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गांव की औरतें तो सेक्स पर बहुत बात करती हैं!

विवेक कुमार१० अगस्त २०१६

भारत में गांवों की औरतें सेक्स पर क्या बात करती होंगी? लीना यादव की फिल्म 'पार्च्ड' इस सवाल का उम्दा जवाब है. लेकिन भारत के लिहाज से क्या यह एक बेहद बोल्ड फिल्म नहीं है?

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Tanishtha Chatterjee
तस्वीर: DW

16 साल पहले यानी साल 2000 में एक फिल्म आई थी, बवंडर. राजस्थान के बेहद चर्चित भंवरी देवी रेप केस पर बनी इस फिल्म में नंदिता दास का अभिनय देखकर लोग दंग रह गए थे. लेकिन एक डायलॉग ने तो लोगों की नींदें उड़ा दी थीं. एक सीन में भंवरी देवी कोर्ट में हैं. वकील सवालों के जरिये उन्हें अपमानित करने की कोशिश कर रहा है. वह पूछता है, जब तुम्हारे साथ वो काम हुआ तब पानी झड़ा था क्या. यह सवाल कंपा देने वाला था. अदालत सन्न रह गई थी. कोई इस तरह का सवाल कैसे पूछ सकता है! लेकिन यह हैरत का चरम नहीं था. चरम था भंवरी देवी का जवाब. भंवरी देवी बनीं नंदिता दास ने तो जैसे अपने अभिनय के सारे सुर उस एक डायलॉग में लगा दिए थे. वह वकील की ओर थोड़ा सा झुकीं और उसकी आंखों में आंखें डालकर कहा, "जद मेल औरत री मर्जी से होवे, तो पाणी झड़े है, नहीं तो खून बहवे है."

इस एक डायलॉग के सामाजिक और लैंगिक पहलू तो हैं ही, एक और ऐसा पहलू है जिसकी ओर फिल्म देखकर निकली एक लड़की ने ध्यान दिलाया था. उसका कहना था, "यह डायलॉग लोगों के लिए विशेष इसलिए है क्योंकि वे मानकर चलते हैं कि गांव की औरतें सेक्स पर बात नहीं करतीं. लेकिन जब शहरों में फीमेल ऑर्गैजम और जी-स्पॉट पर लिखा, पढ़ा और बोला जा रहा है तो आप ऐसा क्यों मानते हैं कि गांव की औरतें बात नहीं करती होंगी?"

लीना यादव की फिल्म पार्च्ड इसी बात को बहुत सलीके और तरीके से कहती है. दुनियाभर में कई फिल्म महोत्सवों में दिखाई जा चुकी इस फिल्म ने भारतीय ग्रम्य जीवन का एक ऐसा पहलू उठाया है जिस पर बात होना तो दूर, जिसके वजूद तक से अक्सर समाज अनजान है. पार्च्ड ग्रामीण महिलाओं की दमित यौन इच्छाओं पर बात करती है. फिल्म की मुख्य कलाकार तनिष्ठा चटर्जी कहती हैं, "कहानी एक औरत रानी की है. रानी राजस्थान के एक छोटे से गांव की एक विधवा है. वह अपनी सारी जिम्मेदारियां पूरी कर चुकी है. लेकिन एक खालीपन है. 15 साल की उम्र में वह विधवा हो गई थी. और फिल्म में वह 32 साल की है. यानी 17 साल हो गए, उसकी जिंदगी में कोई पुरुष नहीं है. किसी ने उसे छुआ नहीं है. तो उसके अंदर दमित इच्छाएं हैं. फिर उसकी सहेलियां बिजली और लज्जो हैं. और एक उसकी बहू है. कहानी इन चार महिलाओं के आपसी रिश्तों, सेक्शुऐलिटी और इच्छाओं की कहानी है." तीनों महिलाएं रानी की बहु से किस्से सुनती हैं कि रात कैसे बीती और क्या-क्या हुआ. वे अपनी-अपनी बातें बताती हैं. और एक दूसरे को कहने के लिए उकसाती भी हैं. क्या गांव की औरतें सेक्स पर इतनी सारी बातें कर लेती हैं? चटर्जी कहती हैं, "उल्टा है, जी. वे तो ज्यादा बातें करती हैं. हम लोग जब शूटिंग के दौरान लोगों से बातचीत कर रहे थे तो देखा कि जिस ढंग से वे आपस में बात करती हैं, उसमें गजब का खुलापन है. बाहर एक पितृसत्ता है जिसकी वजह से दमन है. लेकिन औरतों के बीच जिस तरह की बात होती है, वह हम शहर की लड़कियां भी नहीं करती हैं." ऐसा कहते हुए चटर्जी हौले से हंस देती हैं. फिर वह कहती हैं कि वे लोग खुलकर बात करती हैं क्योंकि उनका और कोई आउटलेट नहीं है.

