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पाकिस्तान के हिंदू मंदिर कटास राज पहुंचे नवाज शरीफ

१२ जनवरी २०१७

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ऐसे कई कदम उठा रहे हैं जिन्हें उदारवादी खेमा पसंद करता है. ऐसे कदम कट्टरपंथी मौलवियों को नागवार गुजर सकते हैं. तो शरीफ इतना खतरा क्यों उठा रहे हैं?

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Katasraj Mandir Tempel Punjab Pakistan
तस्वीर: Ismat Jabeen

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अपने देश के अल्पसंख्यकों तक पहुंचने की कोशिशें में कई कदम उठा चुके हैं. देश के अल्पसंख्यक अहमदिया मुसलमानों, ईसाइयों, हिंदुओं और महिलाओं के कल्याण के लिए कई कदम उठाए हैं. इसी सिलसिले में पंजाब में उन्होंने अपने देश के मशहूर हिंदू मंदिर कटासराज के पुनरोद्धार का काम शुरू करवाया है. इसके लिए प्रधानमंत्री बुधवार को पंजाब में थे. कटासराज मंदिर 900 साल पुराना है. दक्षिण एशिया में यह हिंदुओं के सबसे पवित्र तीर्थों में माना जाता है. इस मंदिर की मरम्मत का काम भारत के साथ संबंधों में आई खटास को कम करने की कोशिश भी हो सकती है. इस मौके पर शरीफ ने एक पूजा में भी हिस्सा लिया. राजधानी इस्लामाबाद से 110 किलोमीटर दूर कटास मंदिर के बाहर शरीफ ने पत्रकारों से कहा, "मेरी राय में हम सब बराबर हैं. मुसलमान, हिंदू, सिख, ईसाई और दूसरे धर्मों के लोग भी. हम सब एक है."

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इस मौके पर ईसाई, सिख और हिंदू समुदायों के कई बड़े नेता मौजूद थे. इन सबके बीच शरीफ ने ऐसे कट्टरपंथी मुस्लिम मौलवियों को भी लताड़ लगाई जो उनके मुताबिक दूसरे धर्मों के खिलाफ नफरत फैलाने के लिए इस्लाम की अजीब ओ गरीब व्याख्याएं देते हैं. शरीफ ने कहा, "यह तो गैर कानूनी है. किसी को भी ऐसी बातें नहीं सिखानी चाहिए. ना ही किसी को ऐसी बातें सुननी चाहिए."

नवाज शरीफ सरकार के आलोचक कहते हैं कि उन्होंने पाकिस्तान में कट्टरपंथी मसलमानों पर लगाम लगाने के लिए जरूरी काम नहीं किया है. इनमें ऐसे संगठन भी शामिल हैं जिनके संबंध आतंकवादी संगठनों से हैं. आलोचक तो यहां तक कहते हैं कि उनकी पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) के नेता ही इन नेताओं से संपर्क रखते हैं. लेकिन ऐसा भी दिख रहा है कि नवाज सरकार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की उस छवि को सुधारने की कोशिश कर रही है, जिसके तहत उसे अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा में नाकाम मुल्क माना जाता है. इसके पीछे एक वजह विदेशी निवेशकों को आकर्षित करना भी हो सकती है. प्रधानमंत्री के एक सलाहकार कहते हैं, "पाकिस्तान की छवि, अर्थव्यवस्था, विदेशी निवेश और सुरक्षा सब चीजें एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं."

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक शरीफ की कटास राज यात्रा 2018 के चुनाव से पहले अल्पसंख्यकों को लुभाने की एक कोशिश है. इसके जरिये वह देश के उदारवादी शहरी वोटरों को भी आकर्षित कर रहे हैं. हालांकि 19 करोड़ की आबादी वाले पाकिस्तान में गैर मुस्लिम सिर्फ तीन फीसदी हैं लेकिन इन लोगों का एकमुश्त वोट पंजाब और सिंध प्रांत में कई सीटों को प्रभावित कर सकता है.

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नवाज शरीफ ने और कई कदम उठाए हैं जिन्हें उदारवादियों की तारीफें मिली हैं. मसलन पिछले ही महीने इस्लामाबाद की एक यूनिवर्सिटी में फिजिक्स डिपार्टमेंट का नाम देश के नोबेल प्राइज विजेता अब्दुस सलाम के नाम पर रखने की प्रक्रिया शुरू की गई. अब्दुस सलाम अहमदिया समुदाय से आते हैं और देश के कानून के मुताबिक उन्हें मुसलमान ही नहीं माना जाता. इस कारण अब्दुस सलाम को दुनिया का पहला मुसलमान नोबेल विजेता होने के बावजूद पाकिस्तान में कभी सम्मान नहीं मिला. शरीफ सरकार ने इसकी कोशिश की. हालांकि इस कदम के कुछ ही दिन बाद सैकड़ों लोगों की एक भीड़ ने एक अहमदिया मस्जिद को फूंक दिया.

शरीफ सरकार ने महिलाओं के लिए भी कई तरह के कदम उठाए हैं. बीते साल एक बिल पास करके कथित ऑनर किलिंग के खिलाफ कानून को और सख्त बनाया गया. पंजाब प्रांत में नवाज शरीफ के भाई शाहबाज शरीफ की सरकार ने महिला सुरक्षा कानून लागू किया जिसके तहत महिलाओं को घरेलू, मानसिक और यौन हिंसा से बचाव के कदम उठाए जा सकते हैं.

लंदन स्थित संस्था कंट्रोल रिस्क्स की विश्लेषक हुमा यूसुफ कहती हैं कि शहरी युवा वोटरों को पसंद आने वाले मुद्दों पर उदारवादी एजेंडा लागू करके नवाज शरीफ यह परख रहे हैं कि वह कितना आगे जा सकते हैं, लेकिन इससे ज्यादा बदलाव की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए.

वीके/एके (रॉयटर्स)