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ट्रंप के फैसले की चौतरफा आलोचना

७ दिसम्बर २०१७

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने येरुशलम को इस्राएल की राजधानी के तौर पर मान्यता दे दी है. इससे मध्य पूर्व में नए सिरे से अशांति पैदा होने की आशंका है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने इस मुद्दे पर बैठक बुलायी है.

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USA Trump erkennt Jerusalem als Hauptstadt Israels an
तस्वीर: Reuters/K. Lamarque

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रही अपीलों को अनदेखा करते हुए राष्ट्रपति ट्रंप ने बुधवार को येरुशलम को इस्राएल की राजधानी के तौर पर मान्यता दे दी और इस्राएल में अपने दूतावास को तेल अवीव से येरुशलम ले जाने की भी घोषणा की. बहुत से लोग और खास कर फलस्तीनी ट्रंप के इस कदम को इस्राएल का पक्ष लेने के तौर पर देख रहे हैं.

येरुशलम के पूर्वी हिस्से पर 1967 के युद्ध में इस्राएल ने कब्जा कर लिया था जबकि फलस्तीनी लोग पूर्वी येरुशलम को अपने भावी देश की राजधानी बनाना चाहते हैं.

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इस्राएल को छोड़ कर किसी भी अन्य देश ने ट्रंप के ताजा कदम का समर्थन नहीं किया है. बहुत से देशों ने इसकी आलोचना करते हुए बयान जारी किये हैं. बोलिविया, ब्रिटेन, मिस्र, फ्रांस, इटली, सेनेगल, स्वीडन और उरुग्वे ने संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने इस बारे में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाने को कहा है और उनसे इस बैठक में बोलने को भी कहा है. यह बैठक शुक्रवार को होगी.

ट्रंप की घोषणा के बाद गुटेरेश ने कहा कि येरुशलम के अंतिम दर्जे का फैसला इस्राएल और फलस्तीनियों के बीच बातचीत के जरिए ही होना चाहिए. गुटेरेश ने कहा कि वह "हमेशा एकतरफा तौर पर उठाये जाने वाले कदमों के विरुद्ध बोलते रहे हैं."

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इस बीच, फलस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने कहा है कि मध्य पूर्व में शांति के लिए मध्यस्थ के तौर पर ट्रंप ने अपनी विश्वसनीयता खो दी है. ट्रंप के ताजा फैसले के कारण पहले से अस्थिर इस क्षेत्र में नये सिरे से अशांति पैदा हो सकती है. फलस्तीनी प्रधाधिकरण ने गुरुवार को वेस्ट बैंक में हड़ताल की घोषणा की है. वहीं चरमपंथी फलस्तीनी संगठन हमास ने शुक्रवार को "आक्रोश दिवस" मनाने का एलान किया है.

अब्बास ने कहा है कि फलस्तीनी नेतृत्व आने वाले दिनों में बैठक करेगा और अरब नेताओं के साथ सलाह मशविरा कर इस मुद्दे पर अपना रुख तय करेगा. तुर्की और ईरान ने ट्रंप के कदम की कड़ी आलोचना की है. तुर्की ने इसे "गैरजिम्मेदाराना और गैरकानूनी" फैसला बताया है जबकि ईरान ने कहा है कि इसके "मुसलमान भड़केंगे और नए इंतेफादा को चिंगारी मिलेगी". अमेरिका के सहयोगी सऊदी अरब ने भी इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा है कि यह फलस्तीनी लोगों के अधिकार के खिलाफ "पक्षपाती रवैया" को दर्शाता है.

जर्मनी ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि वह ट्रंप के इस फैसले का "समर्थन नहीं करता" है. जर्मन विदेश मंत्री ने कहा है कि इससे "आग में घी डालने" का काम होगा. ब्रिटेन समेत कई अन्य यूरोपीय देशों ने भी अमेरिकी राष्ट्रपति के फैसले की आलोचना की है.

एके/एनआर (एएफपी, डीपी, एपी)