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जिस देश में औरत की सेक्शुअल इच्छाओं पर बहस का स्तर अभी यह है कि मिनी स्कर्ट पहनने से रेप होते हैं, उस देश में पार्च्ड एक बेहद बोल्ड फिल्म है. हाल ही में सेंसर बोर्ड के रुख को देखते हुए तो ऐसी फिल्म बनाना और भी मुश्किल हो जाता है. लीना यादव और तनिष्ठा दोनों इस बात को समझ रही थीं, फिर भी उन्होंने इस फिल्म को बनाने का फैसला किया. चटर्जी मानती हैं कि उनकी फिल्म देखने वाले भी भारत में बहुत रहते हैं. वह कहती हैं, "मुझे ऐसा लगता है कि इंडिया में हम लोग बहुत अलग अलग समुदायों में रहते हैं. बहुत अलग अलग ढंग के लोग हैं. कुछ लोगों को बहुत पसंद आएगी तो कुछ कहेंगे कि ये क्या हो रहा है. क्योंकि इंडिया में कोई एक नहीं है."

फिल्म उस विचार को आगे बढ़ाती है कि औरतों को औरत न मानकर इंसाना माना जाए और उनकी इच्छाओं का सम्मान किया जाए. चटर्जी कहती हैं कि जब तक लड़कियों को मां, बहन या देवी माना जाएगा तब तक दिक्कतें रहेंगी. वह कहती हैं, "लीना और मैंने बहुत डिस्कस किया कि जब तक हम नहीं मानेंगे कि औरत भी एक सेक्शुअल बीइंग है, उसकी भी इच्छाएं हैं, वह भी अपने आप को एक्सप्रेस करना चाहती है, तब तक हम उनको रिस्पेक्ट नहीं कर पाएंगे. तब तक हम यही कहेंगे कि मिनी स्कर्ट पहनकर चल रही थी, या रात को किसी और के साथ जा रही थी. तब तक हम उसे छेड़ते भी रहेंगे. जिस दिन हम इस बात को स्वीकार कर लेंगे कि वह भी इंसान है, उसकी भी इच्छाएं हैं, उस दिन हम उसकी इज्जत कर पाएंगे."

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और जैसे ही औरत को सिर्फ औरत न मानकर इंसान माना जाता है, उसकी हर कहानी वैश्विक हो जाती है. राजस्थान के गांव में सेक्स पर चुहलबाजी करती औरतें इंग्लैंड, जर्मनी और स्वीडन की औरतों को अपने जैसी लगती हैं. चटर्जी बताती हैं कि जिस भी जगह फिल्म दिखाई गई, इसकी तारीफ हुई. उन्होंने कहा, "यह भारत की औरतों की कहानी नहीं है. लंदन, स्वीडन और दुनिया में जिस भी जगह फिल्म दिखाई गई, वहां बहुत औरतों ने आकर कहा कि ऐसा मेरे पड़ोस में हुआ था या मेरे रिश्तेदार के साथ हुआ था."