केवल भारत में ही यह संभव है कि जिस फिल्म को मुंबई फिल्म महोत्सव में लिंग समानता के लिए 'ऑक्सफैम पुरस्कार' और टोक्यो अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में 'स्पिरिट ऑफ एशिया' पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका हो, उसे फिल्म सेंसर बोर्ड प्रदर्शन के लिए प्रमाणपत्र देने से ही इनकार कर दे, और कारण यह बताए कि फिल्म ‘महिला-केन्द्रित' है. हालांकि अब इस संबंध में अपील सुनने वाले ट्राईब्यूनल ने सेंसर बोर्ड को निर्देश दिया है कि वह फिल्म को ‘ए' यानी वयस्क फिल्म का प्रमाणपत्र दे और निर्देशक प्रकाश झा उसमें एकाध जगह पर हल्की-फुल्की काट-छांट करें.
लेकिन इससे सेंसर की समस्या का स्थायी हल नहीं निकलता. सेंसर बोर्ड यूं तो हमेशा ही विवादों के केंद्र में रहा है, लेकिन जब से पहलाज निहलाणी इसके अध्यक्ष बने हैं, तब से समस्या और अधिक गंभीर हो गई है क्योंकि उनका रवैया मनमानीभरा और तानाशाही है. इसका एक कारण यह भी है कि उनकी फिल्म जगत में एक निर्देशक के तौर पर वह हैसियत नहीं रही, जो सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष की होनी चाहिए ताकि उसके फैसलों को लोग गंभीरता से लें और सम्मान दें.
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जब सेंसर की कैंची पर पैदा हुये विवाद
लिपिस्टिक अंडर माय बुर्का
फिल्म निर्माता प्रकाश झा और सेंसर बोर्ड के बीच विवाद नया नहीं है. जय गंगाजल के बाद झा की फिल्म लिपिस्टक अंडर माय बुर्का को सेंसर बोर्ड ने प्रमाणित करने से मना कर दिया है. बोर्ड के मुताबिक यह एक महिला प्रधान फिल्म है जो असली जिदंगी के परे है. बोर्ड ने कहा कि इसमें विवादास्पद यौन दृश्य, अपमानजनक शब्द और ऑडियो पोर्नोग्राफी शामिल है जो समाज के एक खास तबके के प्रति अधिक संवेदनशील है.
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जब सेंसर की कैंची पर पैदा हुये विवाद
फोर्स 2
जॉन अब्राहम अभिनीत फिल्म फोर्स-2 को बोर्ड ने यू/ए सर्टिफिकेट दिया था. बोर्ड ने निर्देशक अभिनव देव को तीन कट लगाने को भी कहा था क्योंकि ये दृश्य सीमा पार आतंकवाद और भारत-पाक के संबंधों पर आधारित थे. इस पर अभिनेता जॉन अब्राहम ने कहा था कि फोर्स -2, पिछली फिल्म फोर्स का सीक्वेल है और यह सीमा-पार संबंधों पर एक राजनीतिक संदेश देती है. उन्होंने कहा था कि फिल्म को उरी हमलों को पहले फिल्माया गया था.
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जब सेंसर की कैंची पर पैदा हुये विवाद
उड़ता पंजाब
शाहिद कपूर अभिनीत फिल्म उड़ता पंजाब को लेकर बोर्ड और फिल्म निर्माताओं के बीच बड़ा विवाद हुआ. पंजाब में नशे की समस्या पर बनी इस फिल्म में बोर्ड ने 89 कट सुझाये थे. मामला हाई कोर्ट पहुंचा और अदालत ने एक कट के साथ इसे रिलीज करने की अनुमति दी. इस मसले पर फिल्म निर्माता अनुराग कश्यप ने सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ से भी संपर्क किया था.
