कैसे काम करता है हत्यारों का दिमाग!
२६ जुलाई २०१६यूरोप और अमेरिका के विभिन्न शहरों में हाल ही में हुए कई हमलों में हमलावरों में एक बात साझी थी. वे सब के सब डिप्रेशन यानी अवसाद के शिकार थे. आत्महत्याओं पर रिसर्च करने वाले गेऑर्ग फीडलर से हमने पूछा कि ऐसे हत्यारों का दिमाग कैसे काम करता है.
अगर डिप्रेशन हो जाए तो कोई व्यक्ति दूसरों के खिलाफ हथियार उठा सकता है?
पहले तो मैं यह बात साफ कर दूं कि लोग कहते हैं, फलां आदमी में डिप्रेशनन के संकेत थे. इसका मतलब है कि आपको लगता है फलां आदमी डिप्रेशन का शिकार था. अगर किसी में डिप्रेशन के संकेत दिखें तो जरूरी नहीं कि वह बीमार ही हो. और अगर ऐसा हो भी तो आमतौर पर ऐसे लोग बंदूक उठाकर दूसरों को मारने नहीं निकल पड़ते. जो लोग अवसाद में होते हैं वे दरअसल खुद पर ही गुस्सा निकालते हैं. इसलिए आप यह नहीं कह सकते कि डिप्रेशन इस तरह के हमलों की वजह है.
जर्मनी में डिप्रेशन की क्या स्थिति है?
अगर सिर्फ संकेतों की बात करेंगे तो एक तिहाई लोगों में ऐसे संकेत दिख जाएंगे. लेकिन डिप्रेशन बहुत विस्तृत है. परेशान रहने वाले, दुखी रहने वाले, खुद को हर बात के लिए दोषी समझने वाले लोग बहुत हैं लेकिन जरूरी नहीं कि वे बीमार ही हों. असल में डिप्रेशन बहुत गंभीर बीमारी है. इसके शिकार लोग तो हफ्तों तक सो नहीं पाते हैं.
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ऐसे मामलों में किसी भी तरह की धारणा बनाने से बचना चाहिए. उस अपराध के पीछे कई कारण थे. बताया जाता है कि उसका मानसिक रोग के लिए इलाज चल रहा था. यानी हो सकता है मानसिक रोग भी अपराध के पीछे एक वजह रही हो. लेकिन सिर्फ एक वजह हुई. कंप्यूटर गेम्स आज के युवाओं में कितनी लोकप्रिय हैं. वे तो हिंसा को बढ़ावा देती हैं. लेकिन सिर्फ एक कंप्यूटर गेम किसी को हत्यारा बनाने का काम नहीं कर सकती. हम लोग आसान वजह खोज रहे हैं. इस तरह की घटनाओं की वजह बहुत जटिल होती हैं.
तस्वीरों में: डिप्रेशन के 10 लक्षण
इस तरह की घटनाओं के लिए एक्सटेंडेड सूईसाइड यानी विस्तृत आत्महत्या जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जा रहा है. यह होता क्या है?
जब लोग आत्महत्या करने से पहले अपने करीबी लोगों की जान ले लेते हैं तब इन शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है. जैसे कोई मां मरने से पहले अपने बच्चों को मार डाले. लेकिन इसके पीछे भावना यह होती है कि मेरे बाद इनका क्या होगा. लेकिन म्यूनिख जैसे हमलों में यह भावना नहीं थी.