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सर्वे: मैर्केल की रिफ्यूजी नीति पर जर्मनी विभाजित

सबीने किंकार्त्स/एमजे२३ अगस्त २०१६

एक साल पहले चांसलर अंगेला मैर्केल ने कहा था, "हम चुनौती से निबट सकते हैं." वे सही थीं या लाखों शरणार्थियों को जर्मनी आने देकर उन्होंने गलती की थी? डॉयचे वेले ने लोगों से इसके बारे में उनकी राय पूछी.

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Deutschland Integration Treffpunkt für Flüchtlinge und Helfer in Leipzig
तस्वीर: picture-alliance/ZB/S. Willnow

ये संकेतों से भरी तस्वीरें हैं, बाल्कन रूट पर लंबी कतारों में उत्तर की ओर मार्च करते मुख्य रूप से सीरिया, अफगानिस्तान और इराक के पुरुष, औरतें और बच्चे. 2015 की गर्मियों और उसके बाद के महीनों में लाखों शरणार्थी जर्मनी पहुंचे. चांसलर मैर्केल ने 31 अगस्त को बर्लिन में कहा, "हम चुनौती से निबट सकते हैं." ये वाक्य उनकी शरणार्थी नीति को निर्देशित करता रहा है.

क्या इस नीति ने जर्मनी को बदल दिया है और यदि हां तो किस तरह? जनमत सर्वेक्षण करने वाली संस्था इंफ्राटेस्ट डीमैप ने डॉयचे वेले की ओर से लोगों से पूछा कि वे इसके बारे में क्या सोचते हैं. 15 से 17 अगस्त के बीच करीब 1,000 रजिस्टर्ड वोटरों से उनकी राय पूछी गई. उन्हें चार विकल्प दिए गए जिन पर वे हां या ना में जवाब दे सकते थे.

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शिक्षा और सामाजिक मुद्दे

उम्मीद वाली भविष्यवाणियों के अनुसार, शरणार्थियों के समर्थन पर हर साल 15 अरब यूरो खर्च होंगे. जर्मनी आने वाले लोगों को घर देना होगा और खाने पीने का इंतजाम करना होगा. समाज में उनका समेकन तभी संभव होगा जब वे जर्मन सीखेंगे और शिक्षा हासिल करेंगे. इसके लिए शिक्षकों की जरूरत होगी और बच्चों की देखभाल और शिक्षा के लिए किंडरगार्टनों और स्कूलों की. क्या जर्मनी की शिक्षा और सामाजिक व्यवस्था पर इसका बोझ पड़ेगा? सर्वे में भाग लेने वाले लोगों ने हल्के बहुमत से इसका हां में जवाब दिया. शिक्षा और सामाजिक व्यवस्था पर अतिरिक्त दबाव, खासकर दक्षिणपंथी पॉपुलिस्ट पार्टी एएफडी के समर्थकों की चिंता है. एएफडी के समर्थकों में सिर्फ 15 प्रतिशत इससे सहमत नहीं हैं.

जर्मन बोलने वाले शिक्षित और तंदुरुस्त इंसान के लिए जर्मन रोजगार बाजार में नौकरी पाने का अच्छा मौका है. जर्मनी आबादी के मोर्चे पर गंभीर चुनौती झेल रहा है. लोगों की उम्र बढ़ रही है और पर्याप्त संख्या में उनके पीछे युवा पीढ़ी नहीं आ रही है. खासकर उद्यम इसका दबाव झेल रहे हैं. हर 100 बेरोजगार इंसान पर 200 खाली रिक्तियां हैं. क्या शरणार्थी इन जगहों को भर पाएंगे?

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जवाब आसान नहीं है. जर्मनी में मेकैनिकल इंजीनियरिंग, ऑटोमोबाइल उद्योग और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग से देश का 20 प्रतिशत आर्थिक उत्पाद पैदा होता है. लेकिन इन उद्योगों की उन देशों में कोई परंपरा नहीं है जहां से शरणार्थी आ रहे हैं. इसलिए इन इलाकों में खाली नौकरियों को भरने की अहर्ता शरणार्थियों में शून्य के बराबर है. इसके बावजूद सर्वे में भाग लेने वालों का हल्का बहुमत इस राय का है कि प्रवासी मजदूर जर्मन अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाएंगे.

राजनीतिक प्रतिबद्धताओं का असर

शिक्षा और सामाजिक व्यवस्था के सवाल पर एएफडी के समर्थक शरणार्थियों के आने से रोजगार बाजार को कोई फायदा नहीं देखते लेकिन राजनीतिक विचारों से परे युवा, पढ़े लिखे और उच्च आय वाले जर्मनों की राय है कि शरणार्थियों से जर्मन अर्थव्यवस्था को फायदा होगा. 50 से ज्यादा उम्र के बुजुर्ग और निम्न शैक्षणिक योग्यता वाले लोग इससे सहमत नहीं हैं. यूं भी शरणार्थियों के आने का सिर्फ अर्थव्यवस्था पर ही नहीं समाज पर भी असर होगा. जर्मनी खासकर बड़े शहरों में बहुसांस्कृतिक हो चुका है. भविष्य में इसमें और वृद्धि ही होगी. जर्मन इसके बारे में क्या सोचते हैं?

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इस मामले में राजनीतिक रुझानों की कोई भूमिका नहीं है. युवा और शइक्षित जर्मन बहुसांस्कृतिकता के समर्थक हैं. वे अंगेला मैर्केल की शरणार्थी नीति और आतंकी हमलों में वृद्धि के बीच संबंध होने को भी नकारते हैं, जबकि बुजुर्ग और कम शिक्षित लोगों का मानना है कि भविष्य में जर्मनी को और आतंकी हमलों का सामना करना होगा. आतंकी हमलों पर राय के मामले में राजनीतिक प्रतिबद्धताओं की भी भूमिका है. एएफडी के 100 समर्थकों में सिर्फ 7 लोगों का मानना है कि भविष्य में ज्यादा आतंकी हमले नहीं होंगे.

सर्वे के नतीजे दिखाते हैं कि मैर्केल की शरणार्थी नीति पर जर्मनों के अलग अलग विचार हैं. समर्थन और विरोध लगभग बंटा हुआ है. सिर्फ ग्रीन पार्टी और एएफडी की रुझान साफ हैं. दक्षिणपंथी एएफडी के समर्थकों के विशाल बहुमत का मानना है कि सरकार की शरणार्थी नीति का सिर्फ नकारात्मक असर होगा. ग्रीन पार्टी के तीन चौथाई समर्थकों का मानना है कि जर्मनी इस चुनौती का सामना कर पाएगा और शऱणार्थियों के आने से उसका फायदा होगा.

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