मस्जिद में महिलाएं कराएगी सबको इबादत
१९ अप्रैल २०१७दो साल पहले जब लॉस एंजेलिस की एक मस्जिद में देश की पहली महिला इमाम आयी थीं, तो उन्हें केवल महिलाओं को ही इबादत करवाने का काम मिला था. अब कैलिफोर्निया के बर्कले की मस्जिद में एक महिला के नेतृत्व में आदमी-औरत सब प्रार्थना करेंगे. बर्कले की मस्जिद की संस्थापक रबिया कीबल कहती हैं, यह "औरतों के इबादत करने की जगह है, इसे अंधेरे कमरों में छुपा कर रखने की कोई जरूरत नहीं.”
दुनिया भर की कई मस्जिदों में आज पुरुषों के साथ साथ महिलाओं को भी प्रवेश की अनुमति है. लेकिन ज्यादातर जगहों पर अलग अलग व्यवस्था ही होती है. लॉस एंजेलिस की महिलाओं की मस्जिद में 12 साल की उम्र तक लड़के भी जा सकते हैं. यह भी अपने आप में एक नयी बात है. कीबल कहती हैं, "हम महिलाओं को ऊपर उठा रहे हैं, जैसे पैगंबर महिलाओं को प्यार करते थे, हमें भी उनके नक्शेकदम पर चलना चाहिए, खुद को और एक दूसरे को प्यार करना चाहिए."
कीबल पहले ईसाई थीं, बाद में उन्होंने इस्लाम स्वीकार किया. उन्होंने धार्मिक नेतृत्व के विषय में मास्टर्स डिग्री ली है. कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से जुड़ी जिस स्टार किंग स्कूल ऑफ मिनिस्ट्री से उन्होंने पढ़ाई की, उसी ने मस्जिद बनाने के लिए उन्हें जमीन भी दी.
असल में इस मस्जिद में कोई इमाम नहीं है. यहां सभी महिलाएं बारी बारी से प्रार्थना और वार्ता का संचालन करती हैं. ऐसे करीब 50 महिलाओं और पुरुषों ने जुम्मे की नमाज में हिस्सा लिया. इनमें मुसलमानों के अलावा, ईसाई और यहूदी भी शामिल हुए.
कई इस्लामिक स्कॉलर बताते हैं कि कुरान में कहीं नहीं लिखा है कि महिलाएं ऐसी सामूहिक प्रार्थना सभा का नेतृत्व नहीं कर सकतीं. वहीं कुछ इस बात पर बहस करते हैं कि पैगंबर मोहम्मद ने महिलाओं को ऐसा करने की आज्ञा दी थी. फिर भी कई पुरातनपंथी लोग मानते हैं कि आदमियों को नमाज में औरतों की आवाज नहीं सुनायी देनी चाहिए.
कीबल कहती हैं, "पुरुषों को यह बताया गया है कि महिलाओं की आवाज लुभाने वाली होती है, इसलिए उनकी आवाज सुनते ही वे व्यभिचार के दायरे में प्रवेश कर जाएंगे." वे कहती हैं, "पुरुषों को अपने बारे में थोड़ी बेहतर सोच रखनी चाहिए, वे कोई जानवर नहीं हैं.”
कैलिफोर्निया के ही सैंटा क्लारा में मुस्लिम समुदाय संगठन के अध्यक्ष मोहम्मद सरोदी साफ कहते हैं कि वे कभी महिलाओं की अगुवायी वाली प्रार्थना सभा में नहीं जाएंगे. 70 साल के सरोदी ने कहा, "अगर महिलाएं अपनी सभा का नेतृत्व कर रही हैं, तो कई बात नहीं. लेकिन अगर वे पुरुषों की सभा में होंगी, तो ये ऐसा कुछ है जिसके साथ मैं बड़ा नहीं हुआ हूं."
पुरुषों को ही नेतृत्व की भूमिका देने वाला इस्लाम कोई अकेला धर्म नहीं है. कई धर्मों में महिला धर्मप्रमुखों की या तो कोई जगह नहीं या फिर उनके प्रति पूर्वाग्रह हैं. कीबल कहती हैं, "अब तो वक्त आ ही गया है, कि बदलाव आए." वे चाहती हैं कि और महिलाएं धार्मिक क्षेत्र में दखल रखें और लोगों की राय बदलें. उन्हें लगता है कि इससे इस्लाम को महिला विरोधी समझने वालों की राय भी बदलेगी.
आरपी/ओएसजे (रॉयटर्स)