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ऊर्जा संकट में जर्मनी हलकान लेकिन इटली को दिक्कत नहीं

३० सितम्बर २०२२

ऊर्जा संकट का असर जर्मनी को कई तरफ से परेशान कर रहा है लेकिन इटली को कोई खास परेशानी नहीं है. आखिर इटली ने इस मुश्किल घड़ी में फंसने से खुद को कैसे बचा लिया.

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ऊर्जा संकट के दौर में जर्मनी से बेहतर स्थिति में है इटली
इटली के पास तीन एलएनजी टर्मिनल पहले से हैं और उसने दो और खरीदे हैंतस्वीर: Antonio Sempere/Europa Press/abaca/picture alliance

यूक्रेन पर रूसी हमले के तुरंत बाद के हफ्तों में इटली की ऊर्जा कंपनी ईएनआई के सीईओ क्लाउडियो डिस्कालजी ने अफ्रीका में गैस सप्लायरों के यहां तूफानी दौरा किया. अल्जीरिया में फरवरी में हुई बैठकों के बाद मार्च में अंगोला, मिस्र और कांगो में बैठकें हुईं. इस दौरान डिस्कालजी के साथ इटली की सरकार के वरिष्ठ अधिकारी भी थे. सरकारी नियंत्रण वाली ईएनआई और इटली उन देशों के साथ पहले से मौजूद रिश्तों को आगे बढ़ाने में सफल हुए ताकि गैस की ज्यादा सप्लाई हासिल कर रूस से मिलने वाली गैस का विकल्प तैयार किया जा सके. 

बहुत से यूरोपीय देश यह काम इतनी जल्दी नहीं कर सके और आज पुतिन की जंग ने उन्हें मुश्किल में डाल दिया है. जर्मनी को ही देखिये आर्थिक रूप से मजबूत और बहुत पहले से योजना बनाने की आदत होने के बावजूद इस संकट के लिये तैयारी नहीं थी.

हालत यह है कि जर्मनी मंदी की कगार पर है, देश का उद्योग जगत ऊर्जा सप्लाई के कोटे वाली स्थिति के लिये खुद को तैयार कर रहा है और प्रमुख ऊर्जा कंपनी का राष्ट्रीयकरण करना पड़ा है.

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बेहतर स्थिति में है इटली

आर्थिक संकटों का सामना करने का आदी इटली इस मामले में तुलनात्मक रूप से थोड़ा बेहतर नजर आ रहा है. उसने ऊर्जा की अतिरिक्त सप्लाई सुनिश्चित कर ली है और उसे भरोसा है कि गैस का कोटा तय करने की जरूरत नहीं पड़ेगी. इटली की सरकार दावा कर रही है कि ऊर्जा सुरक्षा के मामले में फिलहाल देश "यूरोप में सबसे बेहतर है."

इटली ने अफ्रीकी देशों से गैस के लिये समय रहते करार कर लिया
अल्जीरिया से इटली तक गैस लाने वाली पाइपलाइन ट्यूनीशिया से गुजरती हैतस्वीर: Fethi Belaid/AFP/Getty Images

यूरोप में ऊर्जा की कमी सबके लिये एक जैसी नहीं है और रूसी गैस पर निर्भरता भी. ज्यादातर देशों के सामने सर्दियों में ऊर्जा का संकट है इनमें जर्मनी, हंगरी और ऑस्ट्रिया के लिये स्थिति सबसे ज्यादा खराब है. कम प्रभावित देशों में फ्रांस, स्वीडन और ब्रिटेन है जो पारंपरिक रूप से रूसी गैस पर ज्यादा निर्भर नहीं रहे हैं साथ ही इटली भी.

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रिसर्च फर्म वुड मैकिंजी में गैस और तेल के विशेषज्ञ मार्टिन मर्फी का कहना है कि अफ्रीका से लंबे समय से चले आ रहे इटली के रिश्तों का मतलब है कि वह रूसी सप्लाई बंद होने पर भी कई देशों की तुलना में अच्छी स्थिति में है. मर्फी ने बताया, "ईएनआई उत्तर अफ्रीका के जिन देशों में काम करता है उनसे उसके अच्छे संबंध हैं और वह अल्जीरिया, ट्यूनीशिया, लीबिया, मिस्र समेत बाकी देशों में भी एक बड़े निवेशक और अंतरराष्ट्रीय तेल कंपनी प्रोड्यूसर के रूप में मौजूद है."

ऊर्जा सप्लाई के विकल्पों की जरूरत

1970 के दशक में इसी तरह की स्थिति थी जब पश्चिमी देशों ने मध्यपूर्व के तेल पर निर्भरता के बारे में दोबारा सोचना शुरू किया था. इसके बाद ही वेनेजुएला और मेक्सिको जैसे वैकल्पिक सप्लायरों की खोज शुरू हुई.

इटली की सरकार ने इस पर प्रतिक्रिया देने से मना किया. जर्मनी के आर्थिक मंत्रालय का कहना है कि वह रूसी गैस के आयात से जितनी जल्दी हो सके मुक्त होना चाहता है. सरकार ने एलएनजी के आयात के लिये पांच फ्लोटिंग टर्मिनल लीज पर लेने के लिये कदम बढ़ाये हैं क्योंकि जर्मनी के पास फिलहाल कोई एलएनजी टर्मिनल नहीं. उधर इटली के पास तीन एलएनजी टर्मिनल पहले से ही हैं और उसने हाल ही में दो और खरीदे हैं.

