2025 तक दुनिया से बाल मजदूरी खत्म करने का लक्ष्य
१५ नवम्बर २०१७भारत में बच्चों को अगरबत्ती और पटाखा फैक्ट्री में काम दिया जाता है, तो अफ्रीका में इनके हाथों कोबाल्ट निकलवाया जाता है. संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के मुताबिक मजदूरी कर रहे आधे बच्चे खतरनाक किस्म के कामों में लगे हैं. आईएलओ के महानिदेशक गाय राइडर ने ब्युनोस आयर्स में हो रहे अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में कहा कि 90 के दशक की तुलना में बाल श्रमिकों की संख्या में दस करोड़ से भी ज्यादा की कमी आयी है. लेकिन उन्होंने यह भी माना कि बीते सालों में कमी की दर धीमी हो गयी है. राइडर ने कहा, "हम यह तो अंदाजा नहीं लगा सकते कि भविष्य में लेबर मार्केट किस तरह से बदलेगी लेकिन हम एक बात जरूर जानते हैं कि अब हम और बाल मजदूरी नहीं चाहते और ना ही आधुनिक जमाने की गुलामी."
आईएलओ के आंकड़ों के अनुसार दुनिया में आज भी 15 करोड़ से अधिक बाल श्रमिक मौजूद हैं और इनमें से कम से कम ढाई करोड़ से जबरन मजदूरी करायी जा रही है. अर्जेंटीना में चल रही आईएलओ की चौथी कांफ्रेंस में 2025 तक दुनिया से बाल मजदूरी को हटाने का लक्ष्य रखा गया है. इस सम्मेलन में 193 देश हिस्सा ले रहे हैं. सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है जब मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट 'टाइम टू रिचार्ज' पर दुनिया भर में चर्चा चल रही है.
एमनेस्टी के अनुसार दुनिया की 28 बड़ी कंपनियों पर की गयी रिसर्च में पाया गया कि आधी कंपनियां ऐसी हैं, जो बाल मजदूरी से निकलवाये गये कोबाल्ट का इस्तेमाल करती हैं. कोबाल्ट का इस्तेमाल मोबाइल फोन और इलेक्ट्रिक कारों की बैटरी बनाने के लिए किया जाता है. एमनेस्टी की सूची में माइक्रोसॉफ्ट, रेनो और हुवाई जैसे बड़े नाम शामिल हैं. एमनेस्टी के अनुसार सात साल के छोटे बच्चे अपनी सेहत और जान को खतरे में डाल कर कोबाल्ट निकालते हैं जिसका इस्तेमाल अक्षय ऊर्जा के लिए किया जाता है. संस्था का कहना है कि जांच के दौरान कोई भी कंपनी ऐसी नहीं मिली, जो मानवधिकारों का पूरी तरह ख्याल रखती हो.
फोन बनाने वाली कंपनियां एप्पल, सैमसंग और सोनी और साथ ही जर्मनी की मशहूर कार निर्माता कंपनियां बीएमडब्ल्यू, फॉल्क्सवागेन और डैमलर भी इसमें शामिल हैं.
आईबी/एके (डीपीए, रॉयटर्स)