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500 रुपये के कर्ज के लिए तीन महीने गुलामी

१५ नवम्बर २०१६

मां चल बसी, लेकिन बेटे को अंतिम संस्कार के लिए छुट्टी नहीं दी गई. उसे सिर्फ 100 रुपये दिये गए और कहा कि क्रिया कर्म यहीं बैठकर कर ले. चकाचौंध से दूर भारत के बंधुवा मजदूरों की कुछ ऐसी ही दशा है.

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तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Hassan

कर्नाटक में निपानी और मुधोल के बीच सड़क बनाने का काम चल रहा था कि तभी वहां पुलिस पहुंची. पुलिस को देखते ही माहौल अजीब सा हो गया. कुछ लोग परेशान हो गए और कई मजदूरों की आंखों में रिहाई की उम्मीद जगने लगी. वे सब बंधुवा मजदूर थे जो तेलंगाना के आदिवासी थे. मामूली से कर्ज के चलते काफी समय से ठेकेदार ने उन्हें गुलाम बनाया था.

राजस्व विभाग के अधिकारी गीता कौल्गी के मुताबिक, "यह साफ बंधुवा मजदूरी का मामला है. उनके बयान दर्ज किये जा चुके हैं और अब हम मजदूरों का रिहाई सर्टिफिकेट जारी कर रहे हैं. एक या दो दिन में उन्हें घर भेज दिया जाएगा."

मजदूरों की सप्लाई करने वाले और सड़क बनाने वाले ठेकेदार को गिरफ्तार कर लिया गया है. सामाजिक कार्यकर्ताओं के मुताबिक 32 मजदूरों की ये रिहाई भारत में आज भी जारी बंधुवा मजदूरी की तस्वीर बयान करती है. वॉक फ्री फाउंडेशन की ग्लोबल स्लेवरी रिपोर्ट के मुताबिक देश में फिलहाल 1.8 करोड़ लोग गुलामी की जिंदगी जी रहे हैं.

कर्नाटक में ठेकेदार की गुलामी सह रहे इन मजदूरों में 22 पुरुष और 10 महिलाएं थीं. सब ने एक उप ठेकेदार से कुल मिलाकर 60,000 रुपये तक का कर्ज लिया था. ठेकेदार ने उन्हें काम के बदले 3,500 रुपये महीने तनख्वाह देने का वादा किय, लेकिन एक भी पाई नहीं दी.

मामले का पता एक गैर लाभकारी संस्था सस्टेनेबल डेवलपमेंट चलाने वाले पीएच वासुदेव को लगा. वासुदेव राव के पास एक दिन एक फोन आया. फोन पर उन्हें इन बंधुवा मजदूरों की जानकारी मिली. राव ने मजदूरों की रिहाई की कोशिश शुरू की और कार्रवाई होते होते छह महीने गुजर गए. राव के मुताबिक, "एक मामला तो ऐसा था कि एक मजदूर ने सिर्फ 500 रुपये का कर्ज लिया था और इसके लिए उसे इन बुरी परिस्थितियों में तीन महीने काम करना पड़ा."

ठेकेदार बड़े शातिर ढंग से मजदूरों को इधर उधर करता रहा. राव बताते हैं, "ठेकेदार उन्हें इलाके में मौजूद अलग अलग प्रोजेक्टों की साइट्स पर लगा देता था." अधिकारियों ने जब मजदूरों के बयान दर्ज किये तब यह भी पता चला कि कम से कम दो मामले यौन उत्पीड़न के भी हैं. रिहा कराये गए लोगों में दो नवजात भी शामिल हैं.

मजदूरों की हालत का जिक्र करते हुए राव ने कहा कि एक मजदूर की मां का निधन हो गया. लेकिन उसे घर नहीं जाने दिया गया, "कबूतरबाज ने उसे 100 रुपये दिये और कहा कि वो साइट पर ही क्रिया कर्म कर ले. उसकी मां का अंतिम संस्कार रिश्तेदारों ने किया." रिहाई के दौरान वह जोर जोर से रोने लगा. उसके आंसुओं ने भारत के लाखों बंधुवा मजदूरों की दशा बयान कर दी.

ओएसजे/आरपी (रायटर्स)