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जब सेंसर की कैंची पर पैदा हुये विवाद
मैंसेजर ऑफ गॉड
इस फिल्म को सेंसर बोर्ड ने रिलीज सर्टिफिकेट देने से इनकार कर दिया था और मामले को समीक्षा समिति के पास भेजा था. बोर्ड ने फिल्म निर्माता-निर्देशक, लेखक अभिनेता गुरमीत राम रहीम सिंह के स्वयं को देवता के रूप में पेश किये जाने पर विरोध जताया था. लेकिन फिल्म को प्रमाणन अपीलीय ट्रिब्यूनल से स्क्रीनिंग की मंजूरी दी. इसके बाद तत्कालीन बोर्ड अध्यक्ष लीला सैमसन ने इस्तीफा दे दिया.
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जब सेंसर की कैंची पर पैदा हुये विवाद
जॉली एलएलबी 2
भारतीय न्यायिक व्यवस्था पर व्यंग्य करती अभिनेता अक्षय कुमार की फिल्म जॉली एलएलबी-2 पर सेंसर बोर्ड ने नहीं, बल्कि बंबई हाई कोर्ट ने कट लगाने का आदेश दिया था. कोर्ट ने कहा था कि फिल्म से उन दृश्यों को हटाया जाए जो वकीलों की गलत छवि पेश करते हैं. वकील अजय कुमार वाघमारे ने अपनी याचिका में कहा था कि फिल्म के कुछ दृश्यों में वकीलों का मजाक बनाया गया है और देश की न्याय व्यवस्था का अपमान भी किया गया है.
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जब सेंसर की कैंची पर पैदा हुये विवाद
हॉलीवुड भी नहीं बचा
हॉलीवुड भी सेंसर बोर्ड के कट से अछूता नहीं रहा. जेम्स बॉन्ड सीरीज की 24वीं फिल्म स्पेक्टर को भारत में रिलीज किये जाने को लेकर खबरें आई कि तभी सेंसर बोर्ड ने फिल्म अभिनेता डैनियल क्रेग और अभिनेत्री मोनिका बेलुची के बीच लंबे चुंबन को भारतीय दर्शकों के लिये छोटे करने के आदेश दिये. हालांकि इम्तियाज अली की फिल्म तमाशा में भी सेंसर बोर्ड ने चुंबन दृश्यों पर सवाल उठाये थे.
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जब सेंसर की कैंची पर पैदा हुये विवाद
अलीगढ़
मनोज वाजपेयी और राज कुमार राव अभिनीत फिल्म अलीगढ़ को बोर्ड ने "ए" सर्टिफिकेट दिया था जिस पर फिल्म निर्देशक हंसल मेहता ने विरोध जताया था. फिल्म के ट्रेलर में समलैंगिकता जैसे शब्दों को देखते हुये यह फैसला लिया गया. बोर्ड प्रमुख पहलाज निहलानी ने अलीगढ़ पर मेहता के विरोध के जवाब में कहा था कि समलैंगिकता जैसा विषय बच्चों और किशोरों के देखने के लिये नहीं है.
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जब सेंसर की कैंची पर पैदा हुये विवाद
पहलाज निहलानी
सेंसर बोर्ड के प्रमुख पहलाज निहलानी पद संभालने के बाद से ही फिल्म निर्माताओं की आलोचना का शिकार होते रहे हैं. निहलानी पहले ही स्वयं को सत्ताधारी भाजपा से जुड़ा हुआ बता चुके हैं. टि्वटर पर इन्हें संस्कारी कहकर भी खूब खिंचाई की गई. फिल्म क्या कूल है हम और मस्तीजादे के ट्रेलरों को पास करने को लेकर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने निहलानी से स्पष्टीकरण भी मांगा था.
रिपोर्ट: अपूर्वा अग्रवाल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार के प्रति अतिशय भक्ति दिखाने के उनके उत्साह ने भी उनके सम्मान में कमी की है. भला ऐसे सेंसर बोर्ड अध्यक्ष को कोई क्या सम्मान करेगा जो किसी फिल्म के संवाद से ‘मन की बात' इसलिए निकालने को कहे क्योंकि यह मोदी के रेडियो पर दिये जाने वाले नियमित भाषण के कार्यक्रम का शीर्षक है? इसी तरह उन्होंने यह बयान देकर सनसनी मचा दी थी कि भारत सरकार को पाकिस्तानी कलाकारों को यहां आने की अनुमति नहीं देनी चाहिए.
