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लाखों महिलाओं को इंदुमती जैसी बनाएगा गूगल

प्रभाकर९ जून २०१६

गूगल ने टाटा ट्रस्ट के साथ मिल कर पश्चिम बंगाल में इंटरनेट साथी नामक एक अनूठी परियोजना शुरू की है. इसके तहत झारखंड से सटे राज्य के सबसे पिछड़े पुरुलिया जिले के चार सौ गांवों में यह परियोजना शुरू होगी.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/L. Schulze

ग्रामीण महिलाओं को इंटरनेट के सहारे सशक्त बनाने और उनको इंटरनेट के विभिन्न पहलुओं से अवगत कराने के लिए इंटरनेट सर्च इंजन गूगल ने टाटा ट्रस्ट के साथ मिल कर पश्चिम बंगाल में इंटरनेट साथी नामक एक अनूठी परियोजना शुरू की है. इसके तहत झारखंड से सटे राज्य के सबसे पिछड़े पुरुलिया जिले के चार सौ गांवों में यह परियोजना शुरू होगी.

गूगल का कहना है कि ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट के प्रति महिलाओं व पुरुषों की जागरूकता में भारी अंतर है. दस में से महज एक महिला ही इंटरनेट से अवगत है. गूगल की इस परियोजना के लिए आबादी को ध्यान में रखते हुए भारत का चयन किया गया है. इस योजना के तहत नौ राज्यों में दो लाख महिलाओं को प्रशिक्षित किया जा चुका है. अब बंगाल की बारी है. यहां एक लाख महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जाएगा. इस परियोजना के तहत गूगल की ओर से ऐंड्रॉयड टेबलेट, स्मार्टफोन और इंटरनेट डाटा मुहैया कराया जा रहा है.

साझा कार्यक्रम

गूगल और टाटा ट्रस्ट ने पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में इस कार्यक्रम का ऐलान किया. गूगल इंडिया की मार्किटिंग प्रमुख सपना चड्ढा बताती हैं, ‘अगले कुछ महीनों के दौरान पुरुलिया जिले के चार सौ गांवों में यह परियोजना शुरू की जाएगी. हमारी योजना एक लाख महिलाओं तक पहुंचने की है.' वह बताती हैं कि इस साझा डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम के तहत महिलाओं को इंटरनेट के फायदों और इसके इस्तेमाल का प्रशिक्षण दिया जाएगा. उनको स्मार्टफोन और टैबलेट का इस्तेमाल करना सिखाया जाएगा. प्रशिक्षण हासिल करने के बाद वे महिलाएं अपने इलाके की दूसरी महिलाओं को इंटरनेट का इस्तेमाल करना सिखाएंगी.

परियोजना के साझीदार टाटा ट्रस्ट के गणेश नीलम कहते हैं, ‘इस कार्यक्रम का ग्रामीण समुदाय की महिलाओं पर दीर्घकालीन असर होगा. इससे स्मार्टफोन और टैबलेट का इस्तेमाल करने का आत्मविश्वास पैदा होगा. इसके जरिए महिलाएं स्वास्थ्य, कृषि व शैक्षणिक संसाधनों जैसी सेवाओं और विभिन्न सरकारी योजनाओं तक पहुंच बना सकती हैं.'

चुनौतियां

खासकर बंगाल के पुरुलिया जैसे पिछड़े जिले में इस परियोजना को लागू करने की राह में कई चुनौतियां भी हैं. गणेश बताते हैं, ‘भाषा और सांस्कृतिक बाधाओं को पार करना और दूर-दराज के गावों में इंटरनेट कनेक्टिविटी इसकी राह में सबसे बड़ी चुनौती है.' इस कार्यक्रम के तहत महिलाओं का चुनाव इलाके में सक्रिय स्व-सहायता समूहों की सहायता से किया जाएगा. पहले चरण में 120 इंटरनेट साथियों को प्रशिक्षण दिया जाएगा. वह कहते हैं कि बंगाल में अपने अब तक के अनुभव के आधार पर ही पुरुलिया जिले को चुना गया है. सपना कहती हैं, ‘ग्रामीण भारत में फिलहाल दस में से एक महिला ही इंटरनेट का इस्तेमाल करती है. इंटरनेट साथी का मकसद ग्रामीण भारत में उन महिलाओं को सशक्त करना है ताकि वे अपने इलाके में बदलाव का एजंट बन सकें.'

आत्मविश्वास बढ़ा

इस कार्यक्रम में पुरुलिया जिले के एक दूर-दराज के गांव से आई इंदुमती महतो और उसकी कुछ सहेलियां भी मौजूद थीं. उनको दूसरी जगहों पर इंटरनेट साथी के तहत प्रशिक्षण दिया गया है. अपना अनुभव बताते हुए इंदुमती कहती है, ‘अब मैं ऑनलाइन जाने से नहीं झिझकती. इंटरनेट साथी ने मुझे स्मार्टफोन पर इंटरनेट का इस्तेमाल करना सिखा दिया है.' वह बताती हैं कि इसके जरिए उसे गांव की एक महिला की सुरक्षित डिलीवरी कराने में कामयाबी मिली और जच्चा-बच्चा दोनों की जान बच गई. इंदुमती बताती है, ‘पहले-पहल तो कई सवाल उठे थे. मसलन आखिर हम इंटरनेट का इस्तेमाल क्यों करें और इससे हमें क्या फायदा होगा ? लेकिन जब गांव की एक महिला को बच्चे को जन्म देने के लिए नदी पार कर नजदीकी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक जाने में दिक्कत हुई तो मैंने इंटरनेट के जरिए पड़ोसी झारखंड के एक स्वास्थ्य केंद्र का पता लगाया.'

महतो बताती है कि अब इलाके की महिलाओं समेत कई लोगों को महसूस होने लगा है कि इंटरनेट किस तरह हमारी सहायता कर सकता है. महतो को इस परियोजना के तहत हर महीने एक हजार रुपए मिलते हैं.

रिपोर्टः प्रभाकर