आग की तरह फैल गई और वहां भारी भीड़ जुट गई. बाद में वकीलों के समझाने पर न्यायमूर्ति राय अदालत कक्ष से अपने चैंबर में चले गए. बाद में उन्होंने मुख्य न्यायधीश मंजुला चेल्लूर से इस मामले की शिकायत की.
अब हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने न्यायमूर्ति करनान के बॉयकाट का फैसला किया है. एसोसिएशन के सचिव सुरंजन दासगुप्ता कहते हैं, "न्यायमूर्ति करनान की वजह से पहले भी कई बार समस्या हुई है."
न्यायमूर्ति करनान इससे पहले अपने ही तबादले के आदेश पर स्थगितादेश देकर भी सुर्खियां बटोर चुके हैं. वह मद्रास हाईकोर्ट में जज थे. लेकिन राष्ट्रपति के आदेश पर कलकत्ता हाईकोर्ट में तबादला होने के बाद उन्होंने खुद ही उस पर स्थगितादेश दे दिया था. यही नहीं, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश से भी इस मामले पर लिखित बयान देने को कहा था.
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भारत में महिलाओं के कानूनी अधिकार
पिता की संपत्ति का अधिकार
भारत का कानून किसी महिला को अपने पिता की पुश्तैनी संपति में पूरा अधिकार देता है. अगर पिता ने खुद जमा की संपति की कोई वसीयत नहीं की है, तब उनकी मृत्यु के बाद संपत्ति में लड़की को भी उसके भाईयों और मां जितना ही हिस्सा मिलेगा. यहां तक कि शादी के बाद भी यह अधिकार बरकरार रहेगा.
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भारत में महिलाओं के कानूनी अधिकार
पति की संपत्ति से जुड़े हक
शादी के बाद पति की संपत्ति में तो महिला का मालिकाना हक नहीं होता लेकिन वैवाहिक विवादों की स्थिति में पति की हैसियत के हिसाब से महिला को गुजारा भत्ता मिलना चाहिए. पति की मौत के बाद या तो उसकी वसीयत के मुताबिक या फिर वसीयत ना होने की स्थिति में भी पत्नी को संपत्ति में हिस्सा मिलता है. शर्त यह है कि पति केवल अपनी खुद की अर्जित की हुई संपत्ति की ही वसीयत कर सकता है, पुश्तैनी जायदाद की नहीं.
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भारत में महिलाओं के कानूनी अधिकार
पति-पत्नी में ना बने तो
अगर पति-पत्नी साथ ना रहना चाहें तो पत्नी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने और बच्चों के लिए गुजारा भत्ता मांग सकती है. घरेलू हिंसा कानून के तहत भी गुजारा भत्ता की मांग की जा सकती है. अगर नौबत तलाक तक पहुंच जाए तब हिंदू मैरिज ऐक्ट की धारा 24 के तहत मुआवजा राशि तय होती है, जो कि पति के वेतन और उसकी अर्जित संपत्ति के आधार पर तय की जाती है.
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भारत में महिलाओं के कानूनी अधिकार
अपनी संपत्ति से जुड़े निर्णय
कोई भी महिला अपने हिस्से में आई पैतृक संपत्ति और खुद अर्जित की गई संपत्ति का जो चाहे कर सकती है. अगर महिला उसे बेचना चाहे या उसे किसी और के नाम करना चाहे तो इसमें कोई और दखल नहीं दे सकता. महिला चाहे तो उस संपत्ति से अपने बच्चो को बेदखल भी कर सकती है.
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भारत में महिलाओं के कानूनी अधिकार
घरेलू हिंसा से सुरक्षा
महिलाओं को अपने पिता या फिर पति के घर सुरक्षित रखने के लिए घरेलू हिंसा कानून है. आम तौर पर केवल पति के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले इस कानून के दायरे में महिला का कोई भी घरेलू संबंधी आ सकता है. घरेलू हिंसा का मतलब है महिला के साथ किसी भी तरह की हिंसा या प्रताड़ना.
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भारत में महिलाओं के कानूनी अधिकार
क्या है घरेलू हिंसा
केवल मारपीट ही नहीं फिर मानसिक या आर्थिक प्रताड़ना भी घरेलू हिंसा के बराबर है. ताने मारना, गाली-गलौज करना या फिर किसी और तरह से महिला को भावनात्मक ठेस पहुंचाना अपराध है. किसी महिला को घर से निकाला जाना, उसका वेतन छीन लेना या फिर नौकरी से संबंधित दस्तावेज अपने कब्जे में ले लेना भी प्रताड़ना है, जिसके खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला बनता है. लिव इन संबंधों में भी यह लागू होता है.
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भारत में महिलाओं के कानूनी अधिकार
पुलिस से जुड़े अधिकार
एक महिला की तलाशी केवल महिला पुलिसकर्मी ही ले सकती है. महिला को सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले पुलिस हिरासत में नहीं ले सकती. बिना वारंट के गिरफ्तार की जा रही महिला को तुरंत गिरफ्तारी का कारण बताना जरूरी होता है और उसे जमानत संबंधी उसके अधिकारों के बारे में भी जानकारी दी जानी चाहिए. साथ ही गिरफ्तार महिला के निकट संबंधी को तुरंत सूचित करना पुलिस की ही जिम्मेदारी है.
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भारत में महिलाओं के कानूनी अधिकार
मुफ्त कानूनी मदद लेने का हक
अगर कोई महिला किसी केस में आरोपी है तो महिलाओं के लिए कानूनी मदद निःशुल्क है. वह अदालत से सरकारी खर्चे पर वकील करने का अनुरोध कर सकती है. यह केवल गरीब ही नहीं बल्कि किसी भी आर्थिक स्थिति की महिला के लिए है. पुलिस महिला की गिरफ्तारी के बाद कानूनी सहायता समिति से संपर्क करती है, जो कि महिला को मुफ्त कानूनी सलाह देने की व्यवस्था करती है.
रिपोर्ट: ऋतिका राय