ऊर्जा संकट के दौर में जर्मनी से बेहतर हाल में है इटली
नॉर्ड स्ट्रीम 1 गैस पाइपलाइन से गैस की सप्लाई अगस्त से ही बंद हैतस्वीर: Sean Gallup/Getty Images

गैस के दो खरीदार

पिछले साल इटली ने 29 अरब क्यूबिक मीटर रूसी गैस का इस्तेमाल किया. यह उसके कुल गैस आयात का करीब 40 फीसदी है. ईएनआई के मुताबिक धीरे धीरे उसने करीब 10.5 अरब क्यूबिक मीटर गैस दूसरे देशों से लेने की तैयारी कर ली है जो इस साल की सर्दियों में पहुंचने लगेगी. अतिरिक्त गैस का ज्यादातर हिस्सा अल्जीरिया से आ रहा है. अल्जीरिया ने कुछ दिन पहले बताया कि वह इटली को गैस की सप्लाई 20 फीसदी बढ़ा कर इस साल करीब 25.2 अरब क्यूबिक मीटर तक पहुंचा देगा. इसका मतलब है कि वह 35 फीसदी हिस्सेदारी के साथ इटली का सबसे बड़ा सप्लायर होगा. दूसरी तरफ रूस की हिस्सेदारी इस बीच काफी ज्यादा घट गई है. 2023 के वसंत के मौसम में इटली को मिस्र, कतर, कांगो, नाईजीरिया और अंगोला से एलएनजी की सप्लाई शुरू हो जायेगी.

जर्मनी ने पिछले साल 58 अरब क्यूबिक मीटर गैस का आयात किया जो उसके कुल गैस इस्तेमाल का करीब 58 फीसदी है. नॉर्ड स्ट्रीम 1 के जरिये आने वाली गैस की रफ्तार जून में धीमी पड़ी और अगस्त में बंद हो गई.

ऊर्जा संकट के दौर में जर्मनी की हालत बिगड़ गई है
ब्रिटेन और नॉर्वे की तरह जर्मनी के पास अपना कोई तेल या गैस भंडार नहीं हैतस्वीर: Calado/Zoonar/picture alliance

दूसरे देशों से लंबे समय के लिये करार नहीं कर पाने और देश के बाहर उत्पादन वाली किसी राष्ट्रीय गैस कंपनी के नहीं होने की वजह से उसे दूसरे देशों और नगद बाजार का रुख करना पड़ा. इसके नतीजे में जर्मनी को एक साल पहले की तुलना में करीब 8 गुना ज्यादा कीमत देकर गैस खरीदना पड़ रहा है.

समय रहते नहीं संभला जर्मनी

जर्मनी के पास ना तो इटली की तरह उत्तरी अफ्रीकी देशों से निकटता है, ना ब्रिटेन और नॉर्वे की तरह उत्तरी सागर के भंडार. जर्मन अधिकारियों और कारोबारियों ने हाल के वर्षों में गलत आकलन किये.

2006 में इटली बहुत तेजी से रूसी गैस की तरफ जा रहा था. तब ईएनआई ने गाजप्रोम के साथ यूरोप का सबसे बड़ा करार किया था. हालांकि पिछले 8 सालों में दोनों देशों के हालत पलट गये. जर्मनी ने रूसी गैस का आयात दोगुना कर दिया और उस पर निर्भर होता चला गया जबकि इटली ने दूसरे देशों पर अपना दांव लगाया.

2014 में सिल्वियो बैर्लुस्कोनी की सत्ता से विदाई के बाद इटली ने रूसी गैस से दूर जाना शुरू कर दिया था इसका नतीजा आज दिख रहा है. एक बड़ी सफलता 2015 में ईएनआई को मिस्र में मिली जब उसने भूमध्यसागर के सबसे बड़े गैसफील्ड जोहर की खोज की. ढाई साल के भीतर ही कंपनी ने यहां से गैस का उत्पादन शुरू कर दिया. कंपनी 1981 से ही अल्जीरिया में है और 2019 में उसने अगले 8 सालों के लिये गैस के आयात का करार किया.

क्रीमिया के संकेत

2014 में क्रीमिया पर कब्जा और फिर पश्चिमी देशों के प्रतिबंध एक निर्णायक समय था. इटली ने गाजप्रोम के 40 अरब डॉलर के साउथ स्ट्रीम प्रोजेक्ट से हाथ खींच लिया. यह प्रोजेक्ट हंगरी, ऑस्ट्रिया और इटली को रूसी गैस की सप्लाई के लिये था. इसकी बजाय इटली ने अपनी नजर ग्रीस और अल्बानिया के रास्ते अजरबाइजान से पाइपलाइन बनाने पर टिका दी. जर्मनी ऐसा नहीं कर सका बल्कि 2015 में गाजप्रोम और जर्मनी की ईऑन और विंटरशाल के बीच नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन बनाने के लिये करार हुआ.

यूक्रेन पर हमले से एक दिन पहले जर्मन गैस आयात कंपनी यूनीपर के सीईओ क्लाउस डीटर माउबाख ने गाजप्रोम को एक भरोसेमंद सप्लायर कहा था. अब उनकी राय बदल गयी है. यूनीपर अब गाजप्रोम के खिलाफ मुकदमे की तैयारी कर रहा है और उसे बर्बाद होने से बचाने के लिये जर्मनी ने 29 अरब यूरो खर्च कर उसका राष्ट्रीयकरण कर दिया है.

जर्मनी 2024 के मध्य तक रूसी गैस से पूरी तरह छुटकारा पाने की कोशिश में है लेकिन बहुत खर्चीला होने के बावजूद इस प्रक्रिया में थोड़ा और वक्त लग सकता है.

एनआर/ओएसजे (रॉयटर्स)