आज के समय में जब इंटरनेट के कारण देशों की सीमाओं के बीच सूचनाओं, विचारों और हर प्रकार की कला का निर्बाध संचार हो रहा है, यूं भी सेंसर बोर्ड का होना ही आश्चर्यजनक लगता है. किसी भी निर्देशक से दृश्यों, संवादों और गीतों की पंक्तियों में कतर-ब्योंत करने के लिए कहना न सिर्फ उसकी कलात्मक अभिव्यक्ति पर अंकुश लगाना है, बल्कि अपमानजनक भी है. सेंसर बोर्ड का काम केवल फिल्म के दर्शक वर्ग के आयु-समूह को निर्धारित करना है यानी यह तय करना कि फलां फिल्म कितने वर्ष से कितने वर्ष की आयु के बीच के दर्शकों को दिखायी जा सकती है. अधिकांश देशों में अब यही प्रणाली लागू है और किसी फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की कल्पना भी नहीं की जाती क्योंकि फिल्म बनाना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है.
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भारत की सबसे महंगी फिल्में
महाभारता
बजट: 1,000 करोड़ रुपये. मोहन लाल ने इसका एलान किया है. फिल्म में वह भीम का किरदार निभाएंगे. (तस्वीर: प्रतीकात्मक)
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भारत की सबसे महंगी फिल्में
2.0
बजट: 400 करोड़ रुपये.
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भारत की सबसे महंगी फिल्में
बाहुबली 1&2
बजट: 400 करोड़.
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भारत की सबसे महंगी फिल्में
रा.वन
बजट: 150 करोड़.
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भारत की सबसे महंगी फिल्में
एंथिरन
बजट: 132 करोड़ रुपये.
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भारत की सबसे महंगी फिल्में
धूम 3
बजट: 175 से 125 करोड़.
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भारत की सबसे महंगी फिल्में
कोचड़ियान
बजट: 125 करोड़.
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भारत की सबसे महंगी फिल्में
कृष 3
बजट: 115 करोड़.
भारत में सेंसर बोर्ड पर बहुत समय से भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं और समय-समय पर इस सिलसिले में गिरफ्तारियां भी हुई हैं. जहां भी कोई प्रणाली पारदर्शी नहीं होती, वहां भ्रष्टाचार पनपने की पूरी संभावना होती है. यदि पिछले पांच-छह दशकों के इतिहास पर नजर डालें तो पाएंगे कि अनेक ऐसी फिल्में जिनमें द्वियार्थक संवाद और गाने थे, अश्लील और भोंडे दृश्य एवं नृत्य थे, उन्हें सेंसर बोर्ड की ओर से कोई परेशानी नहीं हुई और आराम से ‘यू' प्रमाणपत्र मिल गया जिसका अर्थ होता है कि उसे बूढ़ा हो या बच्चा, किसी भी आयु का व्यक्ति देख सकता है. इसके विपरीत अनेक ऐसी फिल्मों को घोर कठिनाई का सामना करना पड़ा जिनमें किसी प्रकार का राजनीतिक संदेश था या धार्मिक और सामाजिक कुरीतियों की आलोचना थी.
सेंसर बोर्ड के सदस्य ही नहीं, उसके अध्यक्ष भी मनमाने ढंग से चुने जाते रहे हैं. इसलिए समय-समय पर बोर्ड के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान लगते रहे हैं और पूछा जाता रहा है कि क्या उसके होने का कोई वास्तविक औचित्य भी है? जिस तरह से प्रकाश झा की फिल्म को मनमाने ढंग से प्रमाणपत्र देने से माना किया गया, यानी एक तरह से उस पर अनौपचारिक प्रतिबंध ही लगा दिया गया, वह अपने आप में सेंसर बोर्ड की स्थिति को हास्यास्पद और संदिग्ध बनाने के लिए काफी है.