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26/11: एफबीआई ने मुंबई पुलिस को लताड़ा

१२ जुलाई २०१०

अमेरिकी जांच एजेंसी एफबीआई ने मुंबई हमलों के सिलसिले में स्थानीय पुलिस को जमकर लताड़ा है. एफबीआई के मुताबिक लापरवाही का ये आलम था कि शुरुआती हमले की जगह पहुंचे पुलिस अफसर अपने साथ हथियार भी लेकर नहीं गए थे.

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तस्वीर: AP

अमेरिकी जांच एजेंसी ने यह भी कहा है कि भारतीय सुरक्षा बलों के पास ऐसे अत्याधुनिक उपकरण भी नहीं थे जिनकी मदद से वे हमलावरों और पाकिस्तान में बैठे उनके आकाओं के बीच होने वाली बातचीत को इंटरसेप्ट करते. एफबीआई के मुताबिक मुंबई पुलिस के पास हथियार न होने की वजह से ही पांच सितारा होटलों, ट्रेन स्टेशन और नरीमन पॉइंट पर इतने सारे लोग मारे गए. बहुत बाद में एनसीजी कमांडो मुंबई पहुंचे.

सार्जेंट एलन मैटस का कहना है कि शुरुआती हमले के वक्त आधे पुलिस वालों के पास हथियार ही नहीं थे. वहीं जासूस इवान कैब्रेरा के हवाले से 'द मियामी हेराल्ड' अख़बार लिखता है, "अगर ऐसा कुछ यहां होता, तो हम बेहतर तरीके से निपटते."

एफबीआई के विशेष एजेंट एंथोनी टिंडल ने बताया है कि भारत ने 26-28 नवंबर 2008 को हुए आतंकवादी हमलों के सिलसिले में मदद मांगी है और लॉस एंजलिस के आठ एजेंटों और वर्जिनिया के एक तकनीकी विशेषज्ञ को इस काम पर लगा दिया गया है. उन्होंने बताया कि एफबीआई ने तुरंत भारतीय जांचकर्ताओं का विश्वास जीत लिया क्योंकि उसके एजेंट और तकनीकी विशेषज्ञ जीपीएस, सेलफोन, सैटलाइट फोन, इंटरनेट डेटा, वित्तीय रिकॉर्ड्स, चश्मदीदों और आतंकियों द्वारा इस्तेमाल नौका के ब्यौरे से फटाफट जानकारी जुटाने में समक्ष थे.

टिंडल ने बताया कि हमलों के सिलसिले में जुटाई गई ज्यादातर जानकारी पाकिस्तान की तरफ इशारा करती है. वह इस बारे में पाकिस्तानी नागरिक आमिर अजमल कसाब की गिरफ्तार को बड़ी कामयाबी मानते हैं. मुंबई की विशेष अदालत ने मई में कसाब को भारत के खिलाफ षडयंत्र रचने और युद्ध छेड़ने के 86 आरोपों में दोषी पाया है जिसके लिए उसे मौत की सज़ा दी गई है.

एफबीआई का मानना है कि अगर मुंबई जैसा हमला अमेरिका में होता तो इतनी मौतें और तबाही नहीं होती क्योंकि वहां स्थानीय, प्रांतीय और संघीय एजेंसियों के बीच बेहतर तालमेल है.

रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार

संपादनः प्रिया एसेलबोर्न