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7 महीने के समझदार शिशु

२६ दिसम्बर २०१०

हंगरी की विज्ञान अकादमी के मनोविज्ञान संस्थान के नए शोध में सामने आया है कि सात महीने के शिशु भी दूसरों के दृष्टिकोण को समझ सकते हैं और उसका ध्यान रख सकते हैं. सामाजिक व्यव्हार की प्रक्रिया समझने के लिए अहम शोध.

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तस्वीर: picture alliance/dpa

थ्योरी ऑफ माइंड के बारे में कहा जाता था कि पांच साल से छोटे बच्चे इस प्रक्रिया में शामिल नहीं होते. इस उम्र के बाद ही बच्चे दूसरे के नजरिए को समझते और उस पर विचार करते हैं. लेकिन नया शोध दिखाता है कि 15 महीने के बच्चे पूरी तरह से यह बात समझ जाते हैं कि दूसरे लोगों की विचारधारा, नजरिया अलग होता है. शोधकर्ताओं के अनुसार इस शोध से सामाजिक बातचीत, व्यव्हार और निष्कर्ष निकाल सकने की प्रक्रिया समझने में आसानी होगी.

शोधकर्ताओं ने बच्चों के परीक्षण का जो तरीका निकाला उससे विकास के दौरान पैदा होने वाले विकारों को भी शुरुआती दौर में समझा जा सा सकेगा. हंगरी की विज्ञान अकादमी में मनोविज्ञान संस्थान की मुख्य शोधकर्ता आग्नेस मेलिंडा कोवाक्स ने बताया, बच्चों को जो करने को कहा गया उसकी सहायता से ऑटिज्म जैसी बीमारियों को शुरुआती दौर में ही समझने में मदद मिल सकेगी.

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तस्वीर: AP

शोधकर्ताओं का मानना है कि अब तक यह बात इसलिए सामने नहीं आ पाई थी क्योंकि शोधकर्ता सही सवाल नहीं ढूंढ पाए.

शोध के दौरान 7 महीने के 56 बच्चों को एक कार्टून दिखाया गया जिसमें एक स्मर्फ एक गेंद को देख रहा है जो लुढ़कते लुढ़कते दीवार की ओर चली जाती है. ऐसा कई दृश्यों में होता है. बॉल तब तक दिखाई जाती है जब तक या तो वह दीवार के पीछे चली जाती है या नजर से ओधल हो जाती है या फिर लुढ़कते लुढ़कते गायब हो जाती है. दृश्य के आखिर में वह दीवार हटाई जाती है ये जानने के लिए कि वहां गेंद है या नहीं.

कुछ दृश्यों में कार्टून बॉल को लुढ़कते हुए देखता और वह कहां जा रही है इसे बिना देखे कमरे से बाहर चला जाता. जबकि बाकी सीन्स में वह गेंद को पूरे समय देखता है.

बच्चों की प्रतिक्रिया इस बात से आंकी गई कि कितनी देर वह विडियो को देखते रहते हैं. जितनी ज्यादा देर सीन चलती उन्हें उतना ज्यादा आश्चर्य होता कि गेंद गई कहां.

इस परीक्षण से शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि बच्चे आकस्मिक नतीजे से बहुत चौंके. जैसा कि कार्टून की प्रतिक्रिया होती. शोधकर्ताओं का कहना है कि बच्चों ने फिल्म के चरित्र के हिसाब से प्रतिक्रिया दी, न कि उनके खुद के हिसाब से.

साइंस नाम की पत्रिका में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि शिशु दूसरे के नजरिए को समझ सकते हैं, पहचान सकते हैं फिर चाहे वह दूसरा व्यक्ति कमरे से बाहर ही क्यों न चला जाए बच्चे उसे याद रखते हैं.

रिपोर्टः रॉयटर्स/आभा एम

संपादनः एन रंजन