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भारत पर बरसे ट्रंप, अब क्या करेगी मोदी सरकार?

मारिया जॉन सांचेज
२ जून २०१७

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने पेरिस जलवायु समझौते से हटते हुए भारत को भी आड़े हाथ लिया और उस पर अरबों खरबों डॉलर मांगने का आरोप लगाया. कुलदीप कुमार का कहना है कि अमेरिका का यह रुख मोदी सरकार की नाकामी को जाहिर करता है.

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Bild-Kombi Modi Trump

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार का आधे से अधिक कार्यकाल पूरा हो चुका है और अब उसके पास योजनाओं को पूरा करने के लिए केवल दो साल बचे हैं. विदेश नीति को विदेश मंत्री और उनके मंत्रालय के हाथ से लेकर स्वयं प्रधानमंत्री और उनके कार्यालय द्वारा चलाये जाने के नतीजे सुखद और सकारात्मक नहीं रहे हैं. अभी तक शायद किसी भी प्रधानमंत्री ने इतने विदेश दौरे नहीं किए, जितने मोदी कर चुके हैं लेकिन केवल वहां रहने वाले भारतीयों या भारतीय मूल के लोगों को प्रभावित करने के अलावा इन दौरों की अन्य कोई विशेष उपलब्धि सामने नहीं आ पायी है.

अब विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक और सामरिक शक्ति अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ताजातरीन बयान ने भारतीय विदेश नीति की विफलता को सरेआम उजागर कर दिया है. ट्रंप ने आरोप लगाया है कि पर्यावरण की रक्षा और कार्बन डाइऑक्साइड गैस के उत्सर्जन को कम करने के नाम पर भारत अरबों-खरबों डॉलर की मांग करता है और पेरिस समझौता भारत और चीन के पक्ष में झुका हुआ है. इसलिए अमेरिका इस समझौते से बाहर हो जाएगा.

भारत के लिए यह एक बहुत बड़ा झटका है. हालांकि अब चीन ने कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन के मामले में अमेरिका को पीछे छोड़ दिया है, लेकिन अब भी वह 28 यूरोपीय देशों द्वारा कुल मिलाकर किए जाने वाले उत्सर्जन से अधिक गैस छोड़ रहा है. भारत का उत्सर्जन अमेरिका के उत्सर्जन के आधे से भी अधिक कम है जबकि उसकी जनसंख्या अमेरिका के मुकाबले चार गुना अधिक है. लेकिन ट्रंप और उनके सलाहकारों का मानना है कि कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का स्तर कम करने से अमेरिका के औद्योगिक विकास पर असर पड़ेगा और उसके यहां रोजगार में कमी आएगी.

ट्रंप का जनाधार अल्प-शिक्षित और कोयले की खान में काम करने वाले मजदूर जैसे तबकों में अधिक मजबूत है. इन लोगों की रोजगार संबंधी आशंकाओं को भड़का कर और उनका चुनावी फायदा उठाकर ही ट्रंप सत्ता में आए हैं. अब उन्हें नजरअंदाज करना उनके लिए संभव नहीं. मोदी इसके उलट अपने सभी चुनावी वादे लगभग भूल चुके हैं. लेकिन भारत और अमेरिका के लोकतंत्र और उसकी कार्यप्रणाली में यही अंतर है. अमेरिका में लोग इतनी आसानी से चुनावी वादे भूलने नहीं देते.

इससे हिंदुत्ववादियों की अदूरदर्शिता और अंध मुस्लिम-विरोध भी खुल कर सामने आ गया है क्योंकि चुनाव प्रचार के दौरान ट्रंप के मुस्लिम आतंकवादियों के खिलाफ दिये गए बयानों से उत्साहित होकर अमेरिका और भारत में वे ट्रंप की जीत की कामना करते हुए यज्ञ, हवन और आरती कर रहे थे. दरअसल ट्रंप भी अनेक बातों में मोदी से मिलते-जुलते हैं. बोलते समय वे भी तथ्यों का कोई खास ख्याल नहीं रखते. मसलन भारत पर अरबों-खरबों डॉलर की मांग करने का आरोप बिलकुल निराधार है लेकिन ट्रंप को इसकी उसी तरह कोई चिंता नहीं है जिस तरह मोदी को इसी तरह के बयान देते हुए नहीं होती. दोनों ही आक्रामक किस्म के नेता हैं और अचानक लोकप्रियता प्राप्त कर बैठे हैं. लेकिन पर्यावरण के मुद्दे पर ट्रंप की बातें कितनी भी आघात पहुंचाने वाली क्यों न हों, यह बात ध्यान में रखनी होगी कि उन्होंने अपने चुनाव प्रचार के दौरान भी यही कहा था और वैश्विक तापमान बढ़ने के विचार से असहमति जताई थी. ट्रंप कह सकते हैं कि वे अपने चुनावी वादे पूरे कर रहे हैं क्योंकि पर्यावरण संबंधी समझौतों को नकारने का वादा उनके चुनाव प्रचार का हिस्सा था.

भारतीय विदेश सचिव एस. जयशंकर चार बार अमेरिका की यात्रा कर चुके हैं. लेकिन नतीजा ट्रंप की इस नई आक्रामकता के रूप में सामने आया है. ट्रंप का यह भी कहना है कि विदेशों से लोग आकर अमेरिकियों के रोजगार छीन रहे हैं और वह इस प्रक्रिया पर विराम लगाना चाहते हैं. आउटसोर्सिंग से भारतीय अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ा लाभ हुआ है और अभी भी हो रहा है. सूचना तकनीकी के क्षेत्र में भी भारतीयों को बहुत बड़ी संख्या में रोजगार मिला है. ऐसे में ट्रंप का ताजा बयान आने वाले दिनों के बारे में अनेक किस्म की आशंकाएं पैदा करने वाला है.