1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

पाकिस्तान के निशाने पर आतंकवादी हैं या अपने ही नेता?

शामिल शम्स८ सितम्बर २०१६

पाकिस्तान में पिछले दिनों खैबर पख्तून ख्वाह प्रांत में एक ही दिन में हुए दो हमलों के बाद सवाल उठने लगा है कि क्या आतंकवादियों के खिलाफ जारी पाकिस्तानी सेना का ऑपरेशन जर्ब-ए-अज्ब नाकाम हो गया है?

https://p.dw.com/p/1JxTD
Pakistan Quetta Bombenanschlag vor einer Klinik
तस्वीर: Getty Images/AFP/B. Khan

हाल में मरदान शहर में एक आत्मघाती हमलावर ने 12 लोगों की जान ले ली जबकि इससे चंद घंटों पहले पेशावर की क्रिश्चियन कालोनी में हुए हमले में एक व्यक्ति की मौत हुई. दोनों हमलों की जिम्मेदारी जमात-उल-अहरार नाम के एक संगठन ने ली जो पाकिस्तान तहरीक-ए-तालिबान से टूट कर बना है.

एक के बाद एक होने वाले ये हमले बताते हैं कि उग्रवादियों के खिलाफ सेना के ऑपरेशन जर्ब-ए-अज्ब के बावजूद वो आम लोगों को निशाना बनाने की ताकत रखते हैं. ये ऑपरेशन दो साल से भी ज्यादा समय से चल रहा है और इसे खासा कामयाब माना जाता है. मरदान और पेशावर में हुए हमलों से एक दिन पहले ही पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता असीम बाजवा ने बताया कि जून 2014 में शुरू हुए इस अभियान में सुरक्षा बलों ने 3,500 हजार से ज्यादा आतंकवादियों को मारा है.

तस्वीरों में: पाकिस्तान में दहशत के 10 साल

सेना की भरपूर कोशिश रही है कि इस अभियान को मीडिया में खूब जगह मिले. इसके बारे में सेना का जनसंपर्क विभाग खूब ट्वीट करता है, सेना ने इसकी तारीफ में देशभक्ति गीत तैयार करवाए हैं और बहुत से सुरक्षा विश्लेषक भी इसकी सराहना करते हुए नहीं थकते हैं. पाकिस्तान के लोगों को बताया जाता है कि देश के सभी हिस्सों में शांति बहाल कर दी गई है.

हालांकि कुछ विश्लेषक मानते हैं कि क्वेटा में अगस्त में हुए धमाके और अब खैबर पख्तून ख्वाह के हमलों ने साबित कर दिया है कि उग्रवाद से निपटने की सेना की रणनीति में कुछ खामियां हैं.

सरकार ने भी पहली बार माना है कि आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट पाकिस्तान में जड़ जमाने की कोशिश कर रहा है.

देखिए, हथियारों का सबसे बड़ा निर्यातक कौन है

सैन्य प्रवक्ता आसिम बाजवा ने कहा, "उन्होंने (आईएस) पाकिस्तान में (घुसने की) कोशिश की लेकिन वो नाकाम रहे और उन्हें पकड़ लिया गया." उन्होंने कहा कि विदेश मंत्रालय, विदेशी दूतावासों, कांसुलेट, इस्लामाबाद एयरपोर्ट, अहम सरकारी इमारतों और पत्रकारों पर हमलों की इस्लामिक स्टेट की साजिशों को नाकाम बना दिया गया. इसी संदर्भ में बहुत से लोग पूछते हैं कि क्या जर्ब-ए-अज्ब काम कर रहा है?

अमरीका की ओकलाहोमा यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय मामलों पर अस्सिटेंट प्रोफेसर अकील शाह का कहना है कि आंतकवाद से निपटने की पाकिस्तान की रणनीति में बुनियादी विरोधाभास है. उनका कहना है कि पाकिस्तान की सेना सिर्फ उन आतंकवादियों को निशाना बनाती है जो पाकिस्तान में हमले कर रहे हैं जबकि जो उसके दुश्मनों पर हमला करते हैं, उनकी सरपरस्ती की जाती है.

उनका इशारा अफगान तालिबान और हक्कानी नेटवर्क की तरफ है जो अफगानिस्तान में सक्रिय है और वहां पाकिस्तान का असर बनाए रखने में मददगार साबित होते हैं. इन फहरिस्त में एक और नाम वो लश्कर-ए-तैयबा का लेते हैं जो भारतीय सुरक्षा बलों से कश्मीर में लड़ रहा है. कुछ यही बात अमरीकी विदेश मंत्री जॉन कैरी ने अपने हालिया भारत दौरे में भी कही थी. उन्होंने कहा था, "उन्हें हमारे साथ मिल कर बुरे किरदारों की शरणस्थलियों को साफ करना होगा जो न सिर्फ भारत और पाकिस्तान के रिश्तों को प्रभावित कर रहे हैं बल्कि अफगानिस्तान में भी शांति की राह में रोड़ा बन रहे हैं."

तस्वीरों में: दिलों को बांटती दीवारें

अमरीका में राजनीतिक इस्लाम के जानकार आरिफ जमाल कहते हैं कि जर्ब-ए-अज्ब अभियान कभी भी पाकिस्तान में पैदा होने वाले जिहादियों को निशाना बनाने के लिए शुरू नहीं किया गया था. उन्होंने कहा, "वास्तव में ये अभियान आतंकवादियों को खत्म करने के लिए नहीं बल्कि पाकिस्तान की सियासी पार्टियों को कमजोर करने के लिए शुरू किया गया था. हाफिज सईद और हिज्बुल मुजाहिदीन के यूसुफ शाह जैसे दुनिया के नामी आतंकवादी पाकिस्तान में खुले आम रैलियां कर रहे हैं, जिहादियों को भर्ती कर रहे हैं और चंदा जमा कर रहे हैं." हालांकि सैन्य प्रवक्ता आसिम बाजवा का कहना है कि जर्ब-ए-अज्ब में सब आतंकवादियों को निशाना बनाया जा रहा है. जून में डीडब्ल्यू के साथ इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि हक्कानी नेटवर्क समेत सभी आंतकवादियों के खिलाफ सेना कार्रवाई कर रही है.

वहीं कई मानवाधिकार कार्यकर्ता भी इस बात से सहमत हैं कि इस अभियान के जरिए राजनेताओं को निशाना बनाया जा रहा है. इनमें आसमा जहांगीर भी शामिल हैं. वो कहती हैं कि सेना नागरिक प्रशासन में अपना दबदबा बनाए रखना चाहती है और इसीलिए राजनेताओं और प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के खिलाफ सेना बाकायदा अभियान चला रही है. जानकारों का कहना है कि सेना को नियंत्रित करने के लिए नवाज शरीफ को और ज्यादा अंतरराष्ट्रीय समर्थन की जरूरत है, खास कर पश्चिम को पाकिस्तान पर दबाव बनाने की जरूरत है ताकि वहां लोकतांत्रिक संस्थाएं मजबूत हो सकें.

जानिए, किसके पास कितने ऐटम बम हैं

ब्रसेल्स में दक्षिण एशिया से जुड़े मामलों पर शोध करने वाले जिगफ्रीड ओ वोल्फ ने डीडब्ल्यू को बताया, "आंतकवाद से लड़ने की पाकिस्तान की कोशिशों के बावजूद देश की सेना और खुफिया एजेंसियां पारंपरिक दोहरी नीति पर अमल कर रही हैं जिसे सरकार प्रायोजित आतंकवाद भी कहा जा सकता है." वह कहते हैं कि "पाकिस्तान के साथ अंतरराष्ट्रीय समुदाय को सहयोग करना चाहिए, लेकिन हर कीमत पर नहीं."