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सोशल मीडिया से यूं खेल रहे हैं एर्दोआन

एलिजाबेथ ग्रेनियर/ईशा भाटिया२२ जुलाई २०१६

तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोआन ने तख्तापलट की कोशिश को नाकामयाब करने के लिए जिस सोशल मीडिया का सहारा लिया, अब वे उसी पर नकेल कसने में लगे हैं.

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President Tayyip Erdogan Facetime
तस्वीर: Screenshot/CNN Turk/Reuters

तुर्की में पिछले एक साल में कई आतंकी हमले हुए हैं. हर हमले के बाद इस्तांबुल और अंकारा जैसे शहरों में सुरक्षा तो कड़ी की ही जाती है, साथ ही सोशल मीडिया को ब्लॉक भी कर दिया जाता है. टर्की ब्लॉक्स नाम की संस्था देश में लगाए गए इन प्रतिबंधों पर ध्यान देती है. इस संस्था के अल्प तोकर ने डॉयचे वेले को बताया कि जिस समय तुर्की में तख्तापलट की कोशिश हो रही थी, उस समय भी उनकी टीम इंटरनेट को मॉनिटर कर रही थी, "एक तरफ हमें ऊपर उड़ रहे जेट प्लेनों की आवाज आ रही थी और दूसरी ओर हम मॉनिटरिंग में लगे हुए थे, अजीब हाल था."

तोकर बताते हैं कि कू के दौरान सोशल मीडिया को दो घंटे से भी कम वक्त के लिए ब्लॉक किया गया था. जबकि आमतौर पर किसी भी हमले के बाद कम से कम 12 से 14 घंटे तक ब्लॉक रहता है. राष्ट्रपति एर्दोआन का मानना है कि उनके विरोधी इंटरनेट का फायदा उठा सकते हैं, इसलिए वे हमलों के बाद सोशल मीडिया को बंद करवा देते हैं. लेकिन इस बार वे खुद ही इसे सबसे ज्यादा बढ़ चढ़ कर इस्तेमाल करते दिखे. उन्होंने, फेसबुक, ट्विटर, व्हॉट्सऐप और एसएमएस के जरिये नागरिकों से संपर्क साधा. अपने ट्वीट में उन्होंने लोगों से अपील की कि वे सड़कों पर निकलें, हवाईअड्डे समेत अन्य महत्वपूर्ण जगहों पर जाएं और सेना का सामना करें.

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एर्दोआन के संदेश 80 लाख लोगों तक पहुंचे. इतना ही नहीं, उन्होंने टीवी चैनल सीएनएन टर्क से भी संपर्क किया और फेसटाइम के जरिये बात की. उनका इंटरव्यू करने वाली ऐंकर हांदे फिरात ने जर्मनी के बिल्ड अखबार से बात करते हुए कहा, "शुरू में मेरे हाथ कांप रहे थे." किसी भी देश के मीडिया के लिए यह एक नया तजुर्बा था. अल्प तोकर का कहना है, "यह वाकई अनोखा था. आमतौर पर वे (एर्दोआन) बेहद औपचारिक दिखना पसंद करते हैं."

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मीडिया के जानकार यह भी मान रहे हैं कि जिस तरह से एर्दोआन एक पर्दे के सामने खड़े नजर आए, वे और उनकी टीम "इमरजेंसी" वाला माहौल बनाने में कामयाब रही. इसे डिजिटल मीडिया के उपयोग में एक मील का पत्थर भी माना जा रहा है. लेकिन कमाल की बात है कि इन्हीं एर्दोआन ने कुछ साल पहले ट्विटर को "समाज का सबसे बड़ा शैतान" बताया था. वो अलग बात है कि 2009 से वे खुद भी ट्विटर पर हैं. लेकिन वे हमेशा कहते रहे हैं कि ट्विटर का अकाउंट वे खुद नहीं, बल्कि उनकी कम्युनिकेशन टीम संभालती है. बहरहाल सोशल मीडिया का फायदा उन्हें हुआ और उनके समर्थकों ने तख्तापलट की कोशिश को नाकामयाब कर दिया. अब तो यहां तक भी कहा जा रहा है कि सेना की मास कम्युनिकेशन स्ट्रैटजी अच्छी नहीं थी, इसलिए वह विफल हुई.

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अब एर्दोआन एक एक कर अपने दुश्मनों को ढूंढ रहे हैं. देश में इमरजेंसी की स्थिति घोषित कर दी गयी है. फेसबुक और यूट्यूब पर भी उनकी टीम की नजर है कि कौन क्या कर रहा है. 20 वेबसाइटें ऐसी हैं जिन्हें ब्लॉक कर दिया गया है. इसके लिए वजह यह दी गयी है कि वे तख्तापलट के कथित मास्टरमाइंड फतेहुल्ला गुलेन के समर्थन में चलाई जा रही हैं जबकि इस्तांबुल स्थित सोशल मीडिया एनेलिस्ट सरदार पाकतिन का कहना है कि इनमें से एक तो गुलेन विरोधी वेबसाइट है और फिर भी उसे ब्लॉक किया गया है. इसके अलावा फेसबुक पर एर्दोआन का कथित अपमान करने के आरोप में दो लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है. इसे देखते हुए कई लोगों ने ट्विटर और फेसबुक पर अपनी सेटिंग्स "प्राइवेट" में बदल दी हैं.

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राजनैतिक रूप से तुर्की एक बेहद बंटा हुआ देश है. वहां एर्दोआन के कट्टर समर्थक भी मिल जाएंगे और आलोचक भी. माना जाता है कि एर्दोआन को आलोचक पसंद नहीं. कई प्रोफेसरों को नौकरी से निकाल दिया गया है. इसके अलावा वे मौत की सजा पर से रोक हटाने की भी बात कर चुके हैं. अब राष्ट्रपति के कड़े रुख को देखते हुए लोग "सेल्फ-सेंसरशिप" की ओर बढ़ने लगे हैं, आलोचकों ने अपनी जबान पर खुद ही लगाम लगा ली है. तुर्की का लोकतंत्र फिलहाल खतरे में दिखता है.

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