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केंद्र और ममता के झगड़े में पशु तस्करों की मौज

प्रभाकर मणि तिवारी
८ जून २०१७

केंद्र सरकार ने पशु व्यापार के नए नियम बनाये है लेकिन पश्चिम बंगाल सरकार ने इनका पालन करने से इनकार कर दिया है जिससे सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के लिए असमंजस की स्थिति पैदा हो गयी है.

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Indien Kühe
तस्वीर: AP

केंद्र के नए नियमों में हत्या के लिए पशुओं की बिक्री पर पाबंदी लगा दी गयी है. इसका मकसद पशुओं की अवैध खरीद-फरोख्त और तस्करी पर अंकुश लगाना है. मोटे अनुमान के मुताबिक पश्चिम बंगाल में भारत और बांग्लादेश सीमा से पशुओं की तस्करी का सालाना कारोबार पांच से दस हजार करोड़ रुपये तक का है.

राज्य में भारत-बांग्लादेश सीमा पर पांच पशु हाट यानी बाजार हैं जहां पशुओं की खरीद-फरोख्त होती है. सीमा पर पशुओं की तस्करी रोकने का जिम्मा बीएसएफ पर है और सीमा पर स्थित हाट भी उसके अधिकार क्षेत्र में हैं. लेकिन उनका संचालन राज्य सरकार करती है. यह तमाम हाट अंतरराष्ट्रीय सीमा के आठ किलोमीटर के दायरे में स्थित हैं. अब ईद के मौके पर बांग्लादेश में भारी मांग होने की वजह से तस्करी में तेजी का अंदेशा है.

तस्करी

बांग्लादेश की दो हजार किलोमीटर से ज्यादा लंबी सीमा बंगाल से लगी है. इसमें से भी लगभग पांच सौ किलोमीटर सीमा नदियों से घिरी है. इससे तस्करों को पशुओं के साथ सीमा पार करने में आसानी होती है. सीमा पर अब तक कई जगह कंटीले तारों की बाड़ नहीं लग सकी है. बीएसएफ के कमांडेंट मनोज कुमार कहते हैं, "भारत में पशुओं का निर्यात अवैध है लेकिन बांग्लादेश में यह वैध है. उनका कहना है कि भारत के मुकाबले बांग्लादेश में पशुओं की कीमत पांच से 10 गुनी ज्यादा है. भारी मुनाफे के लालच में तस्कर पशुओं को सीमा पार ले जाने के नए-नए तरीके तलाशते रहते हैं."

एक अनुमान के मुताबिक, विभिन्न सीमावर्ती इलाकों से रोजाना 40 हजार पशुओं को तस्करी के जरिए बांग्लादेश भेजा जाता है. तस्करों ने कई जगह तो कंटीले तारों की बाड़ भी काट दी है. इनके कामकाज का तरीका काफी दिलचस्प है. इस गिरोह में कुछ लोग लाइनमैन के तौर पर काम करते हैं जिनका काम बीएसएफ के गश्ती दल की गतिविधियों पर निगरानी रखना है. पशुओं के साथ सीमा पार करने वालों को ट्रांसपोर्टर कहा जाता है. इसके अलावा एक तीसरा गुट है स्टोनर्स का, जो पशुओं को सीमा पार कराते समय बीएसएफ के गश्ती दल के पहुंचने पर उन पर पथराव करते हैं.

सीमा पर अक्सर पशुओं के साथ तस्करों की गिरफ्तारी होती रहती है. लेकिन स्थानीय प्रशासन और पुलिस के कथित मिलीभगत से अमूमन ऐसे लोग कुछ दिन में छूट जाते हैं. माना जाता है कि ऐसे गिरोहों को राजनीतिक दलों का संरक्षण भी मिला रहता है. बीएसएफ के जवान हर साल पांच से 10 करोड़ तक के पशुओं को जब्त करते हैं. लेकिन कस्टम्स विभाग की ओर से होने वाली नीलामी में तस्कर गिरोह के सदस्य ही दोबारा उन पशुओं को खरीद लेते हैं. सीमा पार से मिलने वाली मोटी कीमत की वजह से उनको इस धंधे में कोई नुकसान नहीं होता.

वर्ष 2011 में बांग्लादेश के साथ विवाद के बाद भारत सरकार ने बीएसएफ को पशु तस्करों पर फायरिंग नहीं करने का निर्देश दिया था ताकि बेकसूर बांग्लादेशी नागरिकों की मौत नहीं हो. केंद्र का यह फैसला तस्करों के लिए वरदान साबित हो रहा है. वह जानते हैं कि सुरक्षा बल के जवान फायरिंग नहीं करेंगे. इससे तस्करी और सीमा पर लगे कंटीले तारों की बाड़ काटने की घटनाएं तेज हुई हैं.

 सिरदर्द बनते हाट

सीमा पर बने पशु हाट फिलहाल बीएसएफ के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बन गये हैं. बीएसएफ सूत्रों का कहना है कि सीमा चौकियों के पास स्थित पशु हाट से तस्करी की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र के नये नियमों को राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण करार देते हुए उनका पालन करने से इंकार कर दिया है.

बीएसएफ के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं, "हम समझ नहीं पा रहे हैं कि मौजूदा परिस्थिति में क्या करना चाहिए? पशुओं की तस्करी रोकने का जिम्मा हमारे कंधों पर है. लेकिन अगर केंद्रीय नियमों की अनदेखी कर हमारे अधिकार क्षेत्र में पशुओं की बिक्री जारी रहती है तो इसका दोष हमारे सिर पर मढ़ा जायेगा." उनका कहना था कि फिलहाल बीएसएफ के लिए बेहद असमंजस की स्थिति पैदा हो गयी है.

केंद्र की ओर से इस मामले में बीएसएफ को अब तक कोई दिशानिर्देश नहीं मिला है. बीएसएफ अधिकारी ने बताया कि कोई साफ आदेश नहीं मिलने की वजह से इस मुद्दे को स्थानीय प्रशासन की निगाह में लाने के अलावा वे कुछ नहीं कर सकते.

राज्य की पूर्व वाममोर्चा सरकार ने भारत-बांग्लादेश सीमा के आठ किमी दायरे में पशु बाजार बंद करने का फैसला किया था. पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने सितंबर, 2003 में सीमावर्ती इलाकों में कानून और व्यवस्था की बढ़ती समस्या को ध्यान में रखते हुए सीमा के पास चलने वाले पशु बाजार को हटाने का आदेश दिया था.

बीएसएफ की ओर से इस मुद्दे पर कई बार ममता बनर्जी सरकार को पत्र लिखा जा चुका है. लेकिन सरकार इस मसले पर उदासीन है. बीएसएफ के साउथ बंगाल फ्रटियर के आईजी संदीप सालुंके कहते हैं, "रमजान का महीना खत्म होने के बाद ईद आने वाली है. इस मौके पर बांग्लादेश में पशुओं की मांग में भारी तेजी आने की वजह से तस्करी तेज हो जाती है."

वह बताते हैं कि सीमा के पास बने हाटों में बिकने वाले तमाम पशुओं को देर-सबेर सीमा पार भेज दिया जाता है. उनको उम्मीद है कि राज्य सरकार 14 साल पहले लिए गये फैसले को लागू करते हुए आठ किमी के दायरे में बने हाटों को हटायेगी. बीएसएफ ने राज्य सरकार से पशुओं से लदे ट्रकों की आवाजाही पर निगाह रखने का भी अनुरोध किया है ताकि उनको सीमा तक पहुंचने से पहले रोका जा सके. सालुंके कहते हैं, "सीमा तक पहुंचने के बाद ऐसे पशुओं की तस्करी रोकना बेहद मुश्किल है. तस्कर ज्यादातर नदी मार्ग का इस्तेमाल करते